कांडला कच्छ की खाड़ी के पूर्वी किनारे पर २३रू उ.अ. तथा ७०रू १३व् पू.दे. पर स्थित सुरक्षित प्राकृतिक पत्तन है। यहाँ पर जलयानों के आने जाने तथा रुकने के लिए पर्याप्त स्थान है। कराची पत्तन के पाकिस्तान में चले जाने से पैदा हुई कमी को पूरा करने के लिए १९४९ में हैंबर्ग बंदरगाह के नमूने पर कांडला का निर्माणकार्य प्रारंभ हुआ। पुराना पत्तन सन् १९३१ में वर्तमान से दो मील की दूरी पर कच्छ राज्य द्वारा बनाया गया था। १९५५ में कांडला भारत का छठा बड़ा बंदरगाह घोषित किया गया। इसकी २,७५,००० वर्गमील पृष्ठभूमि में कच्छ, उत्तरी गुजरात, राजस्थान, पंजाब, कश्मीर तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश सम्मिलित हैं। अब तक १५ करोड़ रुपया पत्तन तथा गांधीधाम नगर के निर्माणकार्य में व्यय हो चुका है। यह पत्तन सभी आधुनिक सुविधाओं से संपन्न है। २,७०० फुट लंबी गरहे पानी की जेटी है, जहाँ चार बड़े जहाज एक साथ खड़े हो सकते हैं। राडार द्वारा ३० मील तक जहाजों के आने जाने का निरीक्षण किया जा सकता है। बिजली तथा पानी की सुविधा है। पत्तन के निकट ही गांधीधाम नगर की योजना ७,००० एकड़ भूमि पर बनाई गई है।
कांडला बंदरगाह से प्रति वर्ष दस लाख टन से ऊपर का आयात निर्यात होता है। १९५९-६० में आयात आठ लाख टन और निर्यात तीन लाख टन के लगभग था। जहाँ का मुख्य निर्यात कच्चा लोहा, मूँगफली तथा तेल, कपास, कपड़ा, दाल, खाल और नमक; तथा आयात पेट्रोल, कपास, सीमेंट, लोहा, इस्पात, अनाज, कोयला और रासायनिक पदार्थ हैं। कांडला उत्तर पश्चिमी भारत का भावी समुद्री द्वार बन सकता है, पर इसकी पूर्ति में अभी कतिपय न्यूनताएँ हैं, जैसे पास का पृष्ठप्रदेश उन्नत नहीं है तथा यह क्षेत्र केवल एक छोटी लाइन द्वारा कांडला से मिला हुआ है। नई योजनाओं में अहमदाबाद से कांडला तक राष्ट्रीय सड़क तथा बड़ी लाइन बनाने की व्यवस्था है। साथ ही साथ स्वतंत्र व्यापारक्षेत्र और पत्तनन्यास (पोर्ट ट्रस्ट) भी स्थापित किए जा रहे हैं। इससे कांडला को प्रोत्साहन मिलेगा। (शां.ला.का.)