कश्यप इस नाम के कई वीर, विद्वान् तथा ऋषि हुए हैं जिनमें एक १६ प्रजापतियों में परिगणित हैं। इन्होंने दक्ष की ६० कन्याओं में से आठ से विवाह किया जिनमें दिति, अदिति तथा दनु आदि थीं। अदिति के गर्भ से सब मिलाकर ३३ देवता हुए जिनमें १२ आदित्य, ८ वसु, ११ रुद्र तथा दोनों अश्विनीकुमार हैं। यह मरीचिपुत्र कश्यप हैं जो महर्षि और ऋग्वेद के मंत्रद्रष्टा माने जाते हैं। दूसरे कश्यप के पुत्र विवस्वान् और विवस्वान् के मनु हुए। ये महर्षि कहीं उत्तर में रहते थे और इनकी पत्नी मुनि से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र की उत्पत्ति हुई। इन्हीं की दूसरी पत्नी अनला से फल देनेवाले वृक्षों की सृष्टि बतलाई जाती है। तीसरे कश्यप ब्रह्मा के पौत्र थे, जो, रामायण के अनुसार, राम के अयोध्या लोटने पर उन्हें आर्शीर्वाद देने वहाँ गए थे।

हरिहर पुराण में किसी चौथे कश्यप की १३ पत्नियाँ लिखी हैं जो दक्ष की कन्याएँ थीं। इसी के अनुसार कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के पुण्यक व्रतार्थ कल्पवृक्ष की सृष्टि की थी। कहीं-कहीं इनकी स्त्रियों की संख १२ दी हुई है। पाँचवें कश्यप संभवत: लिंगपुराण में निर्दिष्ट महर्षि थे। लिंगपुराण में लिखा है कि वाराह कल्प के १६वें द्वापर में महादेव जी ने जब कोकर्ण नाम से अवतार लिया तो उनके चार पुत्र हुए जिनमें एक कश्यप थे१ वे सभी परम योगी हुए। धर्मशास्त्र प्रणेता कश्यप छठे थे, इनकी कथा वाराहपुराण में दी हुई है। सातवें कश्यप की कथा विष्णुपुराण में है। इनकी स्त्री दिति की कई संतानें देवासुर संग्राम में नष्ट हो गईं तो इन्हें इंद्रविनाशी एक पुत्र की प्राप्ति का वरदान मिला। इंद्र को जब यह ज्ञात हुआ तो दिति के गर्भ में प्रवेश कर उसने भ्रूण के ४९ खंड कर डाले। इन्हीं खंडों से ४९ मरुतों की उत्पत्ति हुई।

वानपुराण के अनुसार एक कश्यप का पुत्र मुर नामक दानव था जिसे मारकर श्रीकृष्ण ने मुरारि नाम प्राप्त किया। नवें कश्यप की कथा श्रीमद्भागवत में है जिसमें लिखा है कि इन्होंने वैश्वानर दानव की चार कन्याओं में से दो, पुलोमा तथा कालका, से ब्याह किया और उनसे पोलोम एवं कालकेय नामक ६० सहस्र युद्धकुशल पुत्र हुए। इन सबको अकेले अर्जुन ने मार डाला था। (रा.द्वि.)