ओलिंपिक खेल प्राचीन यूनान की महान् खेल परंपरा जो अर्वाचीन काल में फ्रांस के शिक्षाविद् बैरन पिरे डी कोबरटिन के प्रयास से पुनर्जीवित होकर विश्वव्यापी बनी और आधुनिक विश्वसंस्कृति का अंग बन गई। प्राचीन ओलिंपिक खेल शृंखला ७७६ ई. पू. में यूनानी इतिहास के उषाकाल से प्रारंभ होकर, उत्कर्षकाल में परिपुष्ट होती हुई, यूनानी पराधीनता (१४६ ई.पू. में रोम द्वारा) में विकारग्रस्त होकर ३९४ ई. तक चलती रही। अर्वाचीन ओलिंपिक खेल शृंखला १८९६ ई. में प्रारंभ हाकर निरंतर गतिशील है। प्राचीन ओलिंपिक खेलों का विस्तार एकदेशीय था परंतु अर्वाचीन ओलिंपिक खेलों का सार्वभौम है। उदात्त मानवमूल्यों की अमृत स्रोतस्विनी अतीत से नि:सृत होकर आधुनिक खेलों को अनुप्राणित कर रही है। यद्यपि ओलिंपिक परंपरा का शरीर दो भागों में विभक्त है और दोनों के बीच १,५०३ वर्षो का अंतर है तथापि आत्मा एक है। अत: इस परंपरा के सम्यक् बोध के लिए प्राचीन एवं अर्बाचीन दोनों शृंखलाओं का परिज्ञान आवश्यक है।
प्राचीन ओलिंपिक खेल
जन जीवन से प्रसूत परंपरा–प्राचीन यूनान छोटे छोटे नगरराज्यों में विभक्त था जो राजनैनिक दृष्टि से स्वाधीन और पृथक होते हुए भी सांस्कृतिक दृष्टि से एक थे। आपत्ति और क्रीड़ाप्रतियोगिता के समय तक हो जाना इनकी विलक्षणता थी। यूनानी लोग खेल और संगीत को नितांत पवित्र मानते थे और इनके अनन्य उपासक थे; इतने अनन्य कि केवल अवकाश, उत्सव एवं आतिथ्य के समय ही नहीं अपितु प्रियजनों के अंतिम संस्कार के समय दिवंगत आत्मा का परितोष भी क्रीड़ाप्रतियोगिता के आयोजन से ही करते थे। होमर के विख्यात महाकाव्यों में प्राचीन यूनानी जीवन के विविध क्रीड़ासंदर्भ इस क्रीड़ाप्रेम के साक्षी हैं। यूनानी इतिहास के उषाकाल में क्रीड़ाप्रतियोगिताएँ स्थानीय होती थीं परंतु कालांतर में क्षेत्रीय प्रतियोगिताएँ भी विकसित हुई। क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं में से कुछ अपने कार्यक्रम के सम्मोहन द्वारा राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में परिणत हो गई। इन राष्ट्रस्तरीय प्रतियोगिताओं में चार उल्लेखनीय हैं, यथा स्थिमियन खेल, पीथियन खेल, नेमियन खेल तथा ओलिंपियन खेल। ओलिंपिक खेल इनमें सर्वाधिक जनप्रिय एवं विख्यात हो गए तथा केवल यूनान प्रायद्वीप में ही नहीं अपितु समस्त भूमध्यसागर के तटों पर बसे यूनानी उपनिवेशों के खिलाड़ियों को आकर्षित करने लगे।
चित्र १. एक तैराक प्रतियोगी
कब और कैसे–यद्यपि ओलिंपिया घाटी में हुए आधुनिक उत्खनन प्राचीन खेलों की तिथि को कुछ और पीछे की ओर ले जाते हैं। तथापि निश्चयात्मक पुरातात्विक साक्ष्य के अभाव में साहित्यिक साक्ष्य के आधार पर खेलों को ७७६ ई. पू. में प्रारंभ हुआ माना जाता है। प्रारंभ के विषय में प्रचलित अनेक मिथक 'प्रारंभ कैसे हुआ' प्रश्न को रहस्यमय किए हुए हैं। इनमें दो मिथक बहुचर्चित हैं, यथा, ज्यूस- कॉरोनास-द्वंद्व मिथक तथा आयनोमस-हिपोडैमिया-पैलोप्स मिथक। पहले मिथक के अनुसार यूनान के दो देवताओं, ज्यूस तथा कॉरोनास के बीच पृथ्वी के स्वामित्व हेतु ओलिंपिया के पास स्थित पर्वतशिखर पर द्वंद्व हुआ जिसमें विजय ज्यूस की रही। उसकी विजय के स्मरणार्थ खेलों का प्रारंभ हुआ। दूसरे मिथक के अनुसार राजा आयनोमस की सुंदरी पुत्री हिपोडैमिया के प्रणयाभिलाषी अनेक राजकुमार रथों की दौड़ में पराजित हिपोडैमिया आयनोमस के भाले के शिकार हुए परंतु अंत में पैलोप्स नामक राजकुमार युक्ति से विजयी हुआ और इस विजय के उपलक्ष्य में खेलों की नई परंपरा प्रारंभ हुई।
