विश्वकोश का अर्थ है विश्व के समस्त ज्ञान का भंडार। अत: विश्वकोश वह कृति है जिसमें ज्ञान की सभी शाखाओं का सन्निवेश होता है। इसमें वर्णानुक्रमिक रूप में व्यवस्थित अन्यान्य विषयों पर संक्षिप्त किंतु तथ्यपूर्ण निबंधों का संकलन रहता है। यह संसार के समस्त सिद्धांतों की पाठ्य्सामग्री है। विश्वकोश अंग्रेजी शब्द 'इनसाइक्लोपीडिया' का समानार्थी है, जो ग्रीक शब्द इनसाइक्लियॉस (एन = ए सर्किल तथा पीडिया = एजुकेशन) से निर्मित हुआ है। इसका अर्थ शिक्षा की परिधि अर्थात् निर्देश का सामान्य पाठ्यविषय है।
विश्वकोश का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में विकीर्ण कला एवं विज्ञान के समस्त ज्ञान को संकलित कर उसे व्यवस्थित रूप में सामान्य जन के उपयोगार्थ उपस्थित करना तथा भविष्य के लिए सुरक्षित रखना है। इसमें समाविष्ट भूतकाल की ज्ञानविज्ञान की उपलब्धियाँ मानव सभ्यता के विकास के लिए साधन प्रस्तुत करती हैं। यह ज्ञानराशि मनुष्य तथा समाज के कार्यव्यापार की संचित पूँजी होती है। आधुनिक शिक्षा के विश्वपर्यवसायी स्वरूप ने शिक्षार्थियों एवं ज्ञानार्थियों के लिए संदर्भग्रंथों का व्यवहार अनिवार्य बना दिया है। विश्वकोश में संपूर्ण संदर्भों का सार निहित होता है। इसलिए आधुनिक युग में इसकी उपयोगिता असीमित हो गई है। इसकी सर्वार्थिक उपादेयता की प्रथम अनिवार्यता इसकी बोधगम्यता है। इसमें संकलित जटिलतम विषय से संबंधित निबंध भी इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि वह सामान्य पाठक की क्षमता एवं उसके बौद्धिक स्तर के उपयुक्त तथा बिना किसी प्रकार की सहायता के बोधगम्य हो जाता है। उत्तम विश्वकोश ज्ञान के मानवीयकरण का माध्यम है।
प्राचीन अथवा मध्ययुगीन निबंधकारों द्वारा विश्वकोश (इन साइक्लोपीडिया) शब्द उनकी कृतियों के नामकरण में प्रयुक्त नहीं होता था पर उनका स्वरूप विश्वकोशीय ही था। इनकी विशिष्टता यह थी कि ये लेखक विशेष की कृति थे। अत: ये वस्तुपरक कम, व्यष्टिपरक अधिक थे तथा लेखक के ज्ञान, क्षमता एवं अभिरुचि द्वारा सीमित होते थे। विषयों के प्रस्तुतीकरण और व्याख्या पर उने व्यक्तिगत दृष्टिकोणों की स्पष्ट छाप रहती थी। ये संदर्भग्रंथ नहीं वरन् अन्यान्य विषयों के अध्ययन हेतु प्रयुक्त निर्देशक निबंधसंग्रह थे।
विश्व की सबसे पुरातन विश्वकोशीय रचना अफ्रीकावासी मार्सियनस मिस फेलिक्स कॉपेला की 'सटोराअ सटीरिक' है। उसने पाँचवीं शती के आरंभकाल में गद्य तथा पद्य में इसका प्रणयन किया। यह कृति मध्ययुग में शिक्षा का आदर्शागार समझी जाती थी। मध्ययुग तक ऐसी अन्यान्य कृतियