एद्दा (एड्डा) शब्द साधारणत: आइसलैंड के साहित्य के दो संग्रहों के नाम के रूप में प्रयुक्त हुआ है। संभवत: इसका पहला प्रयोग मध्यकाल में हुआ। १४ वीं से १७वीं शताब्दी तक इस शब्द का प्रयोग काव्यकला के अर्थ में होता रहा। इसका उपयोग स्केंदिनेवियाई साहित्य के सबसे महान् साहित्यकार स्नोरी स्तुर्लूसन (११७९-१२४१) की कृतियों के संबंध में हुआ। स्नोरी ने जिस एद्दा की रचना की उसे गद्यात्मक एद्दा कहते हैं और उसके पाँच भाग हैं। उसकी भूमिका में जलप्रलय की कहानी दी हुई है। इस एद्दा में स्केंदिनेविया के विविध युगों की भी एक सूची दी हुई है। पद्यात्मक भाषाशास्त्रीय तथा व्याकरण संबंधी कुछ विचार संगृहीत हैं, साथ ही कवियों की भी सूची दी हुई है। पद्यात्मक एद्दा का संग्रह १६४३ ई. में प्राप्त हुआ। इसमें संभवत: ११वीं सदी की कविताओं का संग्रह है। इसकी अधिकतर कविताएँ नष्ट हो जाने से प्राय: अपूर्ण रूप में ही उपलब्ध हुई। वस्तुत: इसमें न केवल नारवे और आइसलैंड अथवा डेनमार्क की प्राचीन कथाओं का समावेश है बल्कि विद्वानों का तो कहना है कि वे कथाएँ जर्मन और ब्रिटिश जनता की प्राचीन कथाओं से भी अप्रभावित रही हैं। एद्दा शब्द का साधारण और अलाक्षणिक प्रयोग वीरगाथाओं अथवा रासो या प्राचीन लोकसाहित्य के अर्थ में भी होने लगा है। परंतु यह प्रयोग वस्तुत: अनूचित है, यद्यपि अनेक प्राचीन देशों का पौराणिक साहित्य बहुत कुछ छंदोबद्ध एद्दा कृतियों के अनुरूप रहा। भारत के रासो काव्य और अपभ्रंश की अनेक वीरगाथाएँ इस प्रकार एद्दा साहित्य से मिलती जुलती हैं। परंतु सार्थक उपयोग इस शब्द का नारवेई, स्वीडी, डेनी और आइसलैंडी प्राचीन लोकसाहित्य को ही व्यक्त करता है। (भ. श. उ.)