करोटिमापन मानव की विभिन्न जातियों के कपाल (करोटि) आकार और रूप में भिन्न हाते हैं और उनका अध्ययन करोटिमापन का विषय है जो नृतत्वशास्त्र की शाखा है। करोटि का ठीक-ठीक मापन ही करोटिमापन की मूलभूत तकनीक है और कालावधि में इससे ही नापने की विधि निकली है। इस विधि में भूचिह्न (लैंडमार्क्स) और अनुपस्थिति के धरातल (प्लेन्स ऑव ओरिएंटेशन) संश्लिष्ट रहते हैं। इन सबकी अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के द्वारा सही-सही व्याख्या की हुई होती है। इस अर्थ में करोटिमापन किसी भी तरह की करोटि पर लागू होता है, किंतु, चूँकि इसका उपयोग अत्यंत गहन रूप से मानव करोटि पर हुआ है, अत: यह मानव-शरीर-मापन के बृहत्तम क्षेत्र का एक अंश है।

रेखीय मापन के अतिरिक्त करोटि गह्वर की धारकता भी नापी जाती है जिसमें उसमें के मस्तिष्क का अच्छा निर्देश मिलता है। औसत मानव की करोटि धारकता १४५० घ.सें.मी. से अधिक होती है और उसे दीर्घकरोटि कहते हैं। करोटि की चौड़ाई से लंबाई का अनुपात (चौड़ाई/लंबाई व्१००) करोटि निर्देशांक निर्धारित करता है और यदि यह निर्देशांक ८० से ऊपर हता है तो करोटि का वर्गीकरण चौड़ा होता है; ७५ और ८० के बीच मध्यम और ७५ से कम होने पर लंबा।

मारव-शरीर-मापन की शाखा के रूप में करोटिमापन का एक प्रतिरूप भी है जो जीवित व्यक्तियों के शिरोमापन से संबंध रखता है और जिसे प्राय: शिरोमापन कहते हैं। इनमें विभेद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यद्यपि बहुतेरे भूचिह्नों तथा मापों का दोनों में प्रयोग होता है तथापि शिरोमापन में मापें कुछ बड़ी रहती हैं क्योंकि वे चर्म तथा अन्य तंतुओं के ऊपर से ली जाती हैं।

सामान्यत: मानव-शरीर-मापन के समान ही करोटिमापन का उद्देश्य वस्तुपरक मीट्रिक अंकों में विवरण देना होता है जिन्हें कोई भी कहीं भी आँक सके और तुलना में उपयोग कर सके। इसके अतिरिक्त, चूँकि करोटि में भिन्नता रहती है, करोटिमापन करनेवालों का लक्ष्य सामान्यत: विभिन्न प्रकारों के कपालों की श्रेणियों का मापन होता है जिससे प्रत्येक के लिए औसत अंक प्राप्त हो सके। इसके लिए वे समुचित सांख्यिकी विधियों का प्रयोग करते हैं।

जे.एफ़ ब्लूयेनबाख़ करोटिमापन के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनके अनुशीलन ने जातियों के प्ररूपों को स्थिर करने में करोटि के रूपों के महत्व का उद्घाटन किया। स्विडन के आंड्रेज़ अडाल्फ़ केजियस (१७९६-१८६०) ने कैरोटिक निर्देशांक का आविष्कार किया और सँकरे करोटि को दीर्घ करोटि (डोलीको-सेफ़ैलिक) और चौड़े को लघुकरोटि (ब्रैकीसेफ़ैलिक) संज्ञा दी।

करोटिमापन ने १९वीं शती में, विशेषत: फ्रांस के पाल ब्रोका के नेतृत्व में अत्यधिक प्रगति की। १८८२ के फ्ऱैकफ़ुर्त समझौते की एक विशिष्ट बात थी करोटिमापन की मापों के लिए करोटियों का मानक निर्धारित करना। इसे फ्ऱैकफ़ुर्त क्षैतिज (फ्ऱैंकफ़ुर्त हारिज़ांटल) अथवा एफ़.एच. कहते हैं। उसके बाद मनुष्य की करोटि के विश्लेषण के अधिक प्रयोग किए गए। यद्यपि ये बहुसंख्यक नहीं हैं तथापि करोटिमापन के अध्ययन के विषय में बहुत महत्व के हैं। इसके अतिरिक्त चूँकि ये अनुसंधान प्राय: अपूर्ण हैं और विश्व में इतने व्यापक रूप से छितराए हुए हैं कि केवल कुछ ही लोग असली नमूनों को देख सकते हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि उपयोगी मापें उपलब्ध हों ताकि कोई भी उनकी तुलना कर सके। अब अतीत और वर्तमान में मनुष्य के कंकालीय अवशेष संबंधी करोटिमापन की आधार सामग्री कालानुक्रम से रखी जाती है, तब एक विकासक्रम प्रत्यक्ष होता है। सामान्यत: मानव करोटि पिछले दस लाख वर्षों में प्रकटत: मस्तिष्क का आकार बढ़ने के कारण अधिक बड़ी, अधिक गोल और अधिक पतली हो गई है। (श्या.च.दु.)