इसाइया यहूदी धर्म के चार महान् नबियों में से एक। ये अमोज के बेटे और जूदा के राजा अमाजिआ के भतीजे थे। इसाइया ने ७३५ ई.पू. से ६८१ ई. पू. तक यहूदी जाति के संबंध में भविष्यवाणियाँ कीं। असूरिया के आक्रमणों के समय इसाइया ने यहूदियों को शत्रुओं के आक्रमण का सामना करने के लिए प्रोत्साहित और कटिबद्ध किया। इसाइया से प्रोत्साहन पाकर पराक्रमी शत्रुओं के विरुद्ध यहूदी कमर कसकर उठ खड़े हुए, यद्यपि अंत में वे पराजित हुए। इसाइया को इसीलिए 'दृढ़विश्वासी पैगंबर' के नाम से पुकारा जाता है। यहूदी जाति को इसाइया ने बारंबार चेतावनी दी कि आध्यात्मिक सत्ता सांसारिक सत्ता से कहीं अधिक शक्तिशाली है और उच्च विचार अंत में पाशविक शक्ति के ऊपर हावी होंगे। इसाइया में न केवल उच्च और दृढ़ विश्वास था, वरन् वह एक ऊँचे दरजे के व्यावहारिक नीतिज्ञ भी थे। इसाइया की गणना संसार के महान् से महान् पुरुषों में की जाती है। उनके जीवन का अंत उनका महान् बलिदान है। आरे से इसाइया के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गए किंतु उन्होंने दैवी शक्ति के ऊपर भौतिक शक्ति की श्रेष्ठता को स्वीकार नहीं किया।
पैंगबर इसाइया के जीवन और कार्यो के वृत्तांत 'ओल्ड टेस्टामेंट' अर्थात् 'पुराने अहदनामें' में संकलित हैं। पुराने अहदनामें के इस भाग को 'इसाइया की पुस्तक' के नाम से पुकारा जाता है। इसाइया की पुस्तक को विद्वान् लोग यहूदी धर्म का एक महान् स्मारक मानते हैं। इस पुस्तक को मुख्यतया दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक भाग में यहूदी जाति के निर्वासनकाल के पहले का वृत्तांत है और दूसरे में निर्वासनकालीन जीवन का। कुछ आलोचकों के अनुसार इसाइया की पुस्तक में यदाकदा ऐसे अंश भी दिखाई देते हैं जिन्हें बाद में संपादकों, भाष्यकारों या टीकाकारों ने जोड़ दिया है। अनेक विद्वान् खोजियों के अनुसार चौथी सदी ई.पू. में इसाइया की पुस्तक वर्तमान थी किंतु उस समय उसमें पहले से लेकर २५वें अध्याय तक का ही भाग था। टीकाकारों के अनुसार २६वें से लेकर ३९वें अध्याय तक का भाग बाद में किसी समय जोड़ा गया।
इसाइया अपने उपदेशों में हर प्रकार की बुराई की निंदा करते हैं, चाहे वह बुराई यहूदियों के देश जूदा में रही हो या दूसरे देशों में। इसाइया के अनुसार बुराई का दंड अवश्य मिलेगा, चाहे उसका दोषी यहूदी धर्म का प्रतिपालक हो या अन्य धर्मावलंबी। इसाइया मूर्तिपूजा को बुरा बताते हैं और यह्वे को चढ़ाए जानेवाले अटूट भोगों औरं बलियों की निंदा करते हैं। इसाइया की दृष्टि में यह्वे न्याय और रहम करनेवाला है। इसाइया सदाचरण को धार्मिक जीवन की बुनियाद मानते हैं। वह रिश्वत देने और लेने को गुनाह बताते हैं। वह न्याय और सत्य को जीवन का आधार मानते और रक्तपात से घृणा करते हैं। वह अभिमानी और ऐश्वर्यशाली लोगों को पंसद नहीं करते और कहते हैं कि प्रत्येक अभिमानी और ऐश्वर्यशाली व्यक्ति का सिर एक दिन नीचा होगा। उनकी यह्वे की कल्पना सजा देनेवाले क्रोधी ईश्वर की कल्पना नहीं है, वरन् वह रहम करनेवाला और अनंत शांति देनेवाला ईश्वर है।
इसाइया का जन्म यहूदी जाति के इतिहास में एक ऐसे काल में हुआ जब यहूदी जाति बाबुल के शासकों द्वारा पराजित होकर निर्वासन में विपत्तियों से भरा हुआ अपना जीवन बिता रही थी। इसाइया ने इस दु:ख भरे समय में अपनी जाति को आश्वासन दिया और यह्वे के प्रति उसकी आस्था को बनाए रखा। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि ज़रथुस्त्री सम्राट् कुरु की बढ़ती हुई शक्ति के हाथों बाबुल की अभिमानी सत्ता पराजित होगी और उसका मान भंग होगा। इसाइया की भविष्यवाणी पूरी उत्तरी।
सं.ग्रं.-एच.ग्रेज : हिस्ट्री ऑव द ज्यूज़ (१९१०); एफ.जे.पोक्स : बिब्लिकल हिस्ट्री ऑव हिब्रूज़ (१९०८); जे. स्किमर : इसाइया (१८९८)। (वि.ना.पां.)