उदयपुर राजपूताना का एक देशी राज्य था; अब यह राजस्थान का एक जिला है; उदयपुर नाम का एक प्रसिद्ध नगर भी है।
राज्य-२३� ४९� से २५� २४� उ.अ. एवं ७३� १� से ७५� ४९� पू.दे.के मध्य स्थित उदयपुर राज्य (क्षेत्रफल १३,१७० वर्ग मील), राजस्थान की वह पुण्य भूमि है जहाँ परंपराबद्ध राजपूत गरिमा अक्षुण्ण रूप में समाविष्ट है। इसे मेवाड़ भी कहते हैं (मेवाड़ संस्कृत शब्द मेड़पाट का अपभ्रंश है, जो मेंड़ों अथवा मेओं जातिवालों के देश के लिए प्रयुक्त होता है)।
अरावली पर्वत के दक्षिणी छोर पर यह राज्य एक पठार पर विस्तृत है, जो आद्यकल्पिक कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित है। इसकी ढाल उत्तर पूर्व की ओर है। उत्तर एवं पूर्व में राज्य का दो तिहाई भाग अपेक्षाकृत समतल है जहाँ स्थान स्थान पर एकाकी पथरीली श्रेणियाँ एवं बंजर भूखड वर्तमान हैं। दक्षिण पश्चिमी भाग अधिक बीहड़, पठारी एव दुर्गम है जिसे बनास नदी की शीर्ष नदियों ने अत्यंत छोटी छोटी सँकरी विषम घाटियों के रूप में काट छाँट डाला है; इन्हें चप्पन कहते हैं। इस क्षेत्र में भल लोग निवास करते हैं और स्थानांतरण कृषि में लगे हैं। राज्य में अनेक कृत्रिम एवं प्राकृतिक तालाब तथा झीलें हैं, जिनमें जयसमंद या ढेबर (२१ वर्ग मोल), राजसमंद, उदयसागर, पचोला आदि प्रमुख हैं। कठोर क्वार्टज़ाइट पत्थर के कारण तालाबों से पानी रसकर बाहर नहीं निकलता। औसत वार्षिक वर्षा (१०��-२५��) की मात्रा अनिश्चित रहती है। यहाँ की मुख्य फसलें ज्वार, बाजरा, गेहूँ, जौ, चना, कपास, तंबाकू, तेलहन तथा दलहन हैं। बकरियाँ तथा ऊँट भी पाले जाते हैं। दक्षिण पश्चिम में थोड़ा चावल भी होता है।
७२८ ई. में बप्पा रावल ने मेवाड़ राज्य को स्थापित किया था। इस राज्य के गौरवशाली राजाओं ने अनवरत स्वातंत्र्य युद्ध में रत रहकर जातीय गौरव की रक्षा की है। ये गुहलौत वंशीय शिशोदिया क्षत्रिय हैं और अपना अवतरण सूर्यवंशी रामचंद्र से मानते हैं। ये रावल, रागण या महाराणा कहलाते हैं। राज्यों में संमिलन के बाद उदयपुर राज्य राजस्थान में मिल गया है और उदयपुर मात्र एक जिला रह गया है। (क्षेत्रफल : १७,२६७ वर्ग कि.मी. तथा जनंसख्या १८,०८,५७९)।
उदयपुर नगर-बंबई से ६९७ मील उत्तर उदयपुर-चित्तौर रेलवे के अंतिम छोर के पास स्थित उदयपुर नगर मेवाड़ के गर्वीले राज्य की राजधानी है। (जनंसख्या १९६१ में १,११,१३९)। नगर समुद्रतल से लगभग दो हजार फुट ऊँची पहाड़ी पर प्रतिष्ठित है एवं जंगलों द्वारा घिरा है। प्राचीन नगर प्राचीर द्वारा आबद्ध है जिसके चतुर्दिक् रक्षा के लिए खाई खुदी है।
पहाड़ी के ऊर्ध्व शिखर पर नाना प्रकार के प्रस्तरों से निर्मित महाराणा का प्रासाद, युवराजगृह, सरदारभवन एवं जगन्नाथमंदिर दर्शनीय हैं। इनका प्रतिबिंब पचोला झील में पड़ता है। झील के मध्य में यज्ञमंदिर एवं जलवास नामक दो जलप्रासाद हैं।
१५६८ ई. में अकबर द्वारा चित्तौड़ के विजित होने पर महाराणा उदयसिंह ने अरावली की गिर्वा नामक उपत्यका में उदयपुर नगर बसाया। आज यह राजस्थान में जयपुर, जोधपुर और बीकानेर के बाद सबसे बड़ा नगर है। यह नगर उन्नतिशील है, इसकी जनसंख्या ४७,८६३ (१९०१ की) से घटकर ३५,११६ (१९११ की ) हो गई थीं, पर बाद में बढ़ने लगी; १९४१ में जनसंख्या ५९,६५८ हुई और १९५१ में ८९,६२१ हो गई। नगर के ५० प्रतिशत से अधिक व्यक्ति पेशेवर एवं प्रशासनिक कार्यो तथा लगभग ३८ प्रतिशत व्यक्ति उद्योग एवं व्यापार में लगे हैं। उदयपुर में सोना, चाँदी, हाथीदाँत, जरी, बेलबूटे एवं तलवार, खंजर आदि बनाने के उद्योग हैं। यह क्षेत्र का प्रमुख शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक केंद्र है।
उदयपुर से दो मील दक्षिण एकलिंगगढ़ की चोटी पर एक प्रसिद्ध किला है। पास ही में सज्जननिवास बाग, सज्जनगढ़, राजप्रासाद आदि दर्शनीय हैं। (का.ना.सिं.)