उत्तराखंड प्राचीन काल में भारतवर्ष के चार खंड दिशाओं के अनुरूप किए जाते थे। यह उत्तराखंड भारतवर्ष का उत्तरी प्रदेश था। वाराहमिहिर तथा राजशेखर ने अपने ग्रंथों में इस खंड के प्रदेशों का विस्तृत वर्णन किया है। महाभारत के सभापर्व में भी अर्जुन की दिग्विजय के प्रसंग में इन देशों का विशद विवरण प्रस्तुत किया गया हे। भारत का उत्तराखंड राजशेखर के अनुसार, पृथूदक से उत्तर दिशा में पड़ता है। पृथूदक की वर्तमान पहचान 'पहोवा' से है जो थानेश्वर के पंद्रह मील पश्चिम की ओर है। उत्तरापथ के जनपदों में शक, केकय, वोक्काण, हूण, वनायुज, कंबोज, वाह्लीक, पह्लव, लिंपाक, कुलूत, कीर, तंगण, तुषार, तुरुष्क, बर्बर, हरहूख, हूहुक, सहुड, हंसमार्ग, रमठ, करंकंठ आदि का उल्लेख मिलता है (काव्यमीमांसा, पृ. ९४)। इनमें सब जनपदों की पहचान तथा स्थिति निश्चित रूप से निर्णीत नहीं हो सकती है, तथापि अनेक जनपद अनुसंधान के द्वारा निश्चित किए जा सकते हैं। इनमें से कुलूत काँगड़ा के पास का कुलू है जिसकी प्राचीन राजधानी नगरकोट थी और आजकल जिसका मुख्य नगर सुल्तानपुर है। कीर जनपद किरथार पहाड़ के उत्तर में दक्षिणी अफगानिस्तान का एक प्रांत था, जहाँ नवीं और दसवीं शताब्दी में शाहिवंशी राजा राज करते थे। तुरुष्क देश से तात्पर्य पूर्वी तुर्किस्तान से है। तुषार या तुखार वंक्षु नदी (आमू दरिया) की ऊपरी घाटी का प्रदेश है जिसमें बल्ख और बदख़शाँ सम्मिलित थे। हिंदूकुश पर्वत के उत्तर पश्चिम में वंक्षु की शाखा बल्ख़ नदी के दोनों ओर की भूमि वाह्लाक जनपद में मानी जाती थी। इसी प्रकार कांबोज जनपद वंक्षु नदी के उस पार स्थित था जिसे आजकल पामीर का ऊँचा पठार कहते हैं। कनिंघम के अनुसार सिंधु नदी के किनारे भंबूर नामक स्थान था जिसका निर्देश तोलेमी ने भी किया है। तात्पर्य यह है कि भारतवर्ष की विस्तृत उत्तरी सीमा एक ओर तो शकस्थान (ठेठ मंगोल देश का पश्चिमी जनपद) को और दूसरी ओर वनायुज (अरब) का स्पर्श करती थी और मध्य एशिया के समस्त प्रांत इसी सीमा के अंतर्गत माने जाते थे। फलत: शकस्थान से लेकर कन्याकुमारी तक यह प्राचीन भारतवर्ष फैला हुआ था। नि:संदेह यह व्याख्या सर्वमान्य नहीं। (ब.उ.)