नामकरण–इस विषय में दो विकल्प हैं। प्रथम के अनुसार नाम करण स्थानबोधक है अर्थात् ओलिंपिया घाटी में आयोजित होने के कारण ये खेल ओलिंपिक कहलाए। दूसरे विकल्प के अनुसार ओलिंपिस पर्वतवासी ज्यूस देवता (जो खेलों के अधिष्ठाता माने गए हैं) को प्रसन्न करने के लिए आयोजित होने के कारण देवता के आवास के नाम पर खेलों की संज्ञा ओलिंपिक हुई। पहला विकल्प ही समीचीन प्रतीत होता है।
घोषणा, व्यवस्था, पात्रता–समारंभ तिथि के एक मास पूर्व ही खेलों के दूत घूम घूमकर आगामी समारोह की घोषणा कर डालते थे। तुरंत पारस्परिक संघर्ष स्थगित हो जाते थे। जनविश्वास था कि अधिष्ठाता देव ज्यूस ओलिंपिया की ओर यात्रा करनेवाले प्रतियोगियों तथा दर्शकों की रक्षा करते हैं और यात्रियों के मार्ग में बाधक होनेवाले ज्यूस के कोपभाजन बनेंगे। ऐलिसराज्य में, जिसके क्षेत्र में ओलिंपिया अवस्थित थी, दस अधिकारियों की व्यवस्थापिका प्रबंध सँभालती थी। प्रतियोगियों के लिए चार शर्ते थीं। यथा, वे शुद्ध यूनानी रक्त के हों, जीवन में कोई अपराध न किया हो, दस महीने तक प्रशिक्षण लिया हो, अवधि का अंतिम मास ओलिंपिया में बिताया हो साथ ही और वे ईमानदारी के साथ खेलों में भाग लेने की प्रतिज्ञा करें।
चित्र २. नौका दौड़
एक सांस्कृतिक समागम भी–परंतु यह खेल मात्र क्रीड़ाप्रतियोगिता ही नहीं, अपितु, राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान प्रदान का एक महान् अवसर भी होता था। देश के मूर्धन्य कवि, शिल्पी, राजनीतिज्ञ, संगीतज्ञ, दार्शनिक और इतिहासकार, सभी को यह महोत्सव आकर्षित करता था। शिल्पी अपने छेनी से खिलाड़ियों का शरीरसौष्ठव प्रस्तर में उतारते थे। प्रसिद्ध शिल्पी फ़िडियास ने तो अपनी एक वर्कशॉप ओलिंपिया परिसर में ही बना रखी थी। उसने खेलों के अधिष्ठाता ज्यूस देव की सुवर्ण और हाथीदाँत खचित संगमरमर प्रतिमा गढ़ी थी, जिसपर लिखा था, '' करमाइडीज़ के पुत्र एथेंसवासी फ़िडियास ने मुझे बनाया है।'' कवि खिलाड़ियों की साधना, साहस और उपलब्धियों से प्रेरणा ग्रहण करते थे। पिंडार के 'ओड्स टु विक्ट्री' में सबसे अधिक (१४) ओलिंपिक विजेतओं पर ही हैं। इस प्रकार बेकीलाइड्स द्वारा रचित तेरह पदों में से चार (सर्वाधिक) का विषय ओलिंपिक उपलब्धियाँ ही हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार हेरोडोटस स्वरचित इतिहास ओलिंपिक खेलों के दर्शकों और खिलाड़ियों को पढ़कर सुनाया करता था।
उद्घाटन समारोह–प्राचीन यूनान की व्यायामसाधना धार्मिक भावना से आवेष्टित थी। प्रत्येक प्रतियोगिता का कोई एक अधिष्ठिता देवता होता था तथा संपूर्ण वातावरण श्रद्धा, तपश्चर्या, पवित्रता और निष्ठा से सिक्त रहता था। जनविश्वास था कि बारह देवताओं की एक ओलिंपिक परिषद् पवित्र आचरणवाले निष्ठावान् खिलाड़ियों की निगहबानी करके पुरस्कृत करती है। ओलिंपिक के अधिष्ठाता ज्यूस माने गए थे। प्रतियोगी उपवास के उपरांत ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानोपरांत पुरोहित के पीछे चलकर ज्यूस की वेदी पर एक वराह तथा पेलोप्स की समाधि पर एक काले रंग के मेढ़े का बलिदान करते थे। तूर्यो की समवेत ध्वनि, कपोतों के विमोचन तथा दर्शकों की हर्षध्वनि के मध्य उद्घाटन संपन्न होता था।
स्थली–खेलों के प्रारंभिक काल में ओलिंपिया की घाटी में एल्फ़ियस नदी के तटवर्ती मैदान में प्रतियोगिताएँ होती थीं और दर्शक निकटवर्ती पहाड़ की ढलानों पर बैठकर इन्हें देखते थे परंतु ई. पू. चौथी शताब्दी में देवपीठों के निकट एक विशाल स्टेडियम का निर्माण हुआ। तदुपरांत उसी के पास रथों की दौड़ के लिए एक विशाल हिपोड्रोम बना। कालांतर में प्रतियोगियों के व्यायाम, अभ्यंग, स्नान एवं विश्रामादि के लिए एक जिम्नेज़ियम तथा उसी से सटा हुआ, डोरिक शैली के स्तंभों पर छत साधकर, छतदार धावनपथ (कवर्ड रनिंग ट्रैक) निर्मित हुआ।
