कर्नाटक राज्य, स्थिति : १८ २५' से ३११५' उ.अ. तथा ७४१०' से ७८३५' पू.दे.। यह दक्षिणी भारत का एक राज्य है, जिसका पुनर्गठन सन् १९५६ ेंभाषा के आधार पर किया गया था१ इसके परिणामस्वरूप कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को इसमें मिला दिया गया है। इसका क्षेत्रफल १,९१,७७३ वर्ग कि.मी. है। इसके उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण में केरल और तमिलनाडु तथा पश्चिम में गोआ एवं अरब सागर हैं।

धरातल एवं प्राकृतिक बनावटकर्नाटक राज्य का धरातल ऊँचा नीचा एवं पठारी है। समुद्र तल से ऊँचाई लगभग २,००० फुट है। प्राकृतिक बनावट के आधार पर इसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता है : (१) पश्चिम का तटीय मैदान और (२) दक्षिणी दकन प्रदेश। तटीय मैदान मालाबारतट का उत्तरी भाग है, जिसकी चौड़ाई बहुत कम है। इसके पश्ध्चिम में पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ हैं, जिसकी चौड़ाई बहुत कम है। इसके पश्चिम में पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ हैं, जिनसे छोटी-छोटी द्रुतगामी नदियाँ निकलकर अरब सागर में विलीन हो जाती हैं। तट के किनारे अनूप एवं रेत के बाँध भी दृष्टिगत होते हैं। पूर्वी भाग उच्च पहाड़ी एवं पठारी प्रदेश है। कर्नाटक के मध्य में, उत्तर से दक्षिण, पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ हैं। इसके पूर्व में प्राचीन चट्टानों से निर्मित दकन का भाग है। उत्तर-पूर्व में कृष्णा, तुंगभद्रा एवं भीमा नदियों का समतल उच्च मैदान है।

जलवायु एवं प्राकृतिक वनस्पतियहाँ का ताप साधारणतया ऊँचा रहता है। औसत ताप २७ सें है। तापांतर आंतरिक भाग में अधिक रहता है। वर्षा पश्चिमी घाट के पश्चिम में अधिक (३७५ सेंमी. से अधिक) एवं पूर्व के वृष्टिछाया प्रदेश में कम (५० सेंमी. से भी कम) होती है। अधिकांशत: वर्षा दक्षिण-पूर्वी मानसून से होती है। यहाँ की प्राकृतिक वनस्पति सदाबहार के जंगल हैं, जिनसे सागौन, चंदन, रोज़वुड आदि की लकड़ी प्राप्त होती है। वनाच्छादित क्षेत्र ३०,६८३.७ वर्ग कि.मी. है, जो संपूर्ण क्षेत्र का १६ प्रतिशत है।

कृषि५३.५ प्रतिशत क्षेत्र में खेती होती है तथा ७१.२% जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई है। मुख्य उपजें, ज्वार, गेहूँ, दलहन, मूँगफली, कपास आदि हैं। बागाती खेती में कहवा, चाय तथा रबर का उत्पादन होता है। पशुपालन भी महत्वपूर्ण है। कर्नाटक राज्य में लगभग १० लाख रुपये के मूल्य की मछलियाँ प्रति वर्ष पकड़ी जाती हैं। तुंगभद्रा, घाटप्रभा, ऊर्ध्व कृष्णा, भद्रा, काली नदी, हरंगी, हेमवती आदि १४ बहूउद्देशीय सिंचाई योजनाएँ यहाँ चल रही हैं। कुल कृषिभूमि की १२ प्रतिशत भूमि सिंचित है।

खनिज पदार्थसोना हट्टी, एवं कामत श्रेणियों में, बँगलौर एवं चिक्कमगलूर में ऐस्बेस्ट्स तथा लोहा और अन्य क्षेत्रों में मैंगनीज़, ताँबा, बॉक्साइट, गंधक आदि मिलते हैं। कोयला एवं खनिज तेल का अभव है, जिसकी पूर्ति जलविद्युत् से की जा रही है। यह अधिकांशत: शारावती, भद्रा एवं तुंगभद्रा जलविद्युत् योजनाओं से प्राप्त होती है।

