कलकत्ता गंगा के मुहाने से ८० मील हुगली के बाएँ किनारे पर स्थित भारत का द्वितीय व्यापारिक नगर एवं बंदरगाह तथा पश्चिमी बंगाल प्रदेश की राजधानी है। ्झ्रस्थिति २०रू ३४फ़ उ.अ. और ८८रू २४फ़ पू.दे.; ज.सं. (१९७१) ७०,४०,३४५ट यह नगर समुद्र के धरातल से २० फुट की ऊँचाई पर हुगली के किनारे, उत्तर से दक्षिण, करीब छह मील की लंबाई तथा दो तीन मील की चौड़ाई में विस्तृत है। इसकी पश्चिमी सीमा हुगली नदी से तथा सीमा वृत्ताकार नहर, खारी झील (साल्ट लेक) तथा निकटवर्ती दलदली भूमि द्वारा निर्धारित होती है।
जलवायु-कलकत्ता की जलवायु आर्द्रोष्ण है। यहाँ का औसत वार्षिक ताप ७९रू फा. है। सबसे गरम मास मई का होता है जिसका औसत तापमान ८६रू फा. और ठंढा मास जनवरी है जिसका औसत तापमान ६५रू फा. है। वार्षिक वर्षा का औसत ६६फ़फ़ ; मूल वर्षाकाल जून से सितंबर तक, जुलाई और अगस्त मास में सर्वाधिक वर्षा, करीब १३फ़फ़ प्रत्येक मास में, होती है। नवंबर से फरवरी तक यहाँ की जलवायु साधारणतया सुखप्रद रहती है, परंतु वर्षाकाल में जुलाई से सितंबर तक नमी तथा ताप की अधिकता के कारण जलवायु कुछ कष्टप्रद हो जाती है।
ऐतिहासिक विकास-कलकत्ता की स्थापना १६८६ ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जॉब चार्नाक द्वारा हुई जिसने मुगलों के हस्तक्षेप के भय से कंपनी के हुगली में स्थापित कारखाने हटाकर सुटानाटी ग्राम (अब कलकत्ता का एक भाग) में पुन: स्थापित किए। धीरे-धीरे यह नवीन बस्ती नदी के किनारे स्थित उस समय के कालीकाता ग्राम तक फैल गई। सन् १६९८ ई. में कंपनी ने सुटानाटी, कालीकाता तथा गोविंदपुर गाँवों को औरंगजेब के पुत्र राजकुमार आजिम से खरीद लिया। ये ही तीन गाँव आज के विशाल कलकत्ता नगर के केंद्रबिंदु बने। कलकत्ते को अंग्रेजों द्वारा बंगाल का व्यापारिक केंद्र चुने जाने के दो मुख्य कारण थे-प्रथम हुगली नदी द्वारा गंगा के उपजाऊ मैदान के साथ व्यापारिक संबंध स्थापि करने में सुविधा थी, दूसरे कलकत्ता हुगली नदी के तट पर उस स्थल पर स्थित था जहाँ तक समुद्री जहाज सुगमता से पहुँच सकते थे।
सन् १७०७ ई. तक कलकत्ता ने एक नगर का रूप धारण कर लिया था जिसें सैनिकों के आवास के अतिरिक्त एक अस्पताल तथा एक चर्च भी स्थापित हो गए थे। सन् १७४२ ई. में नगरवासियों ने मरहठों के आक्रमण से नगर की रक्षा के लिए एक खाईं (नहर) की खोदाई आरंभ की जिसका दक्षिणी भाग कभी पूरा न हो सका। यह नहर आज की सरकुलर रोड के संतार जाती थी।
सन् १७५६ ई. में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला द्वारा नगर पर आक्रमण किए जाने के फलस्वरूप नगर को भारी क्षति पहुँची। प्लासी के युद्ध के पश्चात् ईस्ट इंडिया कंपनी अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुई और क्लाइव ने वर्तमान फ़ोर्ट विलियम की नींव डाली जो १७७३ ई. तक बनकर तैयार हुआ। ''उस समय नगर में केवल ७० मकान थे और वर्तमान किले के स्थान पर जंगल था तथा वर्तमान चौरंगी में बाँस के कुंज तथा धान के खेत थे। किले के निर्माण के पश्चात् आसपास के जंगल साफ कर लिए गए जिसके फलस्वरूप वर्तमान मैदान का निर्माण हुआ।'' सन् १७७६ ई. में वर्तमान बड़े अस्पताल की स्थापना की गई और उसके दक्षिण की ओर चौंरगी सड़क पर यूरोपीय बस्तियाँ स्थापित होने लगीं।
