उपरिगामी पुल जब रेल या सड़क के दो रास्ते एक दूसरे को काटकर पार करते हैं तब सुविधा और सुरक्षा के लिए एक रास्ते के ऊपर पुल बनाकर दूसरे रास्ते को उसके ऊपर से ले जाया जाता है। ऐसे पुल को उपरिगामी पुल या ऊपर का पुल कहते हैं। रेलते लाइन पार करने के लिए तो बहुत स्थानों में उपरिगामी पुल बने रहते हैं, क्योंकि इस प्रबंध से लाइन पार करनेवालों के कारण रेलगाड़ियों को रुकना नहीं पड़ता।

आधुनिक परिवहन में यह आवश्यक हो गया है कि गाड़ियाँ बिना चाल धीमी किए अपनी यात्रा जारी रखें। इसलिए विदेशों में साधारण सड़कों के चौराहों पर भी अब उपरिगामी पुल अधिकाधिक संख्या में बनाए जाते हैं। ऐसे पुलों की अभिकल्पना (डिज़ाइन) में कई कठिन और विशेष प्रकार की समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं; उदाहरणत: सड़कों की ढाल कितनी रखी जाए, नीचेवाली सड़क से पुल कितना ऊँचा रहे, भविष्य में सड़क चौड़ी करनी पड़े तो इसके लिए अभी से कैसी व्यवस्था रखी जाए, कितनी दूर सड़क स्पष्ट दिखाई पड़ती रहे, एक सड़क से आड़ी सड़क पर पहुँचने का क्या उपाय किया जाए, मुड़ने के लिए सड़क में वक्रता कितनी रखी जाए, इत्यादि। फिर इसपर भी ध्यान रखना पड़ता है कि वास्तुकला की दृष्टि से संरचना सुंदर दिखाई पड़े।

वाशिंगटन (अमरीका) में माउंट बर्नन मेमोरियल हाइवे और यूनाइटेड स्टेट्स रूट नंबर १ (१४वीं सड़क) का चौराहा अच्छी अभिकल्पना का सुंदर उदाहरण है। प्रत्येक ओर से गाड़ी बिना रोक-टोक के सीधे जा सकती है, या चौराहे से पहले ही बाईं ओर जानेवाली शाखा पकड़कर बाईवांली सड़क पर पहुँच सकती है, या चौराहे के आगे बढ़कर बाईं ओर जानेवाली शाखा पकड़कर और प्राय: गोलचक्कर लगाकर दाहिनी ओर की सड़क पर पहुँच सकती है (चित्र देखें)। इस प्रबंध से बगल से आनेवाली गाड़ियों के भिड़ जाने का डर बिल्कुल नहीं रहता। चारों कोनों पर चार गोल चक्कर पड़ने के कारण चौराहा जलेब (क्लवर) की तरह जान पड़ता है और इसीलिए इसे जलेब चौराहा (क्लवर लीफग्रेड सेपरेशन) कहते हैं।

(सी.बा.जो.)

चित्र : जलेब चौराहा