ईवाँ (भीषण) चतुर्थ मास्कोबी का जार, वासिल तृतीय का पुत्र, जन्म २५ अगस्त, १५३०; मृत्यु १७ मार्च, १५८४। तीन साल की अवस्था में ही राजा घोषित। पहले माता, फिर सरदारों की अभिभावकता रही। १४ वर्ष की आयु में राज्यसत्ता ग्रहण की। बचपन में अपने प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार के कारण सरदारों से इसको घृणा हो गई थी, इसने अपने सलाहकार निम्न वर्ग के योग्य व्यक्तियों को चुना।

आंतरिक सुधार और बाहरी सफलता के साथ इसका शासन आरंभ हुआ। जार और सरदारों में शुरू से मतभेद रहा। प्रिंस वुरवस्की के पोलैंड भाग जाने से उनके प्रति इसका संदेह और अधिक बढ़ गया। राजद्रोह के प्रयत्नों को उत्पीड़न, फाँसी और कारादंड द्वारा कुचलने की इसने कोशिश की। १५५० में राष्ट्रीय परिषद् (जेमस्की सोबोर) का पहला अधिवेशन बुलाया। काजम के खानों को १५५२ में हराया, अस्त्राखान (१५५४) पर अधिकार किया, लिवोनिया और इस्तोनिया की विजय की और लिथुआनिया की विजय के लिए सेना भेजी, किंतु पोलैंड और स्वीडन के विरोध के कारण सफलता नहीं मिली। कज्जाकों की सहायता से साइबेरिया जीत लिया गया।

ईवाँ चतुर्थ का व्यक्तित्व राजनीतिक बुद्धिमत्ता, सभ्यता और बर्बरता, क्रूरता और अनैतिकता का अद्भुत मिश्रण था। संकटों और दु:खों के कारण पत्नी और पुत्र की मृत्यु के बाद विशेष रूप से यह क्रूर, शक्की और उन्मत्त हो गया। नोवगोरोद को राजद्रोह के संदेह मात्र से धूलिसात् करना, राज्य के उत्तराधिकारी एवं प्रिय पुत्र ईवाँ को अनियंत्रित गुस्से में मार डालना, इसके पागलपन के उदाहरण हैं। १५६४-१५८० के मध्य दो बार इसने सिंहासन छोड़ने की इच्छा प्रकट की, किंतु अनुरोध करने पर राजा बना रहा।

(अ.कु.वि.)