उर्वशी एक नितांत रूपसी अप्सरा। उर्वशी का कथानक ऋग्वेद (१०।७५) तथा शतपथ ब्राह्मण में विस्तार के साथ निबद्ध है। श्रीमद्भागवत् (११।४), विष्णुपुराण तथा पद्यपुराण (अवंति खंड, अ. ८) आदि पुराणों में यही कथा कुछ परिवर्तन के साथ मिलती है। पुराणों का कहना है कि बदरिकाश्रम में तपस्या करनेवाले नरनारायण ऋषि की उग्र तपस्या को भंग करना उर्वशी के अलौकिक सौंदर्य तथा पराक्रम का एक बहुश: स्तुत्य कार्य था। परंतु वेदों में उर्वशी का संबंध राजा पुरुरवा के साथ अमिट रूप से निश्चित किया गया है।

उर्वशी और पुरुरवा का आख्यान वेदयुग की एक रोमांचक प्रणयगाथा है। दिव्य होने पर भी उर्वशी ने राजा पुरुरवा के साथ प्रणयपाश में बद्ध पृथ्वीतल पर रहना अंगीकार किया था, परंतु इसके लिए राजा को तीन शर्तें माननी पड़ी थीं कि वह सदा घृत का ही आहार किया करेगी, उसके प्यारे दोनों मेष सदा उसकी चारपाई के पास बँधे रहेंगे, जिससे कोई उन्हें चुरा न सके। तीसरी बात तो सबसे विकट थी कि यदि वह किसी भी अवस्था में राजा को नग्न देख लेगी, तो वह एक क्षण में वहाँ से गायब हो जाएगी। पुरुरवा ने इन्हें स्वीकार कर लिया ओर दिव्य प्रेयसी के संग आनंदविभोर होकर अपना जीवन बिताने लगा, परंतु गंधर्वों को उर्वशी की अनुपस्थिति में स्वर्ग नीरस तथा निर्जीव प्रतीत होने लगा। फलत: उन लोगों ने उन शर्तों को तोड़ डालने के लिए एक छल की रचना की। रात के समय उन्होंने उर्वशी के पास से एक मेष को चुरा लिया। मेष की करुणाजनक बोली सुनते ही उर्वशी ने चोर को पकड़ने के लिए राजा को ललकारा, जो तुरंत ही आकाश में मेष की रक्षा के लिए दौड़ पड़ा। उसी समय गंधर्वों ने बिजली चमका दी। राजा का नग्न शरीर उर्वशी के सामने स्पष्ट ही प्रकट हो गया। वह राजा को छोड़कर बाहर निकल पड़ी। राजा उसके विरह में विषण्ण होकर पागल की तरह भूमंडल में घूमने लगा। अंततोगत्वा कुरुक्षेत्र के एक जलाशय में उसने हंसियों की पानी पर तैरते हुए देखा और उनमें हंसी का रूप धारण करनेवाली अपनी प्रेयसी को पहचाना। उससे लौट आने की विनम्र प्रार्थना की, परंतु उर्वशी किसी प्रकार भी राजा के पास लौट आने के लिए तैयार नहीं हुई। राजा की दयनीय दशा देखकर गंधर्वों के हृदय में सहानुभूति उत्पन्न हुई और उन्होंने उसे अग्नि विद्या का उपदेश दिया जिसके अनुष्ठान से उसे उर्वशी का अविच्छिन्न समागम प्राप्त हुआ। इसी कथा को कुछ भेद के साथ कालिदास ने अपने प्रसिद्ध नाटक 'विक्रमोर्वशी' का आधार बनाया। (ब.उ.)