कण्व प्राचीन भारत में इस नाम के अनेक व्यक्ति हुए हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध महर्षि कण्व थे जिन्होंने मेनका के गर्भ से उत्पन्न विश्वामित्र की कन्या शकुंतला को पाला था। दुष्यंत एवं शकुंतला के पुत्र भरत का जातकर्म इन्होंने ही संपादित किया था। दूसरे कण्व ऋषि कंडु के पिता थे जो अयोध्या के पूर्व स्थित अपने आश्रम में रहते थे१ रामायण के अनुसार वे राम के लंका विजय करके अयोध्या लौटने पर वहाँ आए और उन्हें आशीर्वाद दिया। तीसरे कण्व पुरुवंशी राज प्रतिरथ के पुत्र थे जिनसे काण्वायन गोत्रीय ब्रह्मणों की उत्पत्ति बतलाई जाती है। इनके पुत्र मेधातिथि हुए और कन्या इंलिनी। चौथे कण्व ऐतिहासिक काल में मगध के शुंगवंशीय राज देवमूर्ति के मंत्री थे जिनके पुत्र वसुदेव हुए। इन्होंने राजा की हत्या करके सिंहासन छीन लिया और इनके वंशज काण्वायन नाम से डेढ़ सौ वर्ष तक राज करते रहे। पाँचवें कण्व पुरुवंशीय राज अजामील के पुत्र थे और छठे महर्षि कश्यप के पुत्र। सातवें महर्षि घारे के पुत्र थे जिन्होंने ऋग्वेद के अनेक मंत्रों की रचना की है। इनके अतिरिक्त छह सात और कण्व हुए हैं जो इतने प्रसिद्ध नहीं हैं।