घटनाएँ, भूषा, अवधि–पहले केवल एक ही घटना थी–पैदल दौड़। आठवें ओलिंपिक में पंचागी प्रतियोगिता भी (पैंटेथलन) प्रारंभ हो गई। इसमें पैदल दौड़, लंबी कूद, चक्रप्रक्षेप, बर्छी प्रक्षेप तथा कुश्ती, ये पाँच घटनाएँ थीं। २३वें ओलिंपिक में मुक्केबाजी को स्थान मिला तथा २५वें में दो घोड़ोंवाले रथों तथा घोड़ों एवं बछड़ों की दौड़ भी सम्मिलित हो गई। ३३वें ओलिंपिक में चार घोड़ोंवाले रथों की दौड़ तथा पैंक्रेटियम (कुश्ती और मुक्केबाजी का सम्मिश्रण) कार्यक्रम में आ गए। छठी शताब्दी ई.पू. में कवचदौड़ इनमें शामिल की गई।
चित्र ३. बर्छा फेंक (जैवलीन ्थ्राो) का प्रतियोगी
प्रारंभ में प्रतियोगिताएँ एक दिन में ही समाप्त हो जाती थीं परंतु घटनाओं की वृद्धि के साथ अवधि बढ़कर पाँच दिन तक जा पहुँची। प्रतियोगिताओं में खिलाड़ी एकदम निर्वस्त्र होकर भाग लेते थे। अत: डेमीटर की पुजारिन तथा क्वाँरी कन्याओं को छोड़, अन्य महिलाओं को खेल देखने की अनुमति नहीं थी। नियमभंग का दंड था, प्राणदंड। हुआ ऐसा कि स्पार्टा निवासी पिसीडोरस के पिता की मृत्यु होने के कारण प्रशिक्षण का दायित्व उसकी माँ ने सँभाला और छद्मवेश में प्रतियोगिता देखने जा पहुँची। पुत्र के सर्वजेता होने पर वह हर्षातिरेक में चीखकर नाच उठी और पहचान ली गई। अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किए जाने पर करुण-प्रसंग-उद्घाटन ने इतिहास बदल दिया और तब से महिलाएँ देखने ही नहीं, संभवत: भाग लेने की भी अधिकारिणी मान ली गई। १२८वें खेलों में दो बछड़ों की रथदौड़ में मैसेडोनिया की बेलिस्के (Belische) के सर्वजेत्री होने का उल्लेख है।
पुरस्कार और सम्मान–ओलिंपिक प्रतियोगिताएँ पूर्ण रूप से अव्यावसायिक अथवा शौकिया थीं। स्वास्थ्य, कौशल एवं चरित्रनिर्माण का उच्चादर्श इसका प्राण था। सर्वजेताओं का आधिकारिक सम्मान जैतून (Olive) की पत्तियों के मुकुट तथा खजूर की एक टहनी मात्र से किया जाता था। परंतु वास्तविक पुरस्कार और प्रेरणास्रोत थी अमरकीर्ति। देश के जनगायक, कवि और इतिहासकारों की वाणी विजेताओं का यशोगान करती थीं, शिल्पी उनका रूप प्रस्तर में उतारते थे, ओलिंपिया से घर तक की यात्रा एक अतुलित शोभायात्रा होती थी और अपने नगर में खिलाड़ियों का देवदुर्लभ स्वागत होता था।
पतन और अंत–श्रेष्ठ परंपराएँ राष्ट्र का बल होती हैं। जब तक ओलिंपिक खेल पवित्र रहे, यूनान अजेय रहा। जैसे ही यह परंपरा उत्कोच और भ्रष्टाचार का शिकार बनी, खेलों का आकर्षण मंद पड़ गया और राष्ट्र की शक्ति टूट गई। अंत में १४६ ई.पू. में रोम की चपेट से यूनानी स्वाधीनता का दीप बुझ गया। दासता ने उत्कोच, भ्रष्टाचार को बढ़ाया। रोमन स्वामियों ने ओलिंपिक खेलों के साथ खिलवाड़ किया। चरित्र नियामक घटनाओं के स्थान पर बर्बरतापूर्वक, उत्तेजनावर्धक घटनाओं का सम्मान बढ़ा और इनका रूप विकृत हो गया। ओलिंपिया के पवित्र देवपीठ आक्रामकों द्वारा लूटे गए और अंत में रोमन सम्राट् थियोडासियस प्रथम ने ३९४ ई में अपनी राजाज्ञा से इन्हें बंद कर दिया। इतना ही नहीं, थियोडासियस द्वितीय ने ४२६ ई. में परिसर की वेष्टनी ध्वस्त करवा दी। एक शताब्दी बाद भूकंप और बाढ़ ने विध्वंस को संपूर्ण कर दिया। मिट्टी का कफन ओढ़कर खेल सो गए।
अर्वाचीन ओलिंपिक खेल–(ओलिंपिक पुनश्चेतना) १५वीं शताब्दी में ही यूरोप में नवजागरण प्रारंभ हो चुका था। मठों के अज्ञातवास से निकलकर प्राचीन यूनान एवं रोम का साहित्यिक वैज्ञानिक और दार्शनिक चिंतन का मार्ग प्रशस्त कर रहा था। १८वीं शती का जर्मनी क्रांतिकारी विचारक रूसो के शैक्षणिक आदर्शो पर निसर्गवादी स्कूलों की स्थापना कर रहा था। इन्हीं स्कूलों में से एक में, आधुनिक युग के प्रथम व्यायाम विचारक जे.एफ.