कवाध कवाद, या कोबाद, कवात फारस के ससानी वंश के दो राजाओं के नाम।

कवाध प्रथम (४८७-५३१ई.)फ़ीरोज का पुत्र, अपने चाचा बलास की जगह गद्दी पर बैठा। कवाध के दीर्घ राज्यकाल का पहला वीरकार्य उन बर्बर खज्रों के विरुद्ध सफल अभियान था जो तुर्की जाति के थे और कोहकाफ लाँघ कूर की घाटी में प्राय: धावे किया करते थे।

मजदक द्वारा स्थापित सामूहिक सत्तावादी सप्रदाय की सहायता करने के कारण कवाध को प्राय: अपना सिंहासन ही छोड़ना पड़ा। उसे गद्दी से उतार दिया गया और सूसियाना के प्रसिद्ध गढ़ में (जिसे साधारणत: विस्मृति का गढ़ कहते हैं) कैद कर दिया गया (४९८-५०१ई.)। उसका उत्तराधिकार उसके भाई ज़मास्प को मिला। कवाध अपनी पत्नी की मदद से कैद से निकल भागा। उसने अपनी गद्दी पर भी फिर से अधिकार कर लिया। इस बार उसने मजदकों के संबंध में बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार किया, उनसे अपनी संरक्षा हटा ली और उनमें से बहुतों को बाद में मरवा तक डाला।

रोम के साथ ससानियों का जो मित्रता संबंध अब तक चला आ रहा था, उसे कवाध ने तोड़ दिया। दोनों ओर से एक दूसरे पर लगातार धावे होते रहे और इन धावों ने दोनों पक्षों को कमजोर कर भावी अरब विजयों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया। श्वेत हूणों के साथ कवाध का संघर्ष प्राय: १० वर्ष (५०३-५१३ ई.) चलता रहा और उसने उनकी शक्ति प्राय: नष्ट कर दी। कवाध दूरदर्शी और शक्तिमान शासक था। तबरी का कहना है कि कवाध ने जितने नगर बसाए उतने किसी अन्य नृपति ने नहीं बसाए। उसकी मृत्यु के समय ईरान की शक्ति और मान चोटी पर थे।

कवाध द्वितीय खुसरू परवेज का पुत्र था जो ६२८ ई. की फरवरी में, पिता के गद्दी से उतारे जाने के बाद, सिंहासनारूढ़ हुआ। गद्दी पर बैठते ही उसने रोम के सम्राट् हिराक्लियस से संधि कर ली। कवाध द्वितीय ६२९ ई. में मरा।

सं.ग्रं.पर्सी साइक्स : ए हिस्ट्री ऑव पर्शिया (दो भाग, लंदन, १९५८)। (मो.या.)