ऊर सुमेर(सुमेरिया) का प्राचीन नगर। वर्तमान ईराक में फरात नदी से प्राय: छह मील दक्षिण 'खल्दियों के ऊर' के खंडहर खोद निकाले गए हैं। बाइबिल में इसे इब्राहिम का मूल स्थान कहा गया है। वहाँ से थोड़ी ही दूर पर अरबी मरुभूमि की सीमा आंरभ होती है। प्राचीन सुमेरियों का ज़िग्गुरत आज भी दूसरे खंडहरों के साथ वहाँ खड़ा है। डॉ. लियोनार्ड वूली ने अथक परिश्रम से सुमेरी सभ्यता के उस अत्यंत प्राचीन ऊर नगर के भग्नावशेष खोद निकाले है। उनका समय प्राय: ३५०० ई. पू. है और उनमें सबसे महत्व के अवशेष उस नगर की शवसमाधियाँ हैं। वहाँ की इमारतों में संभवत: वे सबसे प्राचीन हैं और उनमें पाई गई अनेक विभूतियों से उस काल की सभ्यता और उस सभ्यता के ऐश्वर्य का पता चलता है।
ऊर की कब्रों में मिली वस्तुओं के अध्ययन से जीवन और मृत्यु दोनों से संबंधित अद्भूत् रहस्यों का ज्ञान होता है। राजाओं के उन मकबरों में कल्पनातीत स्वर्ण और बहुमूल्य वस्तुओं का संचय हुआ था। साथ ही वहॉँ अनेक मानवों की बलि होने का प्रमाण प्रस्तुत है। मिस्रियों की ही भाँति, लगता है, प्राचीन सुमेरी लोग भी अपने मृतकों को उनकी अनंत यात्रा के लिए प्रत्येक आवश्यक पार्थिव उपकरणों से संयुक्त कर देते थे। अनेक प्रकार के भोज्य और पेय, रथ, सिंहासन और संगीत के विविध उपकरण मृतकों के साथ गाड़ दिए जाते थे। ऊर की प्राय: दो हजार कब्रों से जो चीजें निकली हैं उनमें धातुकर्म की आश्चर्यजनक वस्तुएँ प्रधान हैं। राजाओं और रानियों के साथ जीवित दफनाएँ गए दासों और दासियों के पंजर सुमेरी सभ्यता के भीषण विश्वासों को प्रकट करते हैं। इन दास-दासियों ने जीवन में अपने स्वामियों की सेवा की थी, अब वही मरणांतर उनकी सेवा करने के लिए उनके साथ कर दिए गए थे। स्वामियों के जो दास जीवन में जितने ही प्रियपात्र रहे थे, मृत्यु में वे उतने ही निकटतर माने गए और स्वामियों के साथ ही उनका अकाल अंत हुआ। ऊर की कब्रों से सोने के किरीट, कंगन,कानों के अलंकार, अनेक प्रकार के हार आदि उपलब्ध हुए हैं। ताँबे और चाँदी के फरसे और उनसे बने भाँति भाँति के अचरज के काम के बरछे भाले मिले हैं जिनसे धातु की ढलाई का प्रमाण मिलता है। छोटी-छोटी शृंगारमंजूषाओं में रखी दाँत और कान कुरेदनेवाली छोटी छोटी धातु की पिनें मिली हैं जिनका प्रभाव देखनेवालों पर नितांत आधुनिक पड़ता है।
एक कब्र में स्वर्ण का एक सुदंर किरीट पहने एक नारी का शव पड़ा था जिसके हाथों में सोने का एक सुंदर गिलास था। प्रकट ही है कि वह स्वामिनी थी जिसके चार दासों को मारकर उनके शव उनके चरणों में डाल दिए गए थे और उसकी कब्र के बाहर बंद द्वार पर तीन भेड़ों की बलि दे दी गई थी। कब्र की तीनमंजिली इमारत की हर मंजिल में एक मानव बलि दी गई थी। सबसे ऊपर वाली कब्र में दो सोने के फलकवाले खंजर मिले जिनकी नीलमजड़ी मूठों पर स्वर्णक्षरों में 'राजा मेस्कालाम्दुग' का नाम उत्कीर्ण था। दूसरी कब्रों में तो और भी अधिक दौलत भरी थी और उनमें बलि दिए हुए आदमियों की संख्या प्रचुर थी। एक में तो ७४ लाशें मिलीं। रानी शुबाद की कब्र में तो सोने और बहुमूल्य पत्थरों की बनी अनेक चीजें मिली हैं। शृंगार की अनेक चीजों और माणियों से निर्मित वीणुओं, किरीटों और बर्तनों की छटा देखने ही योग्य है। ऊर की इन कब्रों में जहाँ मरणांतर परलोक के भयानक जनविश्वासों पर प्रकाश पड़ता है वहाँ ३५०० ई.पू. और २५०० ई.पू. के बीच के काल की सभ्यता का भी प्रभूत रूप से उद्घाटन होता है।
इन शवसमाधियों के बाद ही ऊर के पहले राजवंश का उदय हुआ। इन कब्रों का समय इतना प्राचीन होने पर भी प्रसिद्ध जलप्रलय के पश्चात् है, जो संभवत: ३२०० ई. पू. से भी पहले हुआ था। इनसे पहले केवल कीश और एरेख़ के राजकुलों ने सुमेर में राज किया था। ऊर के महान् मंदिर का घेरा सम्राट् नबूख़दनेज्जार का बनवाया हुआ है। उसके उत्तर-पूर्वी भाग में बूर-सिन का एक अभिलेख है। सुमेरियों का यही मंदिर ज़िग्गुरत नाम से प्रसिद्ध था। इसमें बाद के राजाओं ने धीरे-धीरे अनेक परिवर्तन कर दिए थे। इसके अतिरिक्त वहाँ अनेक पुराने मंदिर हैं जिनका समय समय पर विध्वंस और जीर्णोद्धार होता आया था।
सं.ग्रं.-सी.लियोनार्ड वूली : ऊर ऑव द कैल्डीज़ (१९३०); भगवतशरण उपाध्याय : दि एन्शेंट वर्ल्ड (१९५५)। (भ.श.उ.)