ऐल्कोहल वे कार्बनिक पदार्थ हैं जिनमें एक या एक से अधिक हाइड्रॉक्सिल समूह (OH) रहते हैं। हाइड्रॉक्सिल समूह बेंज़ीन कार्बन से संयुक्त नहीं रहना चाहिए। यदि बंज़ीन कार्बन के साथ हाइड्राक्सिल समूह संयुक्त रहता है तो ऐसे कार्बनिक पदार्थो को 'फ़ीनोल' कहते हैं।
ऐल्कोहल की रासायनिक अभिक्रियाएँ विशेष प्रकार की होती हैं और उनके लाक्षणिक गुण किसी विशेष ऐल्कोहल, जैसे मेथिल ऐल्कोहल, एथिल ऐल्कोहल, ग्लाइकोल, ग्लीसिरोल आदि के लक्षणों से प्रकट होते हैं।
संगठन की दृष्टि से ऐल्कोहल तीन प्रकार के होते हैं, प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक। मेथिल ऐल्कोहल क्क्त३ ग्र्क्त और एथिल ऐल्कोहल CH3CH2OH, प्राथमिक ऐल्कोहल के उदाहरण हैं। इनमें प्राथमिक CH2 OH, समूह रहता है। आइसोप्रोपिल ऐल्कोहल (CH CH3 CH OH CH3) द्वितीयक ऐल्कोहल के उदाहरण हैं। इनमें द्वितीयक समूहउ क्क्तग्र्क्त रहता है। ट्राइमेथिल ऐल्कोहल (CH3) 3COH तृतीयक ऐल्कोहल के उदाहरण हैं। इनमें तृतीयक समूह �COH रहता है।
प्राथमिक ऐल्कोहल के उपचयन से ऐल्डीहाइड और कार्बोक्सीलीय अम्ल बनते हैं। जिनमें कार्बन परमाणुओं की संख्या वही रहती है जो ऐल्कोहल में रहती है। द्वितीयक ऐल्कोहल के उपचयन से कीटोन और कार्बोक्सीलीय अम्ल बनते हैं। कीटोन में कार्बन परमाणु की संख्या वही रहती है जो ऐल्कोहल में है परंतु अम्लों में कार्बन परमाणुओं की संख्या घट जाती है। तृतीयक ऐल्कोहल के उपचयन से भी ऐल्डीहाइड, कीटोन और कार्बोक्सीलीय अम्ल प्राप्त होते हैं, परंतु इन सबमें कार्बन परमाणुओं की संख्या ऐल्कोहल के कार्बन परमाणुओं की संख्या से कम होती है।
तीनों प्रकार के ऐल्कोहलों के अवकरण से तदनुकूल हाइड्रोकार्बन बनते हैं। ऐल्कोहल से जल निकाल लेने पर ईथर, एथिलीन आक्साइड और असंतृप्त हाइड्रोकार्बन बनते हैं। अम्लों के साथ अभिक्रिया से ऐल्कोहल एस्टर बनते हैं।
यदि ऐल्कोहल में एक ही हाइड्रॉक्सिल समूह रहे तो ऐसे ऐल्कोहल को मोनो-हाइड्रॉक्सिन अथवा मोनो-हाइड्रिक ऐल्कोहल, दो हाइड्रॉक्सिल समूह हों तो उसे डाइ-हाइड्रॉक्सिल अथवा डाइहाइड्रिक ऐल्कोहल और तीन हाइड्रॉक्सिल समूह हों तो उसे ट्राइ-हाइड्रॉक्सिल अथवा ट्राइहाइड्रिक ऐल्कोहल आदि कहते हैं।
ऐल्कोहल या तो द्रव होते हैं अठवा ठोस। द्रव ऐल्कोहल में विशेष प्रकार की गंध होती है। अणुभार की वृद्धि से गंध कम होती जाती है और कुछ ठोस ऐल्कोहलों में गंध बिलकुल होती ही नहीं।
ऐल्कोहल बड़े उपयोगी पदार्थ हैं। प्रतिदिन व्यवहृत होनेवाली वस्तुओं से लेकर अनेक उद्योग धंधों तक में इनका व्यवहार होता है। मेथिल और एथिल ऐल्कोहल उत्कृष्ट कोटि के विलायक हैं। अनेक प्रकार के प्लास्टिकों के निर्माण में मेथिल ऐल्कोहल का उपयोग होता है। सब सुराओं में एथिल ऐल्कोहल रहता है। अनेक ओषधियों का एथिल ऐल्कोहल एक अत्यावश्यक अंग है। ऐलकोहल से कृत्रिम रबर भी तैयार होता है।
सं.ग्रं. –आइ.मेलन : इंडस्ट्रियल सॉल्वेंट्स (१९३९)। (फू.स.व.)