एकादशी प्रत्येक पक्ष की ११वीं तिथि। यह तिथि भगवान् विष्णु की अर्चना पूजा के लिए बहुत ही पवित्र मानी जाती है। इस तिथि को उपवास, जप तथा रात्रिजागरण की विधि विशेष रूप से उपयुक्त मानी गई है। एकादशी दो प्रकार की होती है : स्मार्तो की और वैष्णवों की। दो दिन एकादशी पड़ने पर पहली एकादशी स्मार्तो के और दूसरी एकादशी वैष्णवों के लिए मान्य होती है, क्योंकि वैष्णव जन दशमीविद्धा एकादशी को एकादशी नहीं मानते। एकादशी प्रत्येक पक्ष की ११वीं तिथि को पड़ती है और इस प्रकार एक वर्ष में २४ एकादशियाँ होती हैं। चैत्र शुक्ल से आरंभ कर प्रत्येक शुक्ला एकादशी के नाम क्रमानुसार ये हैं: कामदा, मोहिनी, निर्जला (या भीमसेनी), शयनी, पुत्रदा, परिवर्तिनी, पापांकुशा, बोधिनी, मोक्षदा, प्रजावर्धिनी, जयदा तथा आमलकी। इसी प्रकार चैत्र कृष्णपक्ष से आरंभ कर कृष्ण एकादशियों के नाम क्रमानुसार इस प्रकार हैं-पापमोचिनी, वरूथिनी, अपरा, योगिनी, कायिका, अजा, इंदिरा, रमा, फलदा, सफला, षट्तिला तथा विजया। एकादशी के निर्णय का पूरा विचार, 'धर्मसिंधु' तथा 'निर्णयसिंधु', में बड़े विस्तार के साथ किया गया है।

एकादशी की उत्पत्ति की कथा पद्मपुराण के उत्तरकांड (अध्याय ३८) में दी गई है। इस कथा का सारांश यह है कि मुर नामक दैत्य को मारने के लिए विष्णु भगवान ने देवों की सेना के साथ उसकी मुख्य नगरी चंद्रावती पर आक्रमण किया। देवतागण थोड़े ही युद्ध में ध्वस्त होकर भाग निकले तथा विष्णु ने अकेले ही बहुत दिनों तक युद्ध जारी रखा। पर अंततोगत्वा इन्होंने भी बदरिकाश्रम की एक गुफा में आश्रय लिया। मुर उन्हें परास्त करने के लिए जब उस गुफा के पास पहुँचा, तब उसने दरवाजे पर एक अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित सुंदरी देखी जिसके हुंकार मात्र से वह नष्ट हो गया। विष्णु ने उस सुंदरी को मनोभिलषित वरदान दिया। उसका नाम 'एकादशी' रखा और उस दिन व्रत करनेवाले को भक्ति तथा मुक्ति देने की विष्णु ने प्रतिज्ञा की। प्रत्येक एकादशी के लिए पुराणों में कोई न कोई उत्साहवर्धक कथानक प्रसिद्ध है। (ब.उ.)श्