ईद का शाब्दिक अर्थ सामयिक स्थितिपरिवर्तन है। व्यवहार में इस शब्द का प्रयोग दो प्रमुख मुसलमानी प्रार्थना के त्योहारों के लिए होता है-ईदुल फ़ित्र (बक़रीद), जो दसवीं ज़िलहिज्ज को मनाई जाती है, तथा ईदुज्ज़़ुहा जो रमज़ान के ्व्रात के महीने के बाद पहले 'शाबान' को मनाई जाती है। इन प्रार्थनाओं में दो 'रकत' और धर्मोपदेश होते हैं। जहाँ तक संभव हो, ईद की नमाज नगर के किसी खुले हुए स्थान पर संपन्न की जाती है; अन्यथा यह नमाज मस्जिद में भी हो सकती है।
प्रत्येक मुसलमान को, यदि संभव हो, जीवन में एक बार ईदुल फ़ित्र के अवसर पर मक्का की तीर्थयात्रा करनी चाहिए। मुसलमानों का विश्वास है कि हज के कुछ रिवाज पैगंबर इब्राहीम के समय से प्रचलित हैं जिनमें एक यह है कि प्रत्येक हाजी 'मिना' के ऊपर एक पशु की बलि दे। जो मुसलमान हज करने नहीं जाते वे अपने घरों पर ही पशुबलि देते हैं। नियमानुसार उनको बलिपशु का मांस गरीबों को बाँट देना चाहिए।
शिया मुसलमान एक तीसरी ईद भी मनाते हैं जिसका नाम ईद-इ-ग़्दाीर है। यह नाम मक्का और मदीना के बीच स्थित एक तालाब के नाम पर आधारित हैं। उनका विश्वास है कि उक्त तालाब पर आकर पैंगंबर ने कहा था, ''जिस किसी का भी पूज्य मैं हूँ उसका पूज्य अली भी है''। (मु.ह.)