इसिपत्तन वर्तमान सारनाथ, वाराणसी, बौद्ध पालि साहित्य में 'इसिपत्तन' के नाम से प्रसिद्ध है। बुद्धत्व लाभ करने के उपरांत भगवान् बुद्ध ने यहीं आकर अपना सर्वप्रथम उपदेश दे धर्मचक्रप्रवर्तन किया। इस कारण, यह पुनीत भूमि आज भी सारे बौद्ध जगत् के लिए तीर्थस्थान बन गई है। इसका नाम 'इसिपत्तन' क्यों पड़ा, इस पर कई व्याख्याएँ प्राप्त होती हैं। कहते हैं, पूर्वकाल में आकाशमार्ग से जाते कुछ सिद्ध योगी निर्वाण प्राप्त कर यहीं गिर पड़े, जिससे इस स्थान का नाम 'ऋषि के गिरने का स्थान' अर्थात् 'इसिपत्तन' पड़ा। अधिक संभव है, ऋषिओं का 'पत्तन' (नगर) होने के कारण यह 'इसिपत्तन' के नाम से विख्यात हुआ। इस स्थान से सम्बंधित एक जातक कथा में यहाँ निवास करनेवाले मृगाधिपति सुवर्ण-शरीर-धारी बोधिसत्व का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अपने ज्ञान से वाराणसी के राजा को धर्मोपदेश कर जीवहिंसा का परित्याग कराया। फिर उन्हीं के नाम से यह स्थान सारंगनाथ या सारनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। (भि.ज.का.)