ईश्वरीसिंह (जयपुर का) सवाई जयसिंह का ज्येष्ठ पुत्र। जयसिंह की मृत्यु (२३ सितंबर, १७४३ ई.) के बाद, उदयपुर की राजकुमारी से उत्पन्न उसके छोटे पुत्र माधोसिंह ने, पुष्कर नामक स्थान पर हुए समझौते के अनुरूप, जयपुर की राजगद्दी पर अपने अधिकार की घोषणा की जिसका समर्थन, जैसा स्वाभाविक ही था, उदयपुर के राणा जगतसिंह ने किया। लेकिन ईश्वरीसिंह ने बड़ी फुर्ती से राजगद्दी पर अधिकार कर लिया और दिल्ली के बादशाह की ओर से उसे जयपुर के राजा के रूप में मान्यता मिल गई। सिंधिया तथा होल्कर ईश्वरीसिंह के समर्थक थे ही। फिर क्या था, ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के बीच युद्ध ठन गया जो बीच-बीच में रुककर लगभग सात वर्ष तक चलता रहा। मार्च, १७४७ ई. में बनास नदी के किनारे ईश्वरीसिंह ने शानदार विजय प्राप्त की और मराठों को खुलकर लूटपाट का अवसर मिला। किंतु इसी बीच रानीजी सिंधिया की मृत्यु के बाद जयप्पा सिंधिया तथा मल्हारराव होल्कर में अनबन हो गई। इससे मल्हारराव होल्कर माधोसिंह के पक्ष में चला गया। १७४८ ई. में बालाजी राव ईश्वरीसिंह और माधोसिंह का झगड़ा निपटाने के लिए जयपुर पहुँचा। उसने ईश्वरीसिंह से उसके राज्य के चार जिले जबरदस्ती माधोसिंह को दिलवा दिए। १७५० ई. के दिसंबर मास में ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या कर ली। (कै.चं.श.)