उमर ख़य्याम संगीतमय फारसी रुबाइयों के प्रसिद्ध रचयिता अबुल फ़तह उमर बिन इब्राहीम अल ख़य्याम अथवा ख़य्याम (खेमा सीनेवाले) के विषय में यद्यपि यूरोप एवं एशिया के अनेक उच्च कोटि के विद्वान् लगभग १०० वर्ष से शोधकार्य में संलग्न हैं किंतु अभी तक निश्चित रूप से उसकी जन्म एवं मृत्यु तिथि भी निर्धारित नहीं हो सकी है। समकालीन ग्रंथों से केवल यह पता चल सका है कि ४६७ हि. (१०७४-७५ ई.) में वह सल्जूक़ सुल्तान जलालुद्दीन मलिकशाह की वेधशाला का उच्च अधिकारी नियुक्त हो गया था। ५०६ हि. (१११२-१३ ई.) में उसके शिष्य तथा फारसी के प्रसिद्ध विद्वान् निज़ामी उरुज़ी समरकंदी ने उससे बल्ख़ में भेंट की। ५०५ हि. (१११२-१३ ई.) अथवा ५०७ हि. (१११३-१४ ई.) में 'तारीखुल हुकमा' का लेखक अबुलहसन बेहक़ी, बाल्यावस्था में उससे मिला। ५०८ हि. (१११४-१५ ई.) में उसने सुल्तान मुहम्मद बिन मलिकशाह के शिकार के लिए लग्नकुंडली तैयार की। ५३० हि. (११३५-३६ ई.) के पूर्व उसका शिष्य निज़ामी कानन के पुष्पों से ढकी हुई उसकी कब्र के दर्शनार्थ पहुँचा था। उसके प्राय: चार वर्ष पहले उसकी मृत्यु हो चुकी थी। इन मुख्य तिथियों के प्रसंग में उल्लिखित विभिन्न घटनाओं के आधार पर इस बात का अनुमान लगाया गया है कि उसका जन्म ४४० हि. (१०४८-४९ ई.) एवं मृत्यु ५२६ हि. (११३१-३२ ई.) में हुई। उत्तर पूर्व फारस के ख़रासान प्रांत का नीशापुर नगर, जो मध्ययुग में रमणीयता एवं समृद्धि के साथ-साथ विद्वानों एवं उच्च कोटि के विद्यालयों के लिए विख्यात था, उसकी जन्मभूमि था।
उमर ख़य्याम अपने जीवनकाल में ही ज्योतिषी, वैज्ञानिक एवं दार्शनिक के रूप में प्रसिद्ध हो गया था। १०७४-७५ ई. में सुल्तान जलालुद्दीन मलिकशाह की वेधशाला में उसने 'अल तारीख अल जलाली' अथवा जलाली पंचांग तैयार कराया। उसकी वैज्ञानिक रचनाओं में उसके बीजगणित 'रिसालह फ़ी बराहीन अल जब्र वल मुक़ाबला' का अनुवाद फ़िट्ज़ेराल्ड के रुबाइयों के अंग्रेजी भाषांतर के आठ वर्ष पूर्व १८५१ ई. में फ्रांसीसी अनुवाद सहित पेरिस से प्रकाशित हो चुका था, यद्यपि यूरोप के विद्वानों में इस ग्रंथ की चर्चा १७४२ ई. से ही प्रारंभ हो गई थी। उसकी अन्य वैज्ञानिक रचनाओं में यूक्लिड के 'मुसादरात' सिद्धांतों से संबंधित उसकी शोधपूर्ण प्रस्तावना, गणित संबंधी ग्रंथ 'मुश्किलात-अलहिसाब:' एवं चाँदी सोने के आपेक्षिक भार संबंधी ग्रंथ 'मीज़ानुल हिकम व रिसालह मारेफ़ मेक़दारिज्हब' अधिक प्रसिद्ध हैं। बहुत से विद्वानों का मत है कि अबू सीना के ग्रंथों के समान उसकी दर्शनशास्त्र संबंधी रचनाएँ भी कम महत्व की नहीं हैं। उसने 'रिसालए कौन व तकलीफ़' 'रिसालए फ़ी कुल्लियातिल वुजूद', 'रिसालए मौजू इल्मे कुल्ली व वुजूद' एवं 'रिसालए औसाफ़', या 'रिसालतुल वुजूद' नामक अपनी रचनाओं में अद्वैतवाद तथा 'एक एवं अनेक' के सिद्धांतों की बड़े विद्वत्तापूर्ण ढंग से मीमांसा की है। राजदरबारों में वह चिकित्सक के रूप में भी विख्यात था। उसके कुछ अरबी शेर भी मिलते हैं। किंतु उसे अधिक प्रसिद्धि फ़ारसी रुबाइयों के कारण ही मिली।
