कल्माषपाद इक्ष्वाकुवंशीय नरेश ऋतुपर्ण के पौत्र तथा सुदास के पुत्र (सौदास)। इनका अन्य नाम मित्रसह भी था। इनकी रानी मदयती थीं जिन्हें इन्होंने वसिष्ठ की सेवा में अर्पित किया (म.भा., शांति. २३४-३०)। पौराणिक इतिवृत्त है कि एक समय वन से मृगया से लौटते हुए तंग रास्ते पर वसिष्ठपुत्र शक्ति मुनि से मार्ग देने के प्रश्न पर विवाद हुआ। राजा ने मुनि का तिरस्कार किया। शक्ति मुनि ने इन्हें राक्षस होने का शाप दिया। विश्वामित्र ऋषि से प्रेरित किंकर नामक राक्षस ने इनके शरीर में प्रवेश किया। राक्षस-स्वभाव-युक्त होने का शाप एक तपस्वी ब्राह्मण ने भी दिया था जिससे इन्होंने अपने रसोइए को मनुष्य का मांस देने को प्रेरित किया। राक्षस स्वभाव से युक्त होकर शक्ति तथा वसिष्ठ के अन्य पुत्रों का भक्षण कर लिया। इसी अवस्था में इन्होंने मैथुन के लिए उद्यत एक ब्राह्मण का भक्षण कर लिया था अत: ब्राह्मणपत्नी आंगिरसी ने इन्हें अपनी पत्नी से समागम करते ही मृत्यु होने का शाप दिया। वसिष्ठ ने राक्षस योनि से इनका उद्धार मंत्रसूत जल छिड़कर किया और पुन: ब्राह्मणों का अपमान न करने का आदेश दिया। वसिष्ठ ने इनकी पत्नी के गर्भ से अश्मक नामक पुत्र उत्पन्न किया।
(चं.भा.पां.)