गट्स मथ्स (१७४९-१८३९) ने अपने ग्रंथों में प्राचीन यूनान के ओलिंपिक खेलों की पहली बार चर्चा की। जर्मन शोधकर्ता एंर्स्ट कर्टियस ने ओलिंपिया घाटी में उत्खनन कार्य प्रारंभ किया। प्राचीन ओलिंपिक खेलों का इतिहास प्रकाश में आने लगा। कर्टियस वक्ता भी था। १० जनवरी, १८५२ को उसने बर्लिन में 'प्राचीन खेल' विषय पर भाषण देकर ओलिंपिक खेलों को चर्चा का विषय बना दिया। चर्चा के परिणामस्वरूप चेतना जागी। रूमानिया के धनाढय व्यापारी मेजर एवांजलिस ज़प्पास ने सन् १८५६ में आर्थिक सहायता के आश्वासन सहित यूनान नरेश के पास प्राचीन यूनानी खेलों के पुनरुद्धार के लिए प्रस्ताव भेजा। सन् १८५९ में राष्ट्रीय स्तर पर एथेंस में प्रथम अखिल यूनानी खेल आयोजित हुए। परंपरा चल निकली। सन् १८७०, १८७५, १८८८ और १८८९ में भी ये आयोजित हुए। मेजर ज़प्पास की पहल से यूरोप के जनमानस में ओलिंपिक चेतना का विकास हुआ। समय की धुंध में लिपटी क्रीड़ापरंपरा में चैतन्य का संचार हुआ।
खेलों का पुनर्जन्म–इस समय फ्रांस के राजपरिवार से संबंधित एक उदारचेता शिक्षाविद् बैरन पिरे डी कूबरटिन (Baron Pierre de Coubertin) भी ओलिंपिक चेतना से प्रभावित हो रहा था। उसकी खेलकूद में गंभीर रुचि थी। फ्रांसीसी सरकार ने १८८९ में उसे व्यायाम पद्धतियों के अध्ययनार्थ विश्वभ्रमण के लिए भेजा। इस कल्पनाशील पुरुष के हृदय में ओलिंपिक खेलों के सार्वभौम स्वरूप की रूपरेखा बन रही थी। उसके अनुसार इन खेलों ने प्राचीन यूनानियों को ऐक्य, शांति और अन्य उच्च मानवीय मूल्यों की ओर प्रेरित करके उनकी संस्कृति को अनुकरणीय बनाया था तथा आधुनिक तनावपूर्ण राजनीतिक वातावरण को परिवर्तित करके विश्वमैत्री के विकास के लिए इनकी पुन: आवश्यकता थी। अपने विश्वयात्रा के दौरान कूबरटिन ने अनेक देशों के क्रीड़ाप्रेमियों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओलिंपिक खेलों के पुनरुद्धार की संभावना पर विचार विनिमय किया। हमखयाल मिलते गए और हौसला बढ़ता गया। यात्रा से लौटकर २५ नवंबर, १८९२ को कूबरटिन ने पेरिस के सोर्बोन हाल में ओलिंपिक खेलों के पुनरुद्धार पर भाषण दिया। उसके विचारों का जोरदार स्वागत हुआ। परिणामस्वरूप १८९३ में मसले को आगे बढ़ाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया। १६ से लेकर २३ जून, १८९४ तक १३ देशों के प्रतिनिधियों ने समस्या पर विचार किया। २१ देशों ने समर्थन संदेश भेजे। २३ जून को प्रस्ताव पारित हुआ कि यूनानी ओलिंपिक खेलों के नमूने पर प्रत्येक चार वर्ष प्रतियोगिताएँ हों और प्रत्येक राष्ट्र को आमंत्रित किया जाए। कूबरटिन का विचार था कि सन् १९०० में पेरिस में प्रथम खेलों का आयोजन हो परंतु यूनानियों ने प्रस्ताव किया कि आधुनिक युग के प्रथम ओलिंपिक खेलों के आयोजन का आतिथ्याधिकार उन्हें मिले तथा खेल १८९६ में एथेंस नगर में हों। प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। १२ सदस्यों की अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति (आई.ओ.सी.) बनी और तैयारियाँ प्रारंभ हो गई। ओलिंपिया की घाटी में १५०३ वर्ष पूर्व समाधिस्थ परंपरा जी उठी। जगानेवाले मनीषी कूबरटिन को 'आधुनिक ओलिंपिक खेलों का पिता' कहा जाता है।
चित्र ४. भारी भारवहन (हैवी वेट लिफ़्टिंग) का प्रतियोगी
आधुनिक शृंखला–५ अप्रैल, १८९६ को यूनान की राजधानी एथेंस में आधुनिक युग के प्रथम ओलिंपिक खेलों का श्रीगणेश हुआ। तब से प्रथम विश्वयुद्ध में एक बार (१९१६) तथा द्वितीय विश्वयुद्ध में दो बार (१९४० तथा १९४४) रुकते हुए प्रत्येक चार वर्ष पर खेलों का आयोजन होता जा रहा है। शृंखला का क्रम निम्न प्रकार है :
एथेंस १८९६, २. पेरिस १९००, ३. सेंट लुइस १९०४, ४. लंदन १९०८, ५. स्टाकहोम १९१२, ६. बर्लिन १९१६ (युद्ध के कारण नहीं हो सके), ७. ऐटवर्प १९२०, ८. पेरिस १९२४, ९. ऐम्स्टरडम १९२८, १०. लॉस ऐंजेल्स १९३२, ११. बर्लिन १९३६, १२. टोकियो बाद में हेलसिंकी १९४० (युद्ध के कारण नहीं हो सके), १३. लंदन १९४४ (युद्ध के कारण नहीं हो सके), १४. लंदन १९४८, १५. हेलसिंकी १९५२, १६. मेल्बोर्न १९५६, १७. रोम १९६०, १८. टोकियो १९६४, १९. मेक्सिको सिटी १९६८, २०. म्यूनिख १९७२। आगामी २१ वें खेल मांट्रियल (कनाडा) में १८ जुलाई से १ अगस्त, १९७६ तक आयोजित होंगे।
