ऊधमसिंह भारत के सपूत और महान् शहीद। सन् १९०३ ई. में पटियाला के निकट सुनाम नामक स्थान पर ऊधमसिंह का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम तेहलसिंह था और वे रेलवे गुमटी के चौकीदार थे। बाल्यकाल में ही माता पिता का देहांत हो जाने पर ऊधमसिंह को ज्ञानी चंचलसिंह ने, जो तेहलसिंह के मित्र थे, आश्रय दिया। लेकिन कुछ समय बाद वे भी बाहर चले गए और ऊधमसिंह को अमृतसर के एक अनाथालय में रहना पड़ा।

पंजाब के तत्कालीन गर्वनर सर माइकेल औडायर के आदेश से १९१९ ई. में जब 'जलियाँवाला कांड' हुआ तब ऊधमसिंह अनाथालय में रहते थे और उन्होंने अपनी आँखों उक्त नृशंस हत्याकांड देखा था। इससे वे इतने मर्माहत हुए कि उन्होंने उसका प्रतिशोध लेने की तत्काल शपथ ले ली। अनाथालय छोड़कर वे लकड़ी के एक व्यापारी के यहाँ काम करने लगे जो पहले उन्हें कश्मीर और बाद में केन्या (अफ्रीका) ले गया। कुछ समय बाद ऊधमसिंह पुन: अमृतसर लौट आए और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में काम करने लगे। शीघ्र ही वे कैलोफ़ोर्निया चले गए और वहाँ भारत के स्वतंत्रता संग्राम हेतु गाठित गदर पार्टी में संमिलित हो गए। वहाँ से उन्होंने कुछ शस्त्रास्त्र भी जहाज द्वारा भारत भेजे थे। कहा यह भी जाता है कि एक अमरीकी लड़की से विवाह करके कुछ समय तक से सानफ्रांसिस्को में रहे थे। सन् १९३५ ई. में वे पुन: भारत आए और अमृतसर में एक दूकान खोल ली जो क्रांतिकारियों का अड्डा थी। दुकान पर राय मोहम्मद सिंह आज़ाद की नामपट्टिका लगी थी। हथियार रखने के आरोप में यहीं वे गिरफ्तार हुए और इसी नाम से जेल से लिखे उनके पत्रों से पता चलता है कि भगतसिंह के साथियों में वे भी थे। जेल से छूटने के तुंरत बाद १९३७-३८ में वे जाली पासपोर्ट लेकर इंग्लैंड चले गए और वहाँ से जर्मनी तथा रूस की यात्रा की।

लंदन स्थित कैक्स्टन हाल के टयूडर कक्ष में १३ मार्च, १९४० ई. को ईस्ट इंडिया ऐसोसिएशन तथा रायल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की एक बैठक हुई जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन भारत सचिव लार्ड जेटलैंड कर रहे थे। ऊधमसिंह ने हाल में घुसकर ओ'डायर को गोली मार दी जिससे उनकी तत्काल मृत्यु हो गई। ऊधमसिंह को पकड़ लिया गया और ब्रिक्स्टन की जेल में रखा गया। ३१ जुलाई, १९४० ई में दिन ऊधमसिंह को फाँसी दे दी गई। वी. के.कृष्णमेनन ने उस समय ऊधमसिंह की पैरवी की थी। १९ जुलाई, १९७४ ई. को शहीद ऊधमसिंह की अस्थियाँ भारत लाई गईं और ३ अगस्त, १९७४ ई. को हरिद्वार में राजकीय सम्मांन के साथ गंगा की धारा में प्रवाहित कर दी गई। (कै.चं.श.)