इल्तुतमिश, सुल्तान शम्सुद्दीन (शासनकाल १२११-१२३६ ई.) गुलाम वंश का तीसरा शक्तिशाली बादशाह जिसे भारत में दिल्ली की सुल्तानशाही को स्थायी बनाने का श्रेय है। इल्तुतमिश इल्बरी कबीले से संबद्ध उच्चवंशीय तुर्क था और एक दास के रूप में कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ भारत आया था। उसका विवाह कुतुबुद्दीन की पुत्री से हुआ था। सन् १२१० में कुतुबुद्दीन की मृत्यु के पश्चात् उसका उत्तराधिकारी आराम गद्दी पर बैठा। किंतु वह एक वर्ष ही शासन कर पाया था कि गद्दी से उतार दिया गया और शम्सुद्दीन (धर्म का सूर्य) उपाधि धारण करके इल्तुतमिश दिल्ली का बादशाह बना। दिल्ली के अमीर, भारत के हिंदू राजा, कुतुबुद्दीन का दूसरा दामाद कुबैचा और श्वसुर अल्दोज़ सभी इल्तुतमिश के विरोधी थे क्योंकि उनकी दृष्टि में वह 'दास का दास' था। बादशाह ने बड़े ही धैर्य से काम लिया और शीघ्र ही अमीरों के समस्त विरोध को निरस्त कर दिया। इतना ही नहीं, उसने बड़े कौशल से, उत्तर में शिवालिक पर्वतश्रेणी और पूर्व में बनारस तक अपना प्रभुत्व स्थापित करने में भी सफलता प्राप्त की। १२१६ ई. में, तराइन के युद्ध में उसने अल्दोज़ को हराया और पंजाब पर अधिकार कर लिया। १२१७ ई. में उसने कुबैचा को भी लाहौर से खदेड़ दिया, हालांकि उसके उपद्रव बहुत बाद तक जारी रहे। इसी बीच सुल्तान के लिए एक नया खतरा पैदा हो गया। यह खतरा क्रूर विजेता चंगेज खां के नेतृत्व में भारत की ओर बढ़ रहे बर्बर मंगोलों की ओर से था। चंगेज़ खां ख्वारिज्म़ के अंतिम शाह जलालुद्दीन मंगबरनी का पीछा करता हुआ सिंधु नदी तक आया लेकिन भारत की गर्मी उसके सैनिक बर्दाश्त न कर सके, अत: वह वापस चला गया (१२२१ ई.)। इससे इल्तुतमिश को बहुत लाभ हुआ। शाह ख्वारिज्म़ ने कुबैचा से युद्ध करके उसकी शक्ति को क्षीण कर दिया और काफी बाद में जब इल्तुतमिश ने कुबैचा को दबाया तो भागते हुए वह सिंधु नदी में डूबकर मर गया (१२२८ ई.)।

मालवा और बुंदेलखंड पर भी इल्तुतमिश ने चढ़ाई की। १२२६ ई. रणथंभौर का सुद्ढ़ दुर्ग उसके अधिकार में आ गया और १२३२-३३ में उसने ग्वालियर तथा उज्जैन के किलों पर कब्जा कर लिया। उज्जैन में उसने महाकाल के मंदिर को निर्दयता के साथ नष्ट किया। सन् १२२८ में बगदाद के खलीफा की ओर से उसे ''हिंद-इस्लामी-सल्तनत'' के सुल्तान के रूप में मान्यता मिल गई। इससे उसके उन सभी विरोधियों का मुँह बंद हो गया जो उसे दिल्ली के सिंहासन का जायज अधिकारी नहीं समझते थे।

दिल्ली में कुतुबमीनार और उसके आसपास के भवनों को पूरा कराने का श्रेय भी इल्तुतमिश को दिया जाता है। भारत में सबसे पहले उसी ने अरबी सिक्कों का प्रचलन किया। चाँदी का 'टंका', जिसका भार १७५ ग्रेन होता था, मानक मुद्रा के रूप में जारी किया गया। अत: टंका को आधुनिक रुपए का पूर्वज कहा जा सकता है। इन सिक्कों पर इल्तुतमिश की अन्य उपाधियों के साथ 'नजीर-अमीरुल-मोमिनीन' (बानिए इस्लाम का सहायक) भी अंकित रहता था। सन् १२३६ ई. में २६ वर्ष शासन करने के बाद इल्तुतमिश का देहांत हो गया।