उषा २. दैत्यराज बलि के पुत्र बाणासुर की कन्या। युवती हो जाने पर एक रात सोते समय स्वप्न में उषा ने एक अति सुंदर तरुण से रमण किया। जागने पर वह विरहापुर हो गई और अपनी सखी चित्रलेखा से उसने सब वृत्तांत कह सुनाया। चित्रलेखा ने तीनों लोकों में प्रसिद्ध सभी युवकों के चित्र बनाए। इनमें कृष्ण के पौत्र तथा प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध के चित्र को देख उषा लज्जा से लाल हो गई, क्योंकि उसका स्वप्नपुरुष वही था। चित्रलेखा योगसामर्थ्य से अनिरुद्ध को पर्यक सहित शीणितपुर (बाणासुर की राजधानी) ले आई। उषा ने अनिरुद्ध से गांधर्व विवाह किया और गुप्त रूप से चार महीने तक उसके साथ रही। बाणसुर को इस बात का पता लगा तो वह उषा के महल में आया और अनिरुद्ध से युद्ध करके उसे नागपाश में बाँध लिया। नारद ने यह सूचना कृष्ण को दी। कृष्ण ने सेना सहित शोणितपुर पर आक्रमण किया और युद्ध में सहस्रबाहु बाणसुर के, चार को छोड़कर, सभी हाथ काट डाले। तब बाणासुर की माता कोटरा तथा रुद्र की अनुनय विनय पर कृष्ण ने बाणासुर को जीवनदान दिया तथा उषा और अनिरुद्ध को लेकर द्वारका लौट आए। (कै.चं.श.)