एकहार्ट, जोहानेस जर्मन दार्शनिक। पाश्चात्य रहस्यवादियों में प्रथम। गोथा के पास हौचहीम नगर में एकहार्ट का जन्म हुआ था। पेरिस में उसने धर्म का अध्ययन किया और वहीं से १३०२ ई. में मास्टर ऑव थियोलॉजी की उपाधि प्राप्त की। १३०७ ई. में उसकी नियुक्ति बोहेमिया के विकार जेनरल के पद पर हुई। उपदेश की प्रवीणता तथा अपने व्यावहारिक सुधारों के लिए एकहार्ट की विशेष ख्याति थी। १३११ ई. से उसने पेरिस में अध्यापन कार्य आरंभ किया परंतु १३१४ में उसे स्ट्रैसबर्ग भेज दिया गया। वहाँ से उसे कोलोन भेजा गया जहाँ १३२६ में वहाँ के आर्चबिशप ने उसके सिद्धांतों के कारण उसके विरुद्ध कार्रवाई की।

एकहार्ट को रहस्यवादी कहा गया है क्योंकि उसने अरस्तू तथा ऐक्विनस के सिद्धांतों को उसी रूप में प्रतिपादित करने का प्रयत्न किया। उसकी शैली कहीं कहीं पर बहुत ही अव्यवस्थित है और भाषा प्रतीकों में उलझी हुई है। उसकी विचारधारा में दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों का वर्णन मिलता है। एक तो ईश्वरीय सत्ता के विषय में और दूसरा जीव और ईश्वर के संबंध के विषय में। ईश्वर की सत्ता सर्वव्याप्त है। ईश्वर की सत्ता के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु का अस्तित्व स्वीकार नहीं किया जा सकता। संसार के प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व ईश्वर की सत्ता पर ही आश्रित है। ईश्वर में किसी गुण या विशेषता की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि ऐसा करना उसे ससीम बनाना होगा।

एकहार्ट का विचार है कि यद्यपि ईश्वर प्रत्येक जीव में व्याप्त है, तथापि उसकी सबसे बड़ी अभिव्यक्ति मनुष्य में हुई है, जो सृष्टि का उच्चतम प्राणी है। मानव शरीर में स्थित जीवात्मा का अंतिम लक्ष्य परब्रह्म ईश्वर से एकता प्राप्त करना है। यह तादात्म्य आत्मज्ञान द्वारा ही संभव है जब जीव अपने शुद्ध स्वरूप को समझे और उसमें ईश्वर के अस्तित्व को पहचान ले। (श्री.स.)