शिवाजी भोंसले ईसा की सत्रहवीं शताब्दी में दक्षिण भारत में स्वतंत्र मराठा राज्य के संस्थापक। शिवनेर दुर्ग में अप्रैल, १६२७ ई., अथवा (जेधेयांची शकावली के अनुसार) फरवरी, १६३० ई. में जन्म लिया। पूना जिले में चालीस हजार हून की वार्षिक आयवाली पैतृक जागीर थी। वहीं माता जीजाबाई और गुरु दादाजी कोंडदेव के संरक्षण में बाल्यावस्था बती। पिता, शाहजी भोंसले, पहले निजामशाही और बाद में आदिलशाही राज्य के उच्च पदाधिकारी थे। शिवाजी ने १६४५ में 'हिंदवी स्वराज्य' की स्थापना का व्रत लिया और आगामी वर्ष में तोरण दुर्ग पर अधिकार कर लिया। १६४७ में कोंडवजी परलोक सिधारे। अगले वर्ष शाहजी जिंजी दुर्ग में बंदी बनाए गए। मुगल साम्राट् शाहजहाँ का पाँच हजारी मंसबदार बनना स्वीकार कर शिवाजी ने अपने पिता को मुक्त करा लिया। १६५६ में जावती तथा अन्य दुर्ग जीतकर इन्होंने अपने राज्य को दुगुना कर लिया। १६५९ में बीजापुरी सेनापति अफजलखाँ को मारकर उसकी सेना को खदेड़ दिया। १६६३ में पूना में ठहरे हुए मुगल सेनापिति शायस्ता खाँ पर रात में एकाएक आक्रमण कर उसे क्षति पहुँचाई। अगले वर्ष सूरत शहर को लूटा। उसी वर्ष शाहजी का देहांत हुआ।

मुगल साम्राट् औरंगजेब ने शिवाजी के दमनार्थ १६६५ में राजा जयसिंह को दक्षिण भेजा। शत्रु के सैन्यबल के विरुद्ध सफल होने की संभावना न देखकर शिवाजी ने पुरंदर नामक स्थान पर संधि कर ली। उक्त संधि के अनुसार चार लाख हून की वार्षिक आय वाले तेईस दुर्ग मुगलों को दे दिए गए और दक्षिण में मुगल सेना के सहायतार्थ पाँच हजार मराठा अश्वारोही सैनिक भेजने का वचन भी दिया गया। वचनबद्ध होने के कारण शिवाजी ने बीजापुर के विरुद्ध मुगलों को सहायता दी।

राजा जयसिंह की प्रेरणा से १६६६ में शिवाजी आगरा में औरंगजेब के दरबार में उपस्थित हुए। वहाँ यथोचित सम्मान के अभाव पर क्षोभ प्रकट करने के कारण उन्हें तीन मास कड़ी देख-रेख में बिताने पड़े। तदुपरांत पूर्वनिश्चित योजनानुसार रात में वे आगरा से निकल भागे और मथुरा, इलाहाबाद, बनारस, गया आदि शहरों से होते हुए राजगढ़ पहुँच गए। आगामी तीन वर्ष शिवाजी ने शासन संगठन में बिताए और राजा जसवंत सिंह एवं शाहजादा शाहआलम की मध्यस्थता से मुगलों से मैत्री संबंध बनाए रखा। तत्पश्चात् एक-एक करके उन किलों की हस्तगत करना प्रारंभ किया जो पुरंदर की संधि के अनुसार मुगलों को दिए गए थ। १६७० में सूरत शहर को दुबारा लूटा। १६७४ में शिवाजी ने रायगढ़ में छत्रपति की उपाधि धारण की। जब दक्षिण से मुगल सैनिक उत्तर पश्चिम सीमंत प्रदेश की ओर भेज दिए गए तो सुअवसर पाकर १६७७ में शिवाजी ने कर्णाटक तथा मैसूर पठार के अभियानों में इतने दुर्ग लिए कि उनकी वार्षिक आय में लगभग बीस लाख हून की वृद्धि हो गई।

