कलियुग प्राचीन पौराणिक परंपरा में सृष्टि के संपूर्ण काल को आनुश्रुतिक और ज्योतिष परंपराओं के आधार पर चार युगों में बाँटा गया है–सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। शतपथ ब्राह्मण और मनुस्मृति से ज्ञात होता है कि मूलत: ये चारों युग देशजीवन की विशेषताओं की लाक्षणिक रूप से अभिव्यक्ति मात्र करते थे और उनके एक-एक श्लोकों के अनुसार शयन करता हुआ कलि है, जँभाई लेता हुआ द्वापर, उठता हुआ त्रेता और चलता हुआ कृत अर्थात् सतयुग है। पुराणों से भी इसी स्थिति की पुष्टि होती है। गुप्तवंशी राजाओं के आसपास तक के इतिहास का वर्णन कर चुकने के बाद भविष्य के इतिहास का अंत करते हुए वे कलियुगी राजओं और कलियुग के अनेक दोषों का वर्णन करते हैं तथा मानव जीवन की गिरी हुई एक अवस्थाविशेष की ओर निर्देश करते हैं। कल्कि अवतार द्वारा उस गिरी हुई दशा का अंत होगा, यह उनकी भविष्यवाणी है। प्रसिद्ध ज्योतिषी और गणितज्ञ आर्यभट्ट ने महाभारत युद्ध का समय और उसी के अंत के साथ कलियुग का प्रारंभ ३,१०२ ई.पू. में निश्चित किया था, जिसकी स्वीकृति रविकीर्ति ने अइहोड़ के लेख (६३३) ई में की। परंतु वृद्ध गर्ग, वराहमिहिर और कल्हण जैसे कुछ अन्य गणितज्ञ ज्योतिषियों और इतिहासलेखकों ने उसका प्रारंभ महाभारत युद्ध के ६३५ वर्ष पूर्व माना। स्पष्ट ही परंपराओं में भेद है। कुछ ऐसे भी विद्वान् हैं जो कलियुग का प्रारंभ मनुवैवस्वत के युग से मानते हैं। लेकिन साधारण विश्वास यही है कि महाभारत युद्ध के अंत तथा कृष्ण की मृत्यु और पांडवों के हिमगलन के साथ ही कलियुग का प्रारंभ हुआ और परीक्षित इस युग के सबसे पहले राजा थे। पुराण ग्रंथ भी भविष्य के कलियुगी राजाओं का वर्णन वहीं से शुरू करते हैं। परंतु उसके प्रारंभ की ठीक-ठीक तिथि निश्चित करने में निर्णय संबंधी अनेक भेद इसलिए होंगे ही कि महाभारत युद्ध का काल ही अभी निश्चित नहीं। उसका समय अनेकानेक विद्वानों द्वारा अलग-अलग निश्चित किया गया है। कलियुग की अवधि ४,३२,००० वर्ष मानी जाती है। (वि.पा.)