व्यवस्था–खेलों का प्रबंध अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति करती है जिसका मुख्यालय स्विटज़लैंड के लॉसेन नगर में है। संप्रति समिति में ४७ देशों के ७२ सदस्य हैं। सदस्यता आजीवन रहती है, बशर्ते सदस्य बैठकों में नियमित रूप से भाग लेता रहे। सदस्यों पर अपने देश की सरकार अथवा अन्य किसी का कोई दबाव नहीं रहता। वे अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपना कार्य करते हैं। बैरन कूबरटिन सन् १९३२ तक स्वयं समिति के सभापति रहे। तत्पश्चात् सन् १९४२ तक बेल्जियम के काउंट हेनरी डी बेले लाटूर, सन् १९५२ तक स्वीडन के जे. सिगफ्रड़ एडस्ट्रोम तथा सन् १९७२ तक अमरीका के एवरी ब्रंडेज सभापति रहे। आजकल सभापति हैं आयरलैंड के लार्ड किलामिन।
चित्र ५. साइकिल दौड़ का प्रतियोगी
अव्यावसायिक खेल–इन खेलों में वही खिलाड़ी भाग ले सकते हैं जो केवल आनंदलाभ के लिए प्रतियोगिता में भाग लेते हों, जीविकोपार्जन के लिए नहीं। इन्हें 'एमेच्योर' खिलाड़ी कहते हैं। खिलाड़ियों का निर्वाचन उनके राष्ट्र की ओलिंपिक समितियाँ करती हैं जो अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के आधीन होती हैं।
प्रतियोगिता कार्यक्रम–यह कार्यक्रम प्राचीन परंपरा के अनुरूप ही आधुनिक खेलों का सर्वाधिक सम्मानित एवं महत्वपूर्ण क्रीड़ा ऐथलेटिक्स है। एथेंस के पहले खेल में ऐथलेटिक्स, भारोत्तोलन, कुश्ती, तैराकी, साइकिलिंग, टेनिस, निशानेबाजी, तलवारबाजी और जिम्नास्टिक्स में प्रतियोगिताएँ हुई थीं। क्रमश: नई क्रीडाएँ कार्यक्रम में जुड़ती गई जिनमें बड़े खेल एवं हिम क्रीड़ाएँ हैं। हिम क्रीड़ाएँ सन् १९२४ से प्रारंभ हुई। इनका आयोजन मुख्य आयोजन के पूर्व ही पृथक रूप से जनवरी, फरवरी (शीतकाल में) 'विंटर गेम्स' के नाम से होता है। महिलाओं का प्रवेश वैसे सन् १९१२ में ही हो चुका था परंतु ऐथलेटिक्स में उनकी प्रतियोगिताएँ १९२८ से प्रारंभ हुई। कार्यक्रम की सीमाओं का विस्तार क्रीड़ा कौशलों के परे ललित कलाओं के क्षेत्र तक है। इस अवसर पर आयोजित कलाप्रदर्शनी में भव्य निर्माण, शिल्प, नगरनियोजन, चित्रांकन, रेखांकन, मूर्तिशिल्प, साहित्य, नाटक तथा संगीत में प्रविष्टियाँ ली जाती हैं। इधर १९६८ से युवाशिविर का आयोजन हुआ है जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समागम है।
आतिथ्य का अधिकार–यह अधिकार नगर को दिया जाता है राष्ट्र को नहीं। सदस्य राष्ट्रों के क्रीड़ा-सुविधा-संपन्न नगरों के नगरप्रमुख (मेयर) अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के समक्ष आतिथ्याधिकार हेतु आवेदन प्रस्तुत करते हैं। समिति उनके पात्रत्व पर विचार करके योग्यतम नगर को स्वीकृति देती है। यह कार्य वर्षो पूर्व संपन्न हो जाता है क्योंकि नियोजन और तैयारी बहुत समय लेती है।
ध्वज–श्वेत पृष्ठभूमि पर नीले, पीले, काले, हरे और लाल वर्णो के पाँच संगुफित वृत्त शृंखलाबद्ध रहते हैं। शृंखला आड़ी रहती है जिसमें नीले, काले और लालवृत्त किंचित् ऊपर तथा पीले और हरे किंचित् नीचे रहते हैं।
ओलिंपिक ग्राम–लॉस ऐंजेल्स ओलिंपिक (१९३२) में प्रथम बार खिलाड़ियों एवं अधिकारियों के आवास भोजनादि के लिए ओलिंपिक ग्राम निर्मित हुआ और तब से यह परंपरा चल पड़ी।
