एकलिंग जी राजस्थान के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में एकलिंग जी का अपना विशेष महत्व है। यह स्थान उदयपुर से लगभग १२ मील उत्तर में दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। वैसे उक्त स्थान का नाम कैलाशपुरी है परंतु यहाँ एकलिंग का भव्य मंदिर होने के कारण इसको एकलिंग जी के नाम से पुकारा जाने लगा। एकलिंग महादेव मेवाड़ राज्य के महाराणओं के इष्टदेव एवं राज्य के स्वामी माने जाते हैं। महाराणा केवल उनके दीवान के रूप में समझे जाते हैं। इसी कारण उदयपुर के महाराणा को ''दीवाण जी'' कहा जाता है। एकलिंग का यह भव्य मंदिर चारों ओर ऊँचे परकोटे से घिरा हुआ है। इस मंदिर के निर्माणकाल व कर्ता के संबंध में कोई लिखित प्रमाण नहीं मिला है, परंतु जनश्रुति के अनुसार इसका निर्माण बप्पा रावल ने आठवीं शताब्दी के लगभग करवाया था। बाद में उदयपुर के ही महाराणा मोकल ने इसका जीर्णोद्धार करवाया तथा वर्तमान मंदिर के नए स्वरूप का संपूर्ण श्रेय महाराणा रायमल को है। उक्त मंदिर की काले संगमरमर से निर्मित महादेव की चतुर्मुखी प्रतिमा की स्थापना महाराणा रायमल द्वारा की गई थी। मंदिर के दक्षिणी द्वार के समक्ष एक ताखे में महाराणा रायमल संबंधी १०० श्लोकों का एक प्रशस्तिपद लगा हुआ है।

इस मंदिर की चहारदीवारी के अंदर और भी कई मंदिर निर्मित हैं, जिनमें से एक महाराणा कुंभा का बनवाया हुआ विष्णुमंदिर है। इस मंदिर को लोग ''मीराबाई का मंदिर'' कहते हैं। एकलिंग जी के मंदिर से थोड़ी दूर दक्षिण में कुछ ऊँचाई पर वि.सं. १०२८ (ई. सन् ९७१) में यहाँ के मठाधीश ने 'लकुलीश' का एक मंदिर बनवाया तथा इस मंदिर के कुछ नीचे विंध्यवासिनी देवी का एक अन्य मंदिर भी स्थित है। जनश्रुति से यह भी ज्ञात होता है कि बप्पा रावल का गुरु नाथ हारीतराशि एकलिंग जी के मंदिर का महंत था और उसी की शिष्य परंपरा ने मंदिर की पूजा आदि का कार्य सँभाला। एकलिंग जी के मंदिर के महंत, उक्त नाथों का एक प्राचीन मठ आज भी मंदिर के पश्चिम में बना हुआ है। बाद में नाथ साधुओं का आचरण भ्रष्ट हो जाने से मंदिर की पूजा आदि का कार्य गुसाइयों को सौंपा गया और वे उक्त मंदिर के मठाधीश हो गए। यह परंपरा आज भी चली आ रही है।

सं.ग्रं.-ऐनल्स ऐंड ऐंटिंक्विटीज़ ऑव राजस्थान; डा.गौरीशंकर हीराचंद ओझा, श्री जगदीश सिंह गहलोत : राजपूताना का इतिहास, भाग१ ; टाड : ट्रैवेल्स इन वेस्टर्न इंडिया।

(ल.द.व्या.)