कश्यपसंहिता कश्यप या काश्यप के नाम से तीन संहिताएँ मिलती हैं : १. कश्यप संहिता या वृद्धजीवकीय तंत्र; इसको नेपाल देशवासी, राजगुरु हेमराज शर्मा, ने १९३८ ई. में प्रकाशित किया था। यह प्राचीन विलुप्त संहिता है; इसमें स्थान-स्थान पर पाठ खंडित हैं। इसका संबंध बाल-रोग-चिकित्सा से है। इसमें देशों के नाम, भूगोल तथा बहुत से नए शब्द आए हैं। २. कश्यप संहिता-यह मद्रास प्रांत से प्रकाशित हुई है, इसका विषय विष से संबंधित है; इसमें गारुड़ी विद्या, विषहर प्रयोग हैं। ३. कश्यप संहिता-यह उमा-महेश्वर-प्रश्नोत्तर के रूप में है और चिकित्सा संबंधी है। यह छोटी सी पुस्तक है; जो तंजौर पुस्तकालय में है।
काश्यप शब्द गोत्रवाची भी है; मूल ऋषि का नाम कश्प प्रतीत होता है। मत्स्य पुराण में मरीच के पुत्र कश्यप को मूल गोत्रप्रवर्तक कहा गया है; परंतु आगे चलकर कश्यप मारीच भी कहा है। चरकसंहिता में कश्यप पृथक लिखकर 'मारीचिकाश्पौ' यह लिखा है (चरक.सू.अ. १।८)। इसमें मारीच कश्यप का विशेषण है। इसी प्रकार चरक के एक पाठ में 'काश्यपो भृंगु:' यह पाठ आया है (चरक, सू.अ. १।८)। इसमें काश्ययप गोत्रोत्पन्न भृगु का उल्लेख है। इस प्रकार काश्यप शब्द जहाँ गोत्रवाची है, वहाँ व्यक्तिवाची भी मिलता है।
उपलब्ध कश्यपसंहिता-वृद्धजीवकीय तंत्र में 'इति ह स्माह कश्यप:' या 'इत्याह कश्यप:', 'इति कश्यप:', 'कश्यपोऽब्रवीत्' आदि वचन मिलते हैं, इससे इनका आचार्य होना स्पष्ट हैं। कहीं पर कश्यप के लिए मारीच शब्द भी आया है। (भोजन कल्पाध्याय-३; पृष्ठ १६८; षडकल्पाध्याय-३; पूष्ठ १४८)। इससे स्पष्ट होता है कि मारीच कश्यप शब्द के लिए ही आया है। अनुमान होता है, मारीच का पुत्र कश्यप था, जिससे आगे कश्यप गोत्र चला।
गालव ऋषि गुरुदक्षिणा में घोड़ों को देने के लिए काशीपति दिवादास के पास गए थे; मार्क में उनको हिमालय की तराई में मारीच कश्यप का आश्रम मिला था (महा. उद्योग. १०७।३-१५)। कश्यप संहिता में भी कश्यप का स्थान गंगाद्वार में बताया गया है। (हुताग्नि होत्रमासीनं गंगाद्वारे प्रजापतिम्-लशुनकल्पाध्याय-३; पृष्ठ १३७)।
कश्यप ने आयुर्वेद का अध्ययन आयुर्वेद परंपरा में इंद्र से किया था। कश्यप संहिता में वृद्ध कश्यप के मत का भी उल्लेख मिलता है (वमन विरेचनीयाध्याय; पृष्ठ ११६)। इसके आगे ही अपना मत दिखाने के लिए 'कश्यपोऽब्रवीत्' पाठ है। इससे प्रतीत होता है कि वृद्ध कश्यप और संहिताकार कश्यप भिन्न व्यक्ति हैं। ऋक् सर्वानुक्रम में कश्यप और काश्यप के नाम से बहुत से सूक्त आए हैं। इनमें कश्यप को मरीचिपुत्र कहा है (वेदार्थदीपिका, पृ. ९१)।
इस प्रकार से कश्यप का काश्यप का संबंध मारीच से है। संभवत: इसी मारीच कश्यप ने कश्यपसंहिता की रचना की है।
महाभारत में तक्षक-दंश-उपाख्यान में भी कश्यप का उल्लेख आता है। इन्होंने तक्षक से काटे अश्वत्थ को पुनर्जीवित करके अपनी विद्या का परिचय दिया था (आदि पर्व. ५०।३४)। डल्हण ने काश्यप मुनि के नाम से उनका एक वचन उद्धृत किया है, जिसके अनुसार शिरा आदि में अग्निकर्म निषिद्ध है। माधवनिदान की मधुकोष टीका में भी वृद्ध काश्यप के नाम से एक वचन विष प्रकरण में दिया है। ये दोनों कश्यप पूर्व कश्यप के नाम से एक वचन विष प्रकरण में दिया है। ये दोनों कश्यप पूर्व कश्यप से भिन्न हैं। संभवत: इनको गोत्र के कारण कश्यप कहा गया है। अष्टांगहृदय में भी कश्यप और कश्यप नाम से दो योग दिए गए हैं। ये दोनों योग उपलब्ध कश्यपसंहिता से मिलते हैं (कश्यप संहिता-उपोद्घात, पृष्ठ ३७-३८)।
(अ.दे.वि.)