ओलिंपिक ज्योति–यह प्रथा बर्लिन ओलिंपिक खेल से प्रारंभ हुई इसके अनुसार ओलिंपिक परंपरा की आदिभूमि, यूनान की ओलिंपिया घाटी में, धवलवसना कुमारियाँ आतशी शीशे से पवित्र अग्नि प्रज्वलित करती हैं और फिर धावकों की रिले द्वारा मशाल के माध्यम से ज्योति प्रतियोगिता स्थल तक पहुँचाई जाती है जहाँ वहएकविशेष अग्निकुंड में स्थापित की जाती है और समापन की घोषणा पर्यत निरंतर प्रज्वलित रहती है।
चित्र ६. स्केटिंग
अवधि–आजकल खेल १५ दिन तक चलते हैं। आगामी खेल (मांट्रियल)१८ जुलाई से १ अगस्त १९७६ तक होंगे।
पुरस्कार–विभिन्न क्रीड़ाओं की विभिन्न घटनाओं में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करनेवाले खिलाड़ियों को क्रमश: स्वर्ण, रजत तथा कांस्य पदक प्रदान किए जाते हैं। खेलों में दल के प्रत्येक खिलाड़ी को पदक प्रदान किया जाता है।
उद्घाटन एवं समापन–खेल का उद्घाटन व्यवस्थापक राष्ट्र का राजा या राष्ट्रपति करता है। मुख्य अतिथि के आगमन पर मंचप्रयाण प्रारंभ होता है–आगे ध्वज लिए यूनान का दल, उसके पीछे वर्णक्रमानुसार शेष दल और अंत में मेजबान देश का दल। मंचप्रयाण और अभिवादन के पश्चात् दल क्रीडांगण में एकत्र होते हैं। ओलिंपिक ध्वज लहराया जाता है। मेजबान देश का वरिष्ठ खिलाड़ी सभी खिलाड़ियों की ओर से सचाई, सद्भावना तथा न्यायोचित ढंग से अपने राष्ट्र तथा संसार में खेलकूद के गौरव हेतु भाग लेने की प्रतिज्ञा करता है। अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति का सभापति मुख्य अतिथि से उद्घाटन हेतु प्रार्थना करता है। उद्घाटन के साथ है ओलिंपिक ज्योति। खेल का समापन भी इस प्रकार धूमधाम से होता है। पवित्र अग्नि बुझा दी जाती है, पाँच बार पोतों की सलामी दी जाती है और ओलिंपिक ध्वज आगामी खेलों के मेजबान नगर के नगर प्रमुख के हवाले कर दिया जाता है।
साम्यवादी देशों का प्रवेश–१९५२ ई. में सोवियत रूस तथा अन्य साम्यवादी देशों (केवल लाल चीन को छोड़कर) ने खेलों में प्रवेश करके ऐसा भव्य प्रदर्शन किया कि आधी शताब्दी से स्थापित अमरीकी एकाधिकार भंग हो गया। उपलब्धियों की दृष्टि से यह अच्छा ही हुआ। आजकल दोनों पक्ष निरंतर तकनीकी विकास में संलग्न हैं और मानव सामर्थ्य की सीमाएँ बढ़ रही हैं।
तथापि रंगभेद, जातिसंघर्ष तथा आर्थिक समस्याएँ यदा कदा मनुष्य की निम्न कोटि की प्रवृत्तियों को उभारकर उसे क्रोध और घृणा की ओर मोड़ ओलिंपिक आंदोलन के भाग में विघ्न डालती रहती हैं। सन् १९७२ में म्यूनिख में आयोजित ओलिंपिक खेलों के दौरान अरब छापामारों ने इज़रायली खिलाड़ियों में से कई की हत्या कर दी जिससे विश्व भर में हाहाकार मच गया। परंतु संस्थापक कूबरटिन का निम्नलिखित वरद वाक्य हृदय में धारण किए ओलिंपिक खेल शांति और सौहार्द्र के लक्ष्य की ओर प्रगतिशील हैं :
''आनंद एवं सुमैत्री का साम्राज्य तथा मानवता का कल्याण करती और राष्ट्रों के बीच सौहार्द्रपूर्ण, नित्य वर्धमान मैत्रीभाव बिखेरती ओलिंपिक ज्योति युगयुगांतर तक गतिशील रहे।''
(जी.कु.पा.)
ओलिंपिक कीर्तिमानों (रेकार्डो) की तालिका १.
(१९५६ ई. तक)
प्रतियोगिता स्थान वर्ष विजेता राष्ट्र समय तथा दूरी
१०० मीटर लास ऐंजेल्स १९३२ ई.टोलेन संयुक्त राष्ट्र अमरीका १०.० सेकंड
'' बर्लिन १९३६ जे. ओवेंस '' ''
'' लंदन १९४८ एच. डिलार्ड '' ''
'' मेलबोर्न १९५६ आर.मारो '' ''
'' मेलबोर्न १९५६ आई. मरचिसन '' ''
२०० मीटर मेलबोर्न १९५६ आर.मारो '' २०.६ सेकंड
४०० मीटर हेलसिंकी १९५२ वी. रोडन जमैका ४५.९ सेकंड
'' '' १९५२ एच. मकिनली '' ''
४०० मीटर रिले मेलबोर्न १९५६ आई. मरचिसन, एल.किंग, संयुक्त राष्ट्र ३९.५ सेकंड
टी.बेकर तथा आर. मारो। ''
८०० मीटर मेलबोर्न १९५६ टी. कुर्टनी '' १ मि. ४७.७ सें.
१,५०० मीटर '' १९५६ आर. डिलेनी आयर ३ मि. ४१.२ सें.
१,६०० मीटर रिले हेलसिंकी १९५२ ए. विंट, एल. लैंग, एच. मकिनली, जमैका ३ मि. ३.९ सेंकड
नली, तथा वी. रोडन
३,००० मीटर स्टीपलचेज़ मेलबोर्न १९५६ सी. ब्रेशर ग्रेट ब्रिटेन ८ मि. ४१.२ सें.
