कलौंजी यह लगभग ४५ सें.मी. ऊँचा पौधा है। इसका लैटिन नाम नाइजेला सैटाइवा है। पंजाब, बिहार, हिमाचल प्रदेश और असम में इसकी खेती की जाती है। कभी-कभी यह अन्य फसलों के साथ खरपतवार के रूप में भी पैदा होता है। इसके पत्ते २ से ३ सें.मी. दीर्घतम, पिच्छाकार, २.५ से ५ सें.मी. लंबे, सीधे भालाकार, खंडों में कटे हुए, फूल हल्के नीले पीले, २ से २.५ सें.मी. तक फैले हुए, सहपत्र चक्ररहित, एक लंबा पुष्पावलिवृंत, बीज त्रिकोणाकार, काले, महीन झुर्रीदार गुलिकायुक्त होते हैं।
कलौंजी का उपयोग चीजों को सुगंधित करने अथवा ओषधि के रूप में किया जाता है। इसके बीजों को कुचलकर प्राप्त वसा तेल को खाने के काम में लाया जाता है। कलौंजी के बीजों में वातानुलोमक,उद्दीपक, मूत्रल, आर्तवजनक और स्तनवर्धक गुण होते हैं तथा मामूली प्रसूतिक उपचार करने में इसका उपयोग किया जाता है। नाशक कीटों से सुरक्षा के लिए इसके बीज लिनेन और ऊनी कपड़ों की तहों के बीच रखे जाते हैं। (नि.सि.)