काकभुशुंडि तुलसीकृत 'रामचरितमानस' में रामकथा के वक्ता। शंकर ने हंस का रूप धारण कर काकभुशुंडि से रामचरित सुना था (मानस, बालकांड)। ये अपने पूर्व भव में ब्राह्मण थे किंतु लोमश मुनि के शाप से कौए की योनि में आ गए थे। मानस में प्राप्त विवरण के अनुसार ये न केवल महान् ज्ञानी थे बल्कि विष्णु के अवतार राम के परम भक्त होने के कारण महान् ज्ञानी थे बल्कि विष्णु के अवतार राम के परम भक्त होने के कारण इन्होंने अमरत्व भी प्राप्त किया था। प्रसिद्धि है कि राम एक बार अपने आँगन में खेल रहे थे तो काकभुशुंडि उनके हाथ से पुए का टुकड़ा लेकर उड़ गए। राम के इशारे पर गरुड़ ने काकभुशुंडि का पीछा किया। काकभुशुंडि को तीनों लोकों में कहीं भी आश्रय न मिला। अंत में, बुरी तरह घायल एवं थकान से चकनाचूर काकभुशुंडि को राम की ही शरण में आना पड़ा, तभी उनकी रक्षा हुई। काकभुशुंडि राम के बालरूप के उपासक थे।