शंकर या शिव हिंदुओं के एक प्रसिद्ध देव जो सृष्टि का संहार करनेवाले और पौराणिक त्रिमूर्ति के अंतिम देव कहे गए हैं। वैदिक काल में यही रुद्र के रूप में पूजे जाते थे; पर पौराणिक काल में ये शंकर, महादेव और शिव आदि नामों से प्रसिद्ध हुए। पुराणानुसार इनका रूप इस प्रकार है-सिर पर गंगा, माधे पर चंद्रमा तथा तीसरा नेत्र, गले में साँप तथा नरमुंडों की माला, सारे शरीर में भस्म, व्याघ्रचर्म ओढ़े हुए और बाएँ अंग में अपनी स्त्री पार्वती को लिए हुए। इनके पुत्र गणेश तथा कार्तिकेय, गण भूत और प्रेत, प्रधान अस्त्र त्रिशूल और वाहन बैल है, जो नंदी कहलाता है। इनके धनुष का नाम पिनाक है जिसे धारण करने के कारण यह पिनाकी भी कहे जाते हैं। इनके पास पाशुपत नामक एक प्रसिद्ध अस्त्र था, जो इन्होंने अर्जुन को उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दे दिया था। पुराणों में इनके संबंध में बहुत सी कथाएँ हैं। यह कामदेव का दहन करनेवाले माने जाते हैं। समुद्र मंथन के समय जो विष निकला था, वह इन्होंने पान किया था। वह विष इन्होंने अपने गले में ही रखा और नीचे अपने पेट में नहीं उतारा इसलिए इनका गला नीला हो गया और यह नीलकंठ कहलाने लगे। परशुराम ने अस्त्रविद्या की शिक्षा इन्हीं से पाई थी। संगीत, नृत्य तथा अभिनय के भी यह प्रधान आचार्य और परम तपस्वी तथा योगी माने जाते हैं। इनके नाम से एक पुराण भी है जो शिवपुराण कहलाता है। इनके उपासक ''शैव'' कहलाते हैं। इनका निवासस्थान कैलास माना जाता है। (विश्वनाथ त्रिपाठी)