एलिज़ाबेथ पेत्रोव्ना (१८०९-६२) रूस की साम्राज्ञी। महान् पीतर और कैथरीन की कन्या। १७४१ में राजसिंहासन पर बैठी। इसके पहले चार बार इसके राजगद्दी पर दावे की उपेक्षा की गई। आन और वीरेन के आतंकपूर्ण शासनकाल में इसपर कड़ी और सतर्क नजर रखी गई। शरीररक्षक सेना से इसकी दोस्ती फल गई। ६ दिसंबर, १७४१ को दरबारी विप्लव हुआ और इवान छठे को निकाल दिया गया। इसके साथ रूस से जर्मन प्रभाव और प्रभुत्व का भी अंत माना गया।

एलिज़ाबेथ अपने पिता की प्रशंसक थी, किंतु इसकी शिक्षा दीक्षा साधारण थी। नृत्य, संगीत और नाटक की यह शैकीन थी। सौंदर्य-प्रेमी थी और सेंत पीतर्सबर्ग (लेनिनग्राद) की सजावट का खर्च बढ़ाया। इतावली शिल्पी रास्तेरेली की सहायता से १०० लाख रुबल खर्च कर 'शीतप्रासाद' बनवाया।

इसके मंत्री देशभक्त रूसी और विद्धान् थे। वेस्त्रजेव रीयूमिन विदेश मंत्री था और पीतर शूवालेव वित्तमंत्री। इस कारण राज्य को आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और यूरोप की राजनीति में रूस की बात ध्यान से सुनी जाने लगी। शिक्षाप्रसार को इस समय प्रोत्साहन और साहित्य का संरक्षण मिला। विद्वानों का आदर बढ़ा। कला विकसित हुई। मास्को में विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। रूसी रंगमंच का विकास हुआ। दरबार में फ्रेंच भाषा और साहित्य का आदर बढ़ा। रूसी सरदार मातृभाषा की जगह फ्रेंच बोलने में गौरव मानने लगे। फ्रेंच का प्रभाव १९वीं सदी तक बना रहा।

एलिज़ाबेथ ने विवाह नहीं किया। एलेक्सि राजूमोव्स्की इसका सदा कृपापात्र बना रहा। यह यूक्रेनी कज्जाक था। इसको कपड़े का बहुत शौक था। मृत्यु के समय इसकी मृत्युपेटिका में पंद्रह हजार पोशाकें मिलीं। दासता बढ़ी और इसका धर्म (चर्च) में भी प्रवेश हुआ।

१५ वर्ष शांति रही। सप्तवर्षीय युद्ध में रूसी-आस्ट्रियाई सेना ने प्रशा की सेना को १७५७ में बुरी तरह पराजित किया और १७६० में कुछ समय के लिए बर्लिन पर रूसी सेना का अधिकार भी हो गया। प्रशा और फ्ऱेडरिक यदि बच सके, तो बस इसी कारण कि ५ जनवरी, १७६२ को एलिज़ाबेथ की मृत्यु हो गई। (अ.कु.वि.)