एरासिस्ट्राटस ग्रीक शारीरविज्ञ तथा चिकित्सक थे। इनका काल ३०० वर्ष ई. पू. तथा जन्मस्थान कीऑस नामक द्वीप कहा जाता है। कुछ दिन राज्यसेवा करने के पश्चात् ये सिकंदरिया (अलेक्ज़ैंड्रिया) में बस गए और यहाँ इन्होंने शरीर विज्ञान संबंधी अपना शिष्यसमुदाय स्थापित किया।

इन्होंने इस बात का पता लगाया कि प्रमुख तंत्रिकाओं का उद्गम मास्तिष्क से होता है। संवेदक और प्रेरक तंत्रिकाओं के विभेद का भी इन्हें ज्ञान था। त्रिदोष पर अवलंबित रोग-निदान-शास्त्र इनको स्वीकार नहीं था। इनका मत था कि धमनियों में एक प्रकार की जीवनी शक्ति रहती है, जिसके कार्य में व्याधात पड़ने पर रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

एरासिस्ट्राटस को मस्तिष्क की वल्लिकाओं का विस्तृत ज्ञान था। पित्त, प्लीहा तथा यकृत संबंधी खोज, हृदय की रचना का ज्ञान, श्वासप्रणाली का नामकरण तथा मूत्र-निष्कासन-सलाई के आविष्कार का श्रेय इन्हें दिया जाता है। (भ.दा.व.)