ऐडम्स, जॉन काउच (१८१९-१८९२), ब्रिटिश ज्योतिषी, का जन्म कॉर्नवाल, इंग्लैंउ में, ५ जून, १८१९ को हुआ था। ऐडम्स पढाई में बहुत कुशाग्रबुद्धि था और उसे स्मिथ पारितोषिक भी मिला था। पढ़ाई समाप्त करते ही वह इस खोज में लग गया कि यूरेनस नामक ग्रह अपने मार्ग से विचलित क्यों होता है: क्या कोई नवीन ग्रह है जो यूरेनस से भी दूर है और वही अपने आकर्षण के कारण यूरेनस को कभी तीव्रग्रामी और कभी मंद किया करता है? उसने सिद्ध किया कि ज्ञात विचलन किसी अज्ञात दूरस्थ ग्रह के कारण हो सकता है और उसने इस 'नवीन ग्रह' की स्थिति भी बताई। उसने अपनी खोजों के परिणाम सितंबर, १८४५ में राजज्योतिषी के पास भेजे और उन्होंने उसे कैंब्रिज के प्रोफ़ेसर चैलिस के पास भेजा। चैलिस ने खोज आरंभ कर दी, परंतु विशेष तत्परता से काम आगे नहीं बढ़ाया।

उधर फ्रांस में लेवेरियर ने भी नवीन ग्रह की स्थिति की गणना की और प्राप्त स्थिति जर्मन ज्योतिषी गैले के पास भेजकर प्रार्थना की कि इसकी खोज तुरंत की जाए। फलस्वरूप नवीन ग्रह दूसरे ही दिन देखा गया। इससे वैज्ञानिक संसार में बड़ी सनसनी फैली। ऐरैगो ने नवीन ग्रह का नाम लेवेरियर रखा। पीछे, इंग्लैंड के राजज्योतिषी के प्रयत्न से नवीन ग्रह का नाम नेप्चून (उवरुण) रखा गया। अब सभी मानते हैं कि नवीन ग्रह के आविष्कार का श्रेय ऐडम्स और लेवेरियर दोनों को मिलना चाहिए।

१८५१ में ऐडम्स रॉयल ऐस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी का सभापति चुना गया। १८५८ में ऐडम्स की नियुक्ति सेंट ऐंड्रयूज़ (स्कॉटलैंड) में गणित के प्रोफ़ेसर के पद पर हुई। परंतु एक साल बाद वह कैंब्रिज में ज्योतिष और ज्यामिति का प्रोफ़ेसर हो गया। दो वर्ष बाद वह कैंब्रिज वेधशाला का डाइरेक्टर नियुक्त हुआ और अंत तक इसी पद पर रहा। १८५२ में ऐडम्स ने चंद्रमा के लंबन की नई सारणी तैयार की जो पूर्वगामी सारणियों से कहीं अधिक शुद्ध थी। एक वर्ष बाद उसका एक शोधविवरण चंद्रमा की मध्य गति के कालांतर त्वरण पर छपा जो बहुत महत्वपूर्ण था। लियोनिड उल्कासमूह के मार्ग की सूक्ष्म गणना भी ऐडम्स ने की, जिसमें उसने दिखाया कि यह समूह एक चक्कर ३३ वर्ष, ३ महीने में लगाता है। पृथ्वी के चुंबकत्व पर भी उसने वर्षों काम किया था और एतत्संबंधी उसकी उपलब्धियाँ उसके मरने पर छपीं।

सं.ग्रं.द सायंटिफ़िक पेपर्स ऑव जॉन काउच ऐडम्स (जिल्द १,१८९६; जिल्द २,१९००; प्रकाशक, कैब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस)।