उसकी रुबाइयों की प्राचीनतम प्रामाणिक हस्तलिखित पोथी, जिसका अभी तक पता चल सका है, इस्तंबोल की १४५६-५७ ई. की पोथी है जिसमें १३१ रुबाइयाँ हैं। इस्तंबोल में ही १४६०-६१ई. की नकल की हुई तथा पोथी में ३१५ रुबाइयाँ, आक्सफ़ोर्ड के बॉडलियन पुस्तकालय की १४६०-६१ ई. की एक पोथी में १५८ रुबाइयाँ, वियेना की १५५० ई. की पोथी में ४८२ रुबाइयाँ, बाँकीपुर (पटना) के खुदाबख्श पुस्तकालय की पोथी में ६०४ और १८९४ ई. में लखनऊ से प्रकाशित संस्करण में ७७० रुबाइयाँ हैं। ८९७ ई. में रूसी विद्वान् ज़ोकोवोस्की ने उमर ख़य्याम की वास्तविक रुबाइयों की छानबीन प्रारंभ की और निकोला के १८६७ ई. के फ्रांसीसी संस्करण की ४६४ रुबाइयों में ८२ को अन्य फारसी कवियों की बताया है। जिस प्रकार उसकी रुबाइयों के आधार पर उसके जीवन से संबंधित अनेक घटनाएँ गढ़ ली गई हैं, उसी प्रकार अन्य फ़ारसी कवियों की रुबाइयाँ भी उसके नाम पर थोप दी गई हैं और उसकी दर्शनशास्त्र और अन्य गंभीर विषयों से संबंधित रुबाइयाँ 'भूलती भटकती' अन्य कवियों की रचनाओं में सम्मिलित हो गई हैं। अंग्रेज विद्वान् ई.डी.रोस, फ्रांसीसी पंडित क्रिस्तेन ज़ेन तथा प्रोफ़ेसर ब्राउन ने विद्वत्तापूर्ण शोध द्वारा शुद्ध रुबाइयों का पता लगाने का प्रयत्न किया है। एशिया एवं यूरोप के अन्य विद्वानों की भी इस संबंध में रचनाएँ अभी तक प्रकाशित होती जा रही हैं किंतु उसकी प्रामाणिक रुबाइयों की वास्तविक संख्या अभी तक निर्धारित नहीं हो सकी है।
संसार की लगभग सभी भाषाओं में उसकी रुबाइयों के पद्य अथवा गद्य अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। प्राचीनतम अंग्रेजी पद्यानुवाद फ़िट्ज़ेराल्ड ने १८५९ ई. में प्रकाशित कराया था। १८६७ ई. में निकोला ने फ्रांसीसी संस्करण निकाला। १८६८ ई. फ़िट्ज़ेराल्ड के अंग्रेजी अनुवाद का दूसरा संस्करण प्राकशित हुआ। इसके बाद के अनुवादों के संस्करणों का, जिनमें सचित्र संस्करण भी सम्मिलित हैं, अनुमान लगाना ही असंभव है। १८९८ ई.में ई. हेरीन एलेन ने फ़िट्ज़ेराल्ड के भाषांतर को मूल रुबाइयों से मिलाकर यह सिद्ध कर दिया है कि फ़िटज़ेराल्ड ने मूल की चिंता न करके कहीं-कहीं दो-दो, तीन तीन रुबाइयों का भाव एक में ही और कहीं मूल की आत्मा में प्रविष्ट होकर केवल काव्यमय व्याख्या कर दी है।
उमर ख़य्याम की रुबाइयों में बसंत, सुरा-सुंदरी-उपभोग, विहार, प्रेम, रति एवं विषयवासना के जो भाव स्फुटित हैं तथा जो व्यंग्य प्राप्य हैं उनके आधार पर कुछ विद्वानों ने उसे नास्तिक, जड़वादी अथवा केवल रसिक, कामुक या मौजी जीव बताया हैं किंतु उसके अन्य गंभीर ग्रंथों एवं समकालीन राजनीतिक तथा सामाजिक उथल पुथल की पृष्ठभूमि में यदि उसकी रुबाइयों का अध्ययन किया जाए तो ज्ञात हो जाएगा कि वह बड़े उच्च कोटि एवं स्वतंत्र विचारों का सूफी था और परंपराओं, रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं धर्मांधता का विरोध करने में उसे ईश्वर का भी कोई भय न था।
सं.ग्रं.-(फारसी तथा अरबी)-उरुज़ी समरक़ंदी : 'चहार मक़ाला', 'शहरज़ोरी', 'नुज़हतुल अरवाह'; शेख नज्मुद्दीन दायह : 'मिरसादुल एबाद'; इब्ने असीर : 'तारीख़े कामिल'; जमालुद्दीन क़िफ़्ती : 'अख्ब़ारुल उल्मा'; ज़करिया क़ज़वीनी; 'आसारुल बेलाद; रशीदुद्दीन फ़ज़लुल्लाह : 'जामे उत्तवारीख'; मौलाना खुसरो अब्र क़ोही : 'फ़िरदौसुत्तवारीख'; हाजी ख़लीफ़ा : 'कश्फुज्जुन्नून'; अहमद बिन नस्रुल्लाह ठट्ठी : 'तारीखे अलफ़ी'। (उर्दू) सैयद सुलेमान नदवी : 'ख़य्याम और उसके सवानेह व तसानीफ़ पर नाक़ेदाना नज़र'। (अंग्रेजी) ब्राउन : 'लिट्ररी हिस्टरी ऑव परशिया; अरबेरे, ए.जे. : 'क्लैसिकल पर्शियन लिटरेचर' ; 'इनसाठक्लोपीडिया ऑव इस्लाम' तथा अनुवादों की प्रस्तावनाएँ। (हिंदी) मैथिलीशरण गुप्त : 'रुबाइयाते उमर ख़य्याम' (सचित्र); केशवप्रसाद पाठक : 'रुबाइयाते उमर ख़य्याम' (सचित्र)। (सै.अ.अ.रि.)