ईस्टर यहूदियों, ग्रीक-रोमनों और ईसाइयों, तीनों का विशिष्ट त्यौहार, जो अधिकतर अप्रैल में पड़ता है। शब्द का मूल संभवत: नोर्स ओस्तारा अथवा इयोस्त्रे में है, जिसका अर्थ बसंत का त्यौहार है। ग्रीक यह त्यौहार बसंत संपात के समय २१ मार्च को मनाया करते थे, जब शीत ऋतु के बाद प्रकृति ऋतुमती होती थी। यहूदियों की धर्मपुस्तक बाइबिल की पुरानी पोथी (एग्ज़ोडस १२) में लिखा है कि इस्रायलियों के मिस्री प्रवास में किस तरह एक रात 'मौत का फरिश्ता' उनके आवासों के ऊपर से गुजर गया और अपने इस आचरण द्वारा उनके प्रथमजात शिशुओं की मृत्यु से रक्षा की। इसी मौत से नजात पाने का त्यौहार यहूदी अपने साल के पहले महीने निसान में मनाते हैं। ये अपने इस त्यौहार को 'पेसाख' कहते हैं।
परंतु ईस्टर का सर्वाधिक महत्व ईसाई धर्म में है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईसामसीह शूली पर चढ़ा दिए जाने के बाद मरकर भी जी उठे थे। उनका जी उठना यहूदियों के इस त्यौहार के दिन ही संभव हुआ था, तभी जब जेरूसलम में वे अपना पेसाख मना रहे थे। इसी कारण पेसाख ईस्टर का पर्याय ही बन गया। हजरत ईसा की आधारभूत मान्यताओं में से है। पूर्व और पश्चिम के समस्त ईसाई परिवार ईस्टर का यह त्यौहार बड़े उत्साह से मनाते हैं। यह ईसा मसीह के पुनर्जन्म के तुल्य है जिससे ईस्टर का त्यौहार भी उसी महत्व का माना जाता है जिस महत्व का बड़ा दिन।
ईस्टर की तिथि निश्चित करना ईसाई चर्चो के लिए सामान्य बात नहीं है। इस संबंध में पिछली सदियों में निरंतर विवाद होते रहे हैं। विवाद का कारण यह है कि इस तिथि के अंकन का प्रांरभ यहूदी तिथिक्रम से हुआ है जो चांद्रमासिक है। चांद्रमासिक होने से-यद्यपि पड़ता वह निसान मास की पूर्णिमा को ही है, तथापि वह पूर्णिमा हर साल स्वाभाविक ही उसी एक ही दिन नहीं पड़ती-ईस्टर की तिथि निश्चित करने में अक्सर कठिनाई पड़ जाया करती है। (भ.श.उ.)