५,०००मीटर मेलबोर्न १९५६ वी. कुट्स रूस १३ मि. ३९.६ सें.
१०,००० मीटर मेलबोर्न १९५६ वी.कुट्स '' २९ मि. ४५.६ सें.
११० मीटर हर्डल मेलबोर्न १९५६ एल.केलहून संयुक्त राष्ट्र १३.५ सेकंड
अमरीका
४०० मीटर हर्डल मेलबोर्न १९५६ जी. डेविस '' ५०.१ सेंकड
इ.सदर्न
मैराथॉन (२६ मील ३८५ गज) हेलसिंकी १९५२ ई. ज़ाटोपेक चेकोस्लोवेकिया २ घंटा २३ मिनट ०३.२ सें.
१० किलोमीटर पैदल मेलबोर्न १९५६ एल. स्पिरिन रूस १घंटा ३१ मिनट २७.४ सें
५० किलोमीटर पैदल हेलसिंकी १९५२ जी. डारडानी इटली ४ घंटा २८ मिनट ७.८ से.
ऊँची कूद मेलबोर्न १९५६ सी. डयूमस संयुक्त राष्ट्र अमरीका ६ फुट ११ १/४ इंच
(२.१२ मीटर)
लंबी कूद बर्लिन १९३६ जे.ओवेंस अमरीका २६ फुट ५ ३/८ इंच
(८.०३ मीटर)
हॉप स्टेप कूद मेलबोर्न १९५६ ए.एफ. डीसिल्वा ब्राज़िल ५३ फुट ७ १/२ इंच
(१६.३५ मीटर)
पोल वॉल्ट मेलबोर्न १९५६ आर. रिचर्ड्स संयुक्त राष्ट्र अमरीका १४ फुट ११ १/२ इंच
(४.५६ मीटर)
गोला फेंक '' १९५६ पी. ओब्रायन '' ६० फुट ११ इंच
(१८.५७ मीटर)
हथौड़ा फेंक '' १९५६ एच कानोली '' २०७ फुट ३ ३/४ इंच
(६३.१९ मीटर)
चक्रक्षेप '' १९५६ ए.ओर्टर '' १८४ फुट १० ३/४ इंच
(५६.३६ मीटर)
बर्छा फेंक '' १९५६ इ. डेनियलस नारवे २८१ फुट २ १/४ इंच
(८५.७१ मीटर)
डेकेथलान (१० प्रतियोगिताओं) '' १९५६ एम. कैंपबेल संयुक्त राष्ट्र अमरीका ७.९३७ अंक
(सै.ल.प.)
एथलेटिक्स के ओलिंपिक कीर्तिमानों की तालिका २, ई. १९७२ तक
प्रतियोगिता समय/दूरी/ऊँचाई/अंकविजेता राष्ट्र स्थान वर्ष
१. १०० मीटर ९०.९ सेकंड जे.हाइंस सं.रा. अमरीका मेक्सिको सिटी १९६८
२. २०० मीटर १९.८ सें. टी. स्मिथ सं.रा. अमरीका मेक्सिको सिटी १९६८
३ ४०० मीटर ४३.८ सें. एल. इवान्स सं.रा. अमरीका मेक्सिको सिटी १९६८
४. ४ुं१०० मी. रिले ३८.२ सें. एल. ब्लैक, आर. सं.रा.अमरीका म्यूनिख १९७२
टेलर, जी. टिंकर, हर्ट
५. ८०० मीटर १मि. ४४.३ सें. आर. डाउबेल आस्ट्रेलिया मेक्सिको सिटी १९६८
६. १,५०० मीटर ३ मि. ३४.९ सें. एच.काइनो कीनिया मेक्सिको सिटी १९६८
७. ४ ४०० मी. रिले २ मि. ५६.१ सें. वी. मैथ्यूज, आर. सं.रा.अमरीका मेक्सिको सिटी १९६८
फ्रीमैन, एल. जेम्स, एल. इवांस
८. ३,००० मीटर स्टीपल चेज़ ८मी. २३.६सें. किपचोगे कीनो कीनिया म्यूनिख १९७२
९. ५,००० मीटर १३ मी.२६.४ सें. लासे वीरेन फिनलैंड म्यूनिख १९७२
१०. १०,००० मीटर २७ मी. ३८.४ सें. लासे वीरेन फिनलैंड म्यूनिख १९७२
११. ११० मीटर हर्डिल १३.२ से. राड मिलबर्न सं.रा. अमरीका म्यूनिख १९७२
१२. ४०० मीटर हर्डिल ४७.८ सें. जोन अकी बुआ यूगांडा म्यूनिख १९७२
१३. मेराथान २ घं. १२ मि. ११.२ सें. ए. बिकीला इथियोपिया टोकियो १९६४
(२६ मी. ३८५ गज)
१४. २० कि.मी. पदयात्रा १ घं. २६ मि. ४२.६ से. पीटर फ्रेंकेल जर्मनी म्यूनिख १९७२
१५. ५० कि.मी. पदयात्रा ३ घं. ५६ मि. ११.६ से. बेंर्ड कानेनबर्ग पश्चिम जर्मनी म्यूनिख १९७२
१६. ऊँची कूद २.२४ मीटर आर.फासबरी सं.रा. अमरीका मेक्सिको सिटी १९६८
१७. लंबी कूद ८.९० मीटर आर. बोमोन सं.रा. अमरीका मेक्सिको सिटी १९६८
१८. तिकड़ी कूद १७.३९ मीटर वी. सनीर सोवियत रूस मेक्सिको सिटी १९६८