सन् १८५२ ई. में इस नगर में नगरपालिका की भी स्थापना की गई औरतब से नगर की उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। बाद में यहाँ नगर महापालिका की स्थापना हुई जिसका १९६९ में पुनर्गठन हुआ। सन् १८३७ ई. में नगर की जनसंख्या २,२९,७०० थी जो १८८१ ई. में ४,०१,६७१ तक पहुँच गई। तदुपरांत नगर की जनसंख्या की वृद्धि इस प्रकार होती रही-१९०१ में ९,२०,९३३; १९२१ में १०,३१,६९७; १९४१ में २१,०८,८९१; १९५१ में २५,४८,६७७; १९६१ में २९,२७,२८९ तथा १९७१ में ७०,४०,३४५।
सन् १८५८ ई. में, जब अंग्रेजी सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत के शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली, कलकत्ता अंग्रेजी भारत की राजधानी बना और उसे यह श्रेय १९१२ तक प्राप्त रहा जब भारत की राजधानी दिल्ली को स्थानांतरित की गई।
सन् १९०५ ई. में लार्ड कर्ज़न के बंगविच्छेद के निश्चय ने नगर में स्वदेशी आंदोलन की नींव डाली और कलकत्ता भारतीय राजनीति का अखाड़ा बना। १९०६ ई. में दादा भाई नैरोजी के सभापतित्व में अखिल भारतीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन यहीं हुआ जिसमें स्वराज्य की माँग की गई। सन् १९२० ई. का कांग्रेस अधिवेशन, जिसमें महात्मा गांधी ने अंग्रेजी सरकार के विपक्ष में अहिंसात्मक युद्ध करने का निश्चय किया, इसी नगर में हुआ था। तब से कलकत्ता राष्ट्रीय, राजनीतिक, सामाजिक तथा कलात्मक, सभी आंदोलनों में अग्रणी रहा।
द्वितीय महायुद्ध में कलकत्ता 'मित्रसेना' का बहुत बड़ा केंद्र था जहाँ से चीन, वर्मा तथा भारत की सीमाओं की रक्षा होती थी। सन् १९४२ ई. में कलकत्ता में जापानी विमानों ने प्रथम बार गोले बरसाए तथा १९४३ ई. नगर में भीषण अकला पड़ा जिसें हजारों व्यक्तियों की मृत्यु का अनुमान किया जाता है। सन् १९४७ ई. में, देश के विभाजन के पश्चात्, पूर्वी पाकिस्तान के लाखों शरणार्थियों ने इस नगर में प्रवेश किया। इनके अस्थायी आवास का प्रबंध नगर को करना पड़ा था।
नगर की रूपरेखा-हुगली नदी पर दो स्थलों पर पुल बाँधकर कलकत्ता को शेष भारत से संबंधित कर दिया गया है। उत्तर की ओर विलिंग्टन पुल द्वारा पूर्वी रेलवे (पुरानी ईस्ट इंडियन रेलवे) की हाबड़ा-वर्दवान-कॉर्ड हुगली को पारकर नगर की उत्तर पूर्व से अर्धवृत्ताकार घेरती हुई हाबड़ा से करीब चार मील पूर्व स्थित स्यालदह रेलवे स्टेशन तक पहुँचती है। यहाँ पर पूर्व क्षेत्रीय अन्य रेलवे भी मिलती हैं। हाबड़ा पूर्वी तथा मध्य रेलमागों का जंकशन है जिसे एक विशाल पुल द्वारा कलकत्ता से संबंधित किया गया है। २,१५० फुट लंबा यह पुल १९४३ ई. में बनकर तैयार हुआ। यह फौलाद का बना