कांगो नदी विश्व की समस्त नदियों में, दक्षिणी अमरीका की ऐमेज़न को छोड़कर सबसे अधिक लंबी है। लंबी है। इसकी संपूर्ण लंबाई २,९०० मील है। इसका प्रवाहक्षेत्र १४,२५,००० वर्ग मील है। इस प्रवाहक्षेत्र में प्रतिवर्ष ४०व्व् से १००व्व् तक जलवृष्टि होती है। नदी अपने मुहाने पर सात मील चौड़ा रूपधारण कर सम्रदु में गिरती है। यह समुद्र में प्रति सेकेंड २० लाख घन फुट कीचड़ युक्त पानी गिराती है जो संपूर्ण मिसिसिपि के औसत तक चौगुना है। इसका कीचड़ युक्त पानी समुद्री किनारे से १०० मील दूर तक तथा ४,००० फुट की गहराई तक समुद्री जल से अलग रूप में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
यह नदी मध्य अफ्रीका के ४,६५० फुट की ऊँचाई से निकलकर पश्चिम दिशा में २,९०० मील की यात्रा समाप्त करके समुद्र में गिरती हैं। अपने यात्रापथ में यह भारतवर्ष की गंगा नदी की तरह कई नामों से पुकारी जाती है, उदाहरणार्थ उत्तरी रोडेशिया में चंबेज़ी तदुपरांत लूआ पूला (Lua Pula) नाम से विख्यात है। यह नदी २०० फुट की ऊँचाई से गिरकर स्टैनली जलप्रपात का सृजन करती है। इसके पश्चात् यह बहुत बड़ी नदी का रूप धारण कर लेती है जो ९८० मील चंद्राकार रूप में बहती हुई भूमध्य रेखा को दो बार आर-पार करती है।
इसकी सहायक नदियों में कसाई तथा उंबागी विशेष उल्लेखनीय हैं। इस नदी में ४,००० लघु द्वीप हैं। इसमें छोटी-छोटी वाष्पचालित नौकाएँ भी चलाई जाती हैं। इसका निचला जलप्रवाह २८ स्थलों पर विघटित होकर जलशक्ति उत्पादक स्थानों का सृजन करता है। यहाँ पर शिकार खेलने योग्य भयंकर जंगली जानवर पाए जाते हैं क्योंकि इस नदी का अधिकांश मार्ग घने तथा अभेद्य जंगलों से घिरा हुआ है। इसमें सैकड़ों जातियों की मछलियाँ मिलती हैं तथा तटीय प्रदेश में दुर्लभ कीड़े मकोड़ों की प्राप्ति होती है।
भूगर्भीय तत्वों के आधार पर यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि यह नदी सुदूर भूत काल में उत्तर की ओर, जहाँ पर इस समय उजाड़ सहारा रेगिस्तान है, बहती थी। नदी का वर्तमान मुहाना नवीन प्रतीत होता है।
दीर्घ काल तक यह नदी यात्रियों के लिए पहेली बनी रही। सर्वप्रथम इसके मुहाने पर सन् १४८२ ई. में डायगोकाओ नामक पुर्तगाली यात्री का आगमन हुआ तथा उसने यहाँ पर एक स्तंभ (पडराओ) खड़ा किया। तब से इस नदी की रीओ डी पडराओ के नाम से पुकारा जाने लगा। कालांतर में पुर्तगाली अन्वेषकों ने इसको ज़ैर नाम प्रदान किया। अंतिम तथा विश्वविख्यात नाम कांगो पड़ा। (रा. लो. सि.)