१९. पोल वाल्ट ५.५० मीटर वुल्फगांग नोर्डविंग पूर्व जर्मनी म्यूनिख १९७२
२०. गोला प्रक्षेप १.१८ मीटर व्लाट्स्लाव कोमर पोलैंड म्यूनिख १९७२
२१. गुर्ज प्रक्षेप ७५.०० मीटर अनातोले बोंदारचुक सोवियत रूस म्यूनिख १९७२
२२. चक्र प्रक्षेप ६४.७८ मीटर एल्फ्रडे ओएर्टर सं.रा. अमरीका मेक्सिको सिटी १९६८
२३. बर्छी प्रक्षेप ९०.४८ मीटर कालू वोल्फरमन पश्चिम जर्मनी म्यूनिख १९७२
२४. डेकाथलान ८,४५० अंक निकोलाय अवीलोव सोवियत रूस म्यूनिख १९७२
महिला वर्ग
१. १०० मीटर ११.०० सेकंड डब्ल्यू टायस सं.रा. अमरीका मेक्सिको सिटी १९६८
२. २०० मीटर २२.४ सें. रेनार्ट स्टेखर पूर्व जर्मनी म्यूनिख १९७२
३. ४०० मीटर ५१.१ सें. मोनीका सेर्ट पूर्व जर्मनी म्यूनिख १९७२
४. ८०० मीटर १ मि. ५८.६ सें. हिडेगार्ड फाल्क पश्चिम जर्मनी म्यूनिख १९७२
५. १,५०० मीटर ४ मि. १.४ सें. ल्युटमिला ब्रज़ीना सोवियत रूस म्यूनिख १९७२
६. ४ुं१०० मी. रिले ४२.८ सें. सी. क्राउसे, आई.मिकलर पश्चिम जर्मनी म्यूनिख १९७२
ए.गिबटर, हेच रोन्सेंडाल
७. ४ुं४०० मी. रिले ३ मि. २३.० सें. डी. कैरिलंग, आर. कूने, पूर्व जर्मनी म्यूनिख १९७२
एच. साइडलर, एम. सेर्ट
८. १०० मीटर हर्डिल १२.५९ मीटर एन्नेली एरहार्ट पूर्व जर्मनी म्यूनिख १९७२
९. ऊँची कूद १.९२ मीटर उलरिके मेफार्थ पश्चिम जर्मनी म्यूनिख १९७२
१०. लंबी कूद ६.८२ मीटर वी. विस्कापोलियान् रूमानिया मेक्सिको सिटी १९६८
११. गोला प्रक्षेप २१.०३ मीटर नदेज्दोआ चिज़ोवा सोवियत रूस म्यूनिख १९७२
१२. चक्र प्रक्षेप ६६.६२ मीटर फैना मैल्निक सोवियत रूस म्यूनिख १९७२
१३. बर्छी प्रक्षेप ६३.८८ मीटर रूथ फुक्स पूर्व जर्मनी म्यूनिख १९७२
१४. पैंटेथलान ४,८०१ अंक मैरी पीटर्स ब्रिटेन म्यूनिख १९७२
(जि.कु.पा.)
ओलिंपिक खेल प्रतियोगिता में भारत का स्थान
सन् स्थान पुरस्कार
१९०० पेरिस एन.जी. प्रिचार्ड : २०० मीटर रजत पदक।
१९२४ '' जे.के. पिट : ४०० मीटर सेमीफाइनल में तृतीय।
१९२४ '' दिलीप सिंह : ऊँची कूद में छठा स्थान।
१९३२ लॉस ऐंजिल्स एम. सटन : ११० मीटर बाधा में सातवाँ स्थान।
१९४८ लंदन एच. रिबैलो : तिकड़ी कूद के फाइनल में बाहर।
१९४८ '' बलदेव सिंह : ऊँची कूद में फाइनल में बाहर।
१९४८ '' के. डी. जादव : बैंटमवेट कुश्ती में छठा स्थान।
१९५२ हेलसिंकी के.डी. जादव : फ्री स्टाइल बैंटम वेट में कांस्य पदक।
१९५२ '' मांग्यू : फ्री स्टाइल फेदरवेट में चौथा स्थान।
१९५२ '' लेवी पिंटो : १००-२०० मीटर दौड़ में सेमी फाइनल तक पहुँचे।
१९६० रोम मिलखा सिंह : ४०० मीटर में चौथा स्थान।
१९६० '' माधो सिंह : मिडिलवेट कुश्ती में छठे।
१९६४ टोकियो गुरवचन सिंह : ११० मीटर बाधा में पाँचवें।
१९६४ '' स्टीफी डिसूजा : ८०० मीटर सेमी फाइनल में सातवाँ स्थान।
१९६४ '' विशंभर सिंह : फ्री स्टाइल बैंटमवेट कुश्ती में छठा स्थान।
ओलिंपिक हाकी में भारत
सन् पदक
१९२८ स्वर्ण पदक
१९३२ '' ''
१९३६ '' ''
१९४८ '' ''
१९५२ '' ''
१९५६ '' ''
१९६० रजत पदक
१९६४ स्वर्ण पदक
१९६८ कांस्य पदक
१९७२ '' ''
फुटबाल में १९५६ में चौथा स्थान।
(कै.च.श.)