उद्योगरेशमी वस्त्र, चमड़े, आभूषण, टोकरी, रस्सी, चंदन, हाथीदाँत की वस्तुएँ आदि के कुटीर उद्योग तथा वस्त्र उद्योग बँगलौर, मैसूर, बल्लारि आदि में, लोहे एंव इस्पात का उद्योग भद्रावती में, सीमेंट शाहाबाद एवं भद्रावती में, दियासलाई शिवमोगा में, ऊनी एवं रेशमी वस्त्र बँगलौर एवं मैसूर में, कागज भद्रावती में तथा टेलीफोन, हवाई जहाज आदि के उद्योग बँगलौर में हैं।

यातायातसड़कों की लंबाई २,९२,९९,०१४ (१९७१) है। जनसंख्या का घनत्व मैदान की ओर अधिक है। ७ प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है एवं राज्य के ३१.५४ (प्रतिशत पुरुष ६६ %, स्त्रियाँ ३३ %) शिक्षित हैं। बँगलौर, मैसूर, कोलार, हब्ली, धारवाड़, मंगलौर, बेलगाँव आदि मुख्य नगर हैं। बँगलौर राज्य की राजधानी है जिसकी जनसंख्या १९७१ में १६,४८,२३२ थी।

मैसूर नगरस्थिति १२� 1९' उ.अ. एवं ७६� 3८' पू.दे.। कर्नाटक राज्य का एक प्रसिद्ध नगर है, इसकी जनसंख्या २,५३,८६५ (१९६१) थी। कर्नाटक राज्य में इस नगर का जनसंख्या के दृष्टि से द्वितीय स्थान है। यह मैसूर जिले का शासनकेंद्र एवं दक्षिणी रेलमार्ग का प्रमुख स्टेशन है। नगर अति सुंदर एवं स्वच्छ है, जिसमें रंग बिरंगे पुष्पों से युक्त बाग बगीचों की भरमार है। चामुंडी पहाड़ी पर स्थित होने के कारण प्राकृतिक छटा का आवास बना हुआ है। भूतपूर्व महाराजा का महल, विशाल चिड़ियाघर, नगर के समीप ही कृष्णराजसागर बाँध, वृंदावन वाटिका, चामुंडी की पहाड़ी तथा सोमनाथपुर का मंदिर आदि दर्शनीय स्थान हैं। इन्हीं आकर्षणों के कारण पर्यटकों का स्वर्ग कहते हैं। यहाँ पर सूती एवं रेशमी कपड़े, चंदन का साबुन, बेंत एवं अन्य कलात्मक वस्तुएँ भी तैयार की जाती हैं। यहाँ प्रसिद्ध मैसूर विश्वविद्यालय भी है। (सु.चं.श.)

कर्नाटक (इतिहास)कर्नाटक का प्रामाणिक इतिहास भारत पर सिकंदर के आक्रमण (३२७ ई.पू.) के बाद से प्राप्त होता है। उस तूफान के पश्चात् ही कर्नाटक के उत्तरी भाग पर सातवाहन वंश का अधिकार हुआ था और यह अधिकार द्वितीय शती ईसवी तक चला। कर्नाटक के ये राज सातकर्णी कहलाते थे। इसके बाद उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पर कदंब वंश का और उत्तर पूर्वी भाग पर पल्लवों का शासन हुआ। कदंबों की राजधानी बनवासी में तथा पल्लवों की कांची में थी। इसी बीच उत्तर से इक्ष्वांकु वंश के दो गंग ददिग तथा माधव ने कर्नाटक के अन्य भागों पर अधिकार कर लिया (दूसरी शती के अंत में)। इस गंग वंश के सातवें राज दुर्विनीत ने पल्लवों से कुछ छीनकर अपने अधिकार में कर लिए। आठवें शासक श्रीपुरष ने पल्लवों को हराकर 'परमनंदि' की उपाधि धारण की, जो गंग वंश के परवर्ती शासकों की भी उपाधि कायम रही।

उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पर पाँचवीं शती में चालुक्यों ने आक्रमण किया। छठी शती में चालुक्य नरेश पुलिकेशिन ने पल्लवों से वातादि (वादामी) छीन लिया और वहीं राजधानी स्थापित की। आठवीं शती के अंत में राष्ट्रकूट वंश के ध्रुव या धारावर्ष नामक राजा ने पल्लव नरेश से कर वसूल किया और गंग वंश के राजा को भी कैद कर लिया। बाद में गंग राजा मुक्त कर दिया गया। राचमल (लगभग ८२० ई.) के बाद गंग वंश का प्रभाव पुन: बढ़ने लगा। सन् १००४ में चोलवंशीय राजेंद्र चोल ने गंगों को हराकर दक्षिण तथा पूर्वी हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया।

कर्नाटक के शेष भाग याने उत्तर तथा पश्चिमी क्षेत्र पर पश्चिमी चालुक्यों का अधिकार रहा। इनमें विक्रमादित्य बहुत प्रसिद्ध था, जिसने १०७६ से ११२६ तक शासन किया। ११५५ में चालुक्यों का स्थान कलचुरियों ने ले लिया। इनकी सत्ता ११८३ तक ही कायम रही।

गंग वंश की समाप्ति पर पोयसल वंश का अधिकार स्थापित हो गया। ये अपने को यादव या चद्रवंशी कहते थे। इनमें बिट्टीदेव अधिक प्रसिद्ध था जिसने ११०४ से ११४१ तक शासन किया। १११६ में तलकाद पर कब्जा करने के बाद उसने कर्नाटक से चालों को निकाल बाहर किया। सन् १३४३ में इस वंश का प्रभुत्व समाप्त हो गया।

सन् १३३६ में तुंगभद्रा के पास विजयनगर नामक एक हिंदू राज्य उभरा। इसके संस्थापक हरिहर तथा बुक्क थे। इसके आठ राजाओं ने १४७९ तक राज्य किया। इसके बाद नरसिंग नामक सेनापति ने सिंहासन पर अधिकार कर लिया। उसकी मृत्यु के बाद इसके तीन पुत्रों, नरसिंह, कृष्णराय तथा अच्युतराय ने बारी-बारी से राजसत्ता सँभाली। सन् १५६५ में बीजापुर, गोलकुंडा आदि मुस्लिम राज्यों के सम्मिश्रण आक्रमण से तालीकोटा की लड़ाई में विजयनगर राज्य का अंत हो गया।

१८वीं शती में कर्नाटक पर मुसलमान शासक हैदरअली की पताका फहराई। सन् १७८२ में उसकी मृत्यु के बाद १७९९ तक उसका पुत्र टीपू सुल्तान शासक रहा। इन दोनों ने अंग्रेजों से अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं। श्रीरंगपट्टम् के युद्ध में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् कर्नाटक के भाग्यनिर्माण का अधिकार अंग्रेजों ने अपने हाथ में ले लिया। किंतु राजनीतिक स्थिति निरंतर उलझी हुई बनी रही, इसलिए १८३१ में हिंदू राजा को गद्दी से उतारकर वहाँ अंग्रेज कमिश्नर नियुक्त हुआ। १८८१ में हिंदू राजा चामराजेंद्र गद्दी पर बैठे। १८९४ में कलकत्ते में इनका देहावसान हो गया। महारानी के सरंक्षण में उनके बड़े पुत्र राजा बने और १९०२ में शासन संबंधी पूरे अधिकार उन्हें सौंप दिए गए। भारत के स्वतंत्र होने पर मैसूर नाम से एक पृथक् राज्य बना दिया जिसमें आसपास के भी कुछ क्षेत्र सम्मिलित कर दिए गए। ३० जुलाई, १९७३ को मैसूर का नाम परिवर्तित करके कर्नाटक कर दिया गया।