कलिंग कलिंग नाम देश (जनपद), राज्य और नगर तीनों के लिए प्रयुक्त हुआ है। कलिंग देश वैतरणी और गोदावरी नदियों के बीच पूर्वी समुद्रतट के भूखंड को कहते हैं। समय-समय पर कलिंग देश की सीमा घटती बढ़ती रही है। कभी-कभी इसकी सीमा गंगा के मुहाने से गोदावरी तक विस्तृत थी पर अधिकतर महानदी और गोदावरी नदियों के बीच में सीमित थी। (द्र. मानचित्र 'कंबोज' लेख के साथ)।

प्राचीन साहित्य और अभिलेखों में कलिंग का उल्लेख प्राच्य जनपदों और राज्यों में हुआ है। पाणिनि के अनुसार कलिंग एकराज जनपद था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अंग और कलिंग के हाथी श्रेष्ठ कहे गए हैं। महाभाष्य, महाभारत, कूर्मपुराण, भागवतपुराण, रघुवंश, बृहत्संहिता, दशकुमारचरित और काव्यमीमांसा में भी कलिंग का उल्लेख हुआ है। कलिंग देश मौर्यों के पूर्ववर्ती मगधसम्राट् नंद के साम्राज्य का अंग था। पर मौर्य चंद्रगुप्त और बिंदुसार के काल में यह स्वतंत्र हो गया। प्लिनी ने तत्कालीन कलिंग राज्य की शक्तिशाली सेना का वर्णन किया है। सम्राट् अशोक ने भीषण युद्ध कर कलिंगविजय की, जिसका मार्मिक वर्णन उसके अभिलेखों में हुआ है। उसके काल में कलिंग की राजधानी तोसली थी जिसकी ध्वनि धाली (भुवनेश्वर से पाँच मील दक्षिण) नाम में जहाँ अशोककालीन अभिलेख ओर विशाल गजमूर्ति प्राप्त हुई हैं, जीवित है। ई.पू. दूसरी या प्रथम शताब्दी में खारवेल कलिंग का प्रतापी राजा हुआ। अभिलेखों में खारवेल को कलिंगाधिपति और कलिंगचक्कवती कहा गया है और उसकी राजधानी को कलिंगनगर, जिसको शिशुपालगढ़ नामक प्राचीन स्थान (भुवनेश्वर से १ १/२ मील दक्षिण-पूर्व), से अभिन्न माना गया है। अभिलेखों के अनुसार कलिंग नगर के द्वार, प्रकार, भवन और उपवन तुफान में नष्ट हो गए थे, इनकी खारवेल ने मरम्मत करवाई और नहर तथा मंदिर बनवाकर नगर की शोभा बढ़ाई। चौथी सदी में कलिंग छोटे-छोटे राज्यों में बँटा था जो गुप्त साम्राज्य में सम्मिलित कर लिए गए। पाँचवीं शती में मध्य कलिंग में पितृभक्त कुल के तथा दक्षिण कलिंग में माठर और वासिष्ठ वंशों के राजा क्रमश: (वर्तमान सिंगुपुरम्, श्रीकाकुलम् के निकट) और पिष्टपुर (वर्तमान पिठापुरम्, जिला पूर्व गोदावरी) से राज करते थे। पर इनसे अधिक पराक्रमी गंग राजा थे जिनका कलिंग पर छठी से आठवीं सदी तक और बाद में १०वीं से १३वीं सदी तक अधिकार रहा। छठी और सातवीं सदियों में थोड़े काल के लिए शशांक और हर्षवर्धन की भी यहाँ सत्ता रही। उसी समय यहाँ चीनी यात्री युआनच्वाङ आया जिसका वृत्तांत उपलब्ध है। गंगों की राजधानी कलिंगनगर थी जिसकी पहिचान वंशधारा नदी पर स्थित श्रीकाकुलम् जिले के मुखलिंगम् और कलिंगपत्तनम् से की गई है। महावस्तु के अनुसार दंतपुर कलिंग का प्रधान नगर था। स्पष्ट है कि समय-समय पर कलिंग में छोटे-बड़े अनेक राज्य हुए जिनकी राजधानियाँ विभिन्न स्थानों में थीं। कलिंग के प्राय: सभी राजा अपने को 'कलिंगाधिपति' और अधिकतर गंग राजा 'त्रिकलिंगाधिपति' कहते थे। 'त्रिकलिंग' के सही अर्थ के विषय में विद्वानों में मतभेद है।

बर्मा और मलय द्वीप में भी कलिंग शब्द प्रचलित है। मलय साहित्य में क्लिंग भारत को कहते हैं जिससे ज्ञात होता है कि एशिया के द्वीपांतरों में भारतीय संस्कृति के प्रसार में कलिंग का बहुत बड़ा हाथ रहा है। (कृ.दे.)