औयलर ल्योनार्ड औयलर (ऑयलर, Leonhard Enler) (१७०७ ई.-१७८३ ई.) स्विस गणितज्ञ का जन्म बाज़ेल (Basel) में १५ अगस्त, १७०७ ई. को हुआ था। ये गणितज्ञ जोहैन बेर्नूली के प्रिय शिष्य थे। इनके मुख्य ग्रंथ निम्नलिखित हैं :
१. 'ऐत्रोद्युक्स्यो इन अनालिसिन इन्फ़िनितोरुम' (Introduction in analysin infinitorum १७४८ ई.) , जिसने वैश्लेषिक-गणित-संसार में क्रांति मचा दी। इसमें इन्होंने फलन की परिभाषा दी और त्रिकोणमिति को विश्लेषण की एक शाखा एवं त्रिकोणमितीय मानों की निष्पत्ति को अवधारित किया।
२. 'इंस्तित्युस्योनिस कालकूली दिफ़रेंस्यालिस' (Institutiones calculi differentialis) (१९७५ ई.) और 'इंस्तित्युस्योनिस कालकूलि इंतेग्रालिस (Institutiones calculi integralis १७६८-१७७० ई.)-इन ग्रंथों में उस समय तक ज्ञात समस्त कलन और बीटा एवं गामा फलनों तथा लेखक के कुछ अन्य अन्वेषणों का वर्णन है।
३. 'मेथोदुस इन्वेनियेंदि लिनेआस कुरवास माक्सीमी मिनिमीवे प्रोप्रियेताते गौदेंतिस' (Methodus inveniendi lineas curvas maximi minivive proproetate gaudentes, १७४४ ई.) । इसमें इनके परिणमन-कलन के अन्वेषणों का वर्णन है।
४. 'थेओरिया मोतुउम प्लानेतारुम एत कोमेतारुम' (Theoria motuum planetarum et cometarum १७४४ ई.), 'थेओरिया मोतुस लुनी' (Theoria motus lunae, १७५३ ई.) और 'थेओरिया मोतुउम लुनी' (Theoria motuum lunae, १७२२ ई.)-इनमें खगोलशास्त्र का विवेचन है।
५. 'से लेत्रआ ऊन प्रेंसेस दालमाञ््ा सुर केल्के सूज़े द फ़िजीक ए द फ़िलोज़ोफ़ी' (Ses lettres a' une princesse d' Allemangne sur quelques suiets de physique et de philosophic १७७० ई.)-इसमें दिए गए मौलिक एवं महत्वपूर्ण अन्वेषणों के कारण ऑयलर को बहुत ख्याति प्राप्त हुई।
गणित के संकेतों को भी ऑयलर की देन अपूर्व है। इन्होंने संकेतों में अनेक संशोधन करके त्रिकोणमितीय सूत्रों को क्रमबद्ध किया। १७३४ ई. में ऑयलर ने न् के किसी फलन के लिए ढ (न्) , १७२८ ई. में लघुगणकों के प्राकृत आधार के लिए ड्ढ, १७५० ई. में अर्ध-परिमिति के लिए द्म, १७५५ ई. में योग के लिए ें और १७७७ ई. में ु-१ के लिए त् संकेतों का प्रचलन किया।
१७६६ ई. में ये अंधे हो गए, परंतु मृत्यु पर्यंत (१८ सितंबर, १७८३ ई.) शोधकार्य में संलग्न रह। (रा.कु.)