राज्यविस्तार के साथ साथ शिवाजी ने शासनव्यवस्था पर भी समुचित ध्यान दिया। असैनिक झगड़ों का निपटारा पंचायतों द्वारा किया जाता था। राजस्व के रूप में भूमि की उपज का २।५ लिया जाता था। लगान वसूली के लिए राज्य के कर्मचारी नियुक्त थे। मुगलई प्रदेशों से चौथ एवं सरदेशमुखी उगाहने का विधान था। परामर्शदात्री अष्टप्रधान परिषद् में पेशवा का स्थान सर्वोपरि था। आय व्यय का निरीक्षण अमात्य के सुपुर्द था। राज्य की प्रमुख घटनाओं को लिपिबद्ध करना मंत्री का काम था। गृहमंत्री का कार्य सचिव करता था। परराष्ट्रमंत्री सुमंत कहलाता था। धार्मिक विषय पंडितराव के अधीन थे। न्याय विभाग का कार्य न्यायाधीश के देख-रेख में होता था।

सैनिक संगठन सुव्यवस्थित तथा अनुशासन कठोर था। दस पदातिकों पर एक नायक, पाँच नायकें पर एक हवलदार, दो या तीन हवलदारों पर एक जुमलादार और दस जुमलादारों पर एकहजारी होता था। पदाति सेना में सातहजारी और उने ऊपर सेनापति या सर-ए-नौबत होता था। अश्वारोहियों में 'बारगीर' को राज्य की ओर से घोड़े मिलते थे जबकि 'सिलाहदार' को अपने घोड़े लाने पड़ते थे। एक हवलदार के अधीन पचीस अश्वारोही, एक जुमलादार के नीचे पाँच हवलदार और एक हजारी के अधीन दस जुमलादार होते थे। पाँच हजारी पूरे रिसाले के सेनापति के अधीन होते थे। प्रत्येक दुर्ग में एक हवलदार, एक सब्निस (वेतनवितरक) तथा ए सर-ए-नौबत रहता था। मराठा सेना में सिद्दी सबल, सिद्दो हलाल, दौलतखाँ, नूरखाँ आदि मुसलमान अधिकारी भी नियुक्त थे। कोलाबा में नौसेना की व्यवस्था की गई थी। वेतन नकद दिया जाता था।

शिवाजी के विरोधियों ने भी उनकी प्रशंसा की है। हिंदू धर्म एवं संस्कृति के स्तंभ एवं संरक्षक होते हुए भी अन्य धर्मावलंबियों के प्रति उनकी नीति सहिष्णुतापूर्ण एवं उदर थी। किलोशी के मुसलमान बाबा याकूत का भरण पोषण शिवाजी द्वारा ही किया जाता था। लूट के माल में मिले 'कुरानशरीफ' को किसी मौलवी के सुपुर्द कर दिया जात था। राज्य की ओर से केवल मंदिरों को ही नहीं बल्कि मस्जिदों को भी दान दिया जाता था। युद्ध में पकड़े गए बच्चों एवं स्त्रियों पर किसी भी प्रकार का अनाचार वर्जित था। शिवाजी बड़ी सूझबूझवाले, प्रजाहितैषी, चतुर, प्रतिभावान्, सहृदय व्यक्ति एवं दक्ष सैनिक थे। वे विद्वानों के आश्रयदाता भी थे। अप्रैल, १६८० में उनका स्वर्गवास हुआ।

सं. ग्रं. - (अंग्रेजी में) जे. सरकार : शिवाजी ऐंड हिज़ टाइम्ज; जी. एस. सरदेसाई : द मेन करेंट्स ऑव मराठा हिस्टरी; एस. एन. सेन: द ऐड्मिनिस्ट्रेटिव सिस्टम ऑव द मराठाज़; के ए. एन. शास्त्री : हिस्टरी ऑव इंडिया, पार्ट टू); सर वुल्ज़मी हंग ऐंड सर रिचर्ड बर्टन : केंब्रिज हिस्टरी ऑव इंडिया (वॉल्यूम फोर); एम. जी. रानाडे : राईज ऑव द मराठा पावर।

(हिंदी में)-डा. ईश्वरीप्रसाद : भारत का इतिहास (भाग २); गो. स. सरदेसाई : शालोपयागी भारतवर्ष (खंड १); जयचंद विद्यालंकार : इतिहासप्रवेश। (जंगीर सिंह)