ऐंटिमनी एक रासायनिक तत्व है और आवर्त सारणी में पंचम मुख्य समूह में रखा गया है। इसकी स्थिति आर्सेनिक के नीचे तथा बिसमथ के ऊपर है। यह धातु तथा अधातु दोनों के गुणों से युक्त है। इसमें धातुओं जैसी चमक रहती है, परंतु धातु की सी उच्च विद्युच्चालकता नहीं होती। यह भंगुर है। ऐंटिमनी की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
संकेत Sb
परमाणु अंक ५१
परमाणुभार १२१.८
ऐंट (Sb+५) आयन का अर्द्धव्यास 0.62�10-8 सेंटीमीटर
स्थायी समस्थानिक १२१,१२३
रंग श्वेत, धातु की सी चमक
मणिभीय रूप षट्कोणीय
गलनांक ६३.५� सेंटीग्रेड
क्वथनांक १६३५� सेंटीग्रेड
विद्युत्प्रतिरोधकता ८.२८x १०-४ (ओह्म-सेंटीमीटर)
१५� सेंटीग्रेड पर
ऐंटिमनी तथा ऐंटिमनी सल्फ़ाइड प्राचीन काल से प्रयोग में आते रहे हैं। इस तत्व के उपयोग ४,००० ई. पू. से लोगों को ज्ञात थे। ऐंटिमनी सल्फ़ाइड का प्रयोग (अंजन या सुरमा के रूप में) नेत्रों की सुंदरता बढ़ाने के लिए होता रहा है। मध्यकाल में इसके यौगिक ओषधि के रूप में काम आते थे।
उपस्थिति–ऐंटिमनी तत्व तथा यौगिकों के रूप में पाया जाता है यौगिकों में वेलेंटिनाइट (Sb2 O3), कार्बेटाइड (Sb2 O4), स्टिबनाइट (Sb2 O3) और अन्य ऐंटिमोनाइट तथा ऐंटिमोनेट पाए जाते हैं। खनिजों में सल्फाइड सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। ऐंटिमनी के अयस्क विस्तृत मात्रा में चीन, मेक्सिको और बोलीविया (दक्षिणी अमरीका) में पाए जाते हैं।
गुणधर्म–ऐंटिमनी के विभिन्न अपर रूप हैं, जैसे धूसर ऐंटिमनी, विस्फोटक ऐंटिमनी, पीला ऐंटिमनी, काला ऐंटिमनी इत्यादि। धूसर ऐंटिमनी सबसे साधारण अपर रूप है। विस्फोटक ऐंटिमनी और काला ऐंटिमनी दोनों विस्फोटशील रूप हैं।
ऐंटिमनी त्रिसंयोजक तथा पंचसंयोजक अवस्थाओं में यौगिक बनाता है। ऐंटिमनी का परमाणु आर्सेनिक से अधिक विद्युद्धनीय होता है। वह आर्सेनिक की भाँति हाइड्रोजन से यौगिक बनाता है जिसका सूत्र एेंट हा३ (SbH3) है। यह आहा३ (AsH3) से कम स्थायी है। ऐंटिमनी का परमाणु आर्सेनिक के परमाणु से बड़ा है। इस कारण इसमें कुछ भिन्नताएँ भी हैं। ऐंटिमनी के हेलाइड में लवण के गुण अधिक हैं। इसका विघटन भी सुगमता से होता है।
जलीय माध्यम में ऐंटिमनी किसी भी हैलोजन द्वारा उपयचयित (आवसीकृत) हो सकता है। नाइट्रिक, सल्फ़्यूरिक तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (आकिसजन की उपस्थिति में) ऐंटिमनी को आक्सीकृत कर देते हैं। इस प्रकार ऐंटिमनी अच्छा उपचायक है। वायु में दहन करने पर यह जलने लगता है। हैलोजन तथा गंधक के साथ गर्र्म करने पर भी यह आक्सीकृत हो जाता है। ऊँचे ताप पर कार्बन द्वि-आक्साइड भी इसे आक्सीकृत करता है। इसी प्रकार जलवाष्प तथा कुछ धातुओं के आक्साइड भी ऊँचे ताप पर ऐंटिमनी को आक्सीकृत करते हैं। कुछ धातुएँ जैसे सोडियम, लोह, ऐल्युमिनियम तथा मैगनीशियम भी ऐंटिमनी के साथ अंतर्धात्वीय यौगिक बनाती हैं।
यौगिक–ऐंटिमनी के यौगिकों में ऐंटिमनी ट्राइआक्साइड (sb2 O3) बहुत प्रसिद्ध है। इसके दो अपर रूप धन तथा समचतुर्भुज हैं। समचुर्भुज अपर रूप ३६०रू सेंटीग्रेड से ऊँचे ताप पर स्थायी है। ऐंटिमनी ट्राइआक्साइड ऐंटिमनी या उसके सल्फ़ाइड को वायु में गर्म करने से प्राप्त होता है।
