एकलव्य महाभारत में उल्लिखित निषादों का राजा जिसे धनुर्विद्या से इतना मोह था कि धनुर्विद्या सिखाने के लिए जब द्रोणाचार्य उसके गुरु बनने को तैयार न हुए तो जंगल में उनकी प्रतिमा स्थापित कर उसने बाण चलाने के अनेक प्रयोग कर उसमें निपुणता प्राप्त की। द्रोण के मन में भय हुआ कि वह कहीं अर्जुन से बढ़ न जाए इसलिए उन्होंने उससे गुरुदक्षिणा में उसके दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया। (चं.म.)