हुआ पुल है और केवल दो खंभों पर आधरित है। यह पुल (कैंटिलिवर ब्रिज) इसप्रकार के पुलों में लंबाई के विचार से संसार में तीसरा स्थान ग्रहण करता है। इसके निर्माण में करीब ५५,००,००० रुपए तथा २६,००० टन फौलाद खर्च होने का अनुमान है। इस पुल के निर्माण के पूर्व नदी पर एक तैरता हुआ पुल था जिसे जहाज आने पर बीच से तोड़कर हटा लिया जाता था। इसी लंबाई १,५३० गज थी। यह १८७४ ई. से १९४३ तक उपयोग में आता रहा।
हाबड़ा का पुल भारत के पुलों में सबसे अधिक व्यस्त पुल है। केंद्रीय स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट द्वारा १९४६ ई. में की गई गणना के अनुसार इस पुल को नित्य हर प्रकार की २७,००० सवारियाँ, एक लाख पैदल मनुष्य तथा १,५७० मवेशी पार करते हैं। पुल पर गमनागमन का भार (ट्रैफ़िक लोड) प्रतिदिन ९५,४०० टन होता है।
हाबड़ा (पश्चिम) और स्यालदह (पूर्व) जंकशनों के करीब चार मील लंबी हैरिसन रोड मिलाती है। इन स्टेशनों के बीच का क्षेत्र कलकत्ते का सबसे बड़ा व्यापारकेंद्र है। धर्मतल्ला स्ट्रीट स्यालदह स्टेशन के दक्षिण से प्रारंभ होकर हुगली नदी के किनारे स्थित हाईकोर्ट तथा राजभवन तक पहुँचती है। हुगली के किनारे की ओर कलकत्ते का सबसे बड़ा क्रय-विक्रय-केंद्र 'इंडिया एक्सचेंज' हे। इसके दक्षिण डलहौज़ी स्क्वायन में नगर का महत्वपूर्ण पार्कास, बाजार, कार्यालय तथा जनरल पोस्ट आफिस, टेलीग्राफ़ आफिस, कस्टम हाउस, बंगाल प्रदेशीय मंत्रालय आदि इमारतें खडी हैं। डलहौज़ी स्क्वायर के दक्षिण कलकत्ता का 'मैदान नदी से १ह् मील की दूरी तक विस्तृत है, जिसमें सार्वजनिक उपवन, अनेक खेलकूद के मैदान, रेसकोर्स आदि मनोरंजन के क्षेत्र मिलते हैं। फ़ोर्ट विलियम तथा महारानी विक्टोरिया स्मारक इसी मैदान में पड़ते हैं। मैदान के पश्चिमी भाग में नदी के किनारे-किनारे स्ट्रैंड रोड तथा पूर्व की ओर चौरंगी रोड जाती है। इन सड़कों पर कलकत्ता की कुछ भव्य इमारतें तथा यूरोपीय बस्तियाँ हैं। मैदान के उत्तर की ओर एस्प्लनेड से कैनिंग स्ट्रीट तक कलकत्ता के व्यापार तथा व्यावसाय प्रधान क्षेत्र विस्तृत हैं। धर्मतल्ला स्ट्रीट के दक्षिण चौरंगी और सर्कुलर रोड के बीच में कलकत्ते का न्यू मार्केट स्थापित है। इसके दक्षिण वेलेज़ली स्क्वायर मिलता है जिसके दक्षिण में अधिकांश सरकारी कार्यालय, म्यूज़ियम, क्लब, सर्वे आफिस, इत्यादि हैं। कलकत्ते का यह भाग अपेक्षाकृत नया बसा है।
कलकत्ता शिक्षा का भी बहुत बड़ा केंद्र है। कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना १८५७ ई. में हुई। इससे संबंधित बहुत से महाविद्यालय भी हैं जहाँ स्नातक कक्षाओं तक की शिक्षा दी जाती है। इन विद्यालयों में प्रेसिडेंसी कालेज, मुस्लिम कालेज, संस्कृत कालेज आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त मेडिकल कालेज तथा गर्वनमेंट स्कूल ऑव आर्ट्स नगर की मुख्य शिक्षा संस्थाएँ हैं।
नगर प्रारंभ से ही विभिन्न संस्थओं का केंद्र रहा है। एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल की स्थापना १७८४ ई. में हुई। बोटैनिकल गार्डेन, शिवपुर की स्थापना १७८६ ई. में हुई। अलीपुर में एशिया का सबसे बड़ा चिड़ियाघर स्थापित है। चौरंगी के भारतीय संग्रहालय में भारत के प्राचीनकालीन, विशेषकर बुद्ध तथा हिंदू युग के, शिल्प और वास्तु के सुंदर एवं दुर्लभ नमूने संगृहीत हैं। धार्मिक संस्थाओं में काली जी का मंदिर, जैन मंदिर, स्वामी विवेकानंद का वेलूर मठ, रामकृष्ण परमहंस का दक्षिणेश्वर मंदिर, महाबोधि सभा का 'धर्मतीर्थक विहार' आदि मुख्य है।
बंदरगाह एवं व्यापार-कलकत्ते का बंदरगाह उत्तर में श्रीरामपुर से लेकर दक्षिण में बजबज तक फैला हुआ है। इस बीच में लगातार अवतरणियाँ (जेट्टी), गोदाम तथा व्यावसायिक कार्यालय स्थापित हैं। बंदरगाह में आयात निर्यात की सुविधा के लिए खिदिरपुर डाक नं. १ और नं. २ में २९ बर्थ, किंग जार्ज डाक में पाँच आयात बर्थ, एक निर्यात बर्थ और पेट्रोल के लिए एक अलग बर्थ, गार्डेन रीच में पाँच बर्थ, कलकत्ता जेट्टी में नौ बर्थ तथा बजबज में पेट्रोल के गोदाम की व्यवस्था है। जहाजों की मरम्मत के लिए खिदिरपुर डाक में तीन तथा किंग जार्ज डाक में दो शुष्क नौस्थान (ड्राई डॉक) स्थापित किए गए हैं। इन सुविधाओं से युक्त कलकत्ते का बंदरगाह प्रति वर्ष १० लाख टन वस्तुओं का आयात निर्यात करने में समर्थ है। कलकत्ता बंदरगाह को अधिक उपयोगी बनाने के लिए फरक्का बैरेज का निर्माण किया जा रहा है ताकि पानी के बहाव को नियंत्रित किया जा सके और उत्तरी तथा दक्षिणी बंगाल के बीच रेलवे एवं सड़क को जोड़ा जा सके। कलकत्ता और समुद्र के बीचोंबीच हाल्दिया में एक और बंदरगाह का विकास किया जा रहा है जिससे भारी मालवाही जहाजों को बंदरगाह तक पहुँचाया जा सके।
कलकत्ता बंदरगाह की सबसे बड़ी असुविधा यह है कि हुगली नदी की तलहटी में कीचड़ जमा हो जाता है जिसे साफ करने में प्रतिवर्ष ३० लाख रुपए से अधिक खर्च होता है।
कलकत्ते की पृष्ठभूमि बहुत विस्तृत क्षेत्र में है। आसाम की चाय, बिहार का कोयला, अभ्रक तथा मैंगनीज़, बंगाल का जूट, उड़ीसा का लौह, मध्य प्रदेश की लाख, उत्तर प्रदेश तथा बिहार का तेलहन आदि कलकत्ता से बाहर जाते हैं तथा मशीनें, मोटरकार, साईकिल, लोहा था फौलाद, खाद्यान्न, कागज आदि तैयार वस्तुएँ इन प्रदेशों को भेजी जाती हैं।
इसी पृष्ठभूमि में देश के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र सम्मिलित हैं। हुगली घाटी में कलकत्ते से ४० मील के भीतर भारत के अधिकांश जूट के कारखाने, कागज के कारखाने, चर्म उद्योग, वस्त्र उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग आदि स्थापि हैं। १५० मील के भीतर ही दामोदर घाटी की कोयले की तथा समीप की लोहे की खदानों पर आश्रित जमशेदपुर का लोहे का कारखाना है। नवगठित दामोदर घाटी आयोग (दामोदर वैली कारपोरेशन) से प्राप्त अरेक सुविधाओं से कलकत्ता के विकास में और भी सहायता मिलेगी। (उ.सिं.)