ऐंटिमनी ट्राइसल्फ़ाइड (sb2 S3) प्राकृतिक अवस्था में मणिभ रूप में पाया जाता है। इसका नाम स्टिबनाइट है। अमणिभीय रूप प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है। यह पानी में अविलेय है। यदि विलयन में सल्फ़ाइड आयन उपिस्थत हो तो यह विलेय हो जाता है। ऐंटिमनी ट्राइसल्फ़ाइड शक्तिशाली उपचयक के द्वारा पेंटा-सल्फ़ाइड में परिवर्तित किया जाता है।
ऐंटिमनी के बहुत से पंचसंयोजक यौगिक हैं, जैसे आक्साइड (Sb2 O5), फ़्लोराइड (Sb F5), क्लोराइड (Sb Cl5) आदि। ऐंटिमनी के कार्बनिक व्युत्पन्न भी बनाए गए हैं जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं :
(C2 H5)3 Sb, (C2 H5)2 SBCl, C2 H5 SbCl2
उपयोग–ऐंटिमनी का विशेष उपयोग अन्य धातुओं के साथ मिश्रधातु बनाने में होता है। सीसे के साथ इसका बहुधा उपयोग होता है। थोड़ी मात्रा में सीसे के साथ ऐंटिमनी मिलाने से सीसा कठोर हो जाता है और जल्द श्रांत नहीं होता (काम करते करते अपने आप टूटने को श्रांत होना कहते हैं) ।
ऐंटिमनी ट्राइसल्फ़ाइड का उपयोग वर्णक (रंग) बनाने में, दियासलाई उद्योग में, कारतूस बनाने में और धूम्र उत्पन्न करने में होता है। ऐंटिमनी आक्साइड इनैमल उद्योग में काम आता है। ऐंटिमनी के कुछ यौगिक रंगस्थापक (मार्डे), ज्वालावरोधक और अग्निसह वस्त्र बनाने में प्रयुक्त होते हैं।
ऐंटिमनी के यौगिक खाने पर मनुष्य तथा पशु के शरीर पर हानिकर प्रभाव पड़ता है। इसके यौगिक शरीर में जलन पैदा करते हैं और श्वासक्रिया तथा हृदयगति पर बुरा प्रभाव डालते हैं। ऐंटिमनी के लवण थोड़ी मात्रा में भी मनुष्यों के लिए घातक सिद्ध होते हैं। इसका प्रभाव आर्सैनिक की भाँति ही विषाक्त होता है।
ऐंटिमनी के कुछ यौगिक ओषधि के रूप में हाथीपाँव (फ़ाइलेरिया), कालाजार, घाव आदि के उपचार में प्रयुक्त होते हैं एवं परोपजीवियों द्वारा फैलाए रोगों के उपचार में भी काम आते हैं।
उत्पादन–साधारणतया ऐंटिमनी तत्व स्टिबनाइट (सल्फ़ाइडअयस्क) से निकाला जाता है। ऐंटिमनी सल्फ़ाइड दूसरे सल्फ़ाइडों से कम ताप पर द्रवित होता है। इस प्रकार इसे दूसरे सल्फ़ाइडों से अलग किया जाता है। यदि अयस्क में सल्फ़ाइड की मात्रा कम हो तो उसे उपचयित करके आक्साइड में परिवर्तित करते हैं। यह आक्साइड वाष्पशील है तथा सुगमता से अलग किया जा सकता है। ऐंटिमनी सल्फ़ाइड को पहले उपचयित कर फिर ऐंटिमनी आक्साइड को कार्बन द्वारा अपचयित करते हैं।
अपचयन द्वारा बनाया हुआ ऐंटिमनी शुद्ध नहीं होता है। शुद्ध करने के लिए अशुद्ध ऐंटिमनी को कुछ द्रावक के साथ गर्म करते हैं। इस प्रकार लोहा, आर्सेनिक, ताँबा, सीसा, गंधक आदि अशुद्धियों अलग हो जाती हैं और शुद्ध ऐंटिमनी मिल जाता है।
ऐंटिमनी का उत्पादन अमरीका, बोलीविया, मेक्सिको तथा चीन में विशेष अधिक होता है।
सं.ग्रं.–जे. डब्ल्यू. मेलोर : काम्प्रिहेंसिव ट्रीटिज़ ऑन इनॉर्गेनिक ऐंड थ्योरेटिकल केमिस्ट्री (१९२८-३२); ए. एफ़. वेल्स : स्ट्रक्चरल इनॉर्गेनिक केमिस्ट्री (१९४६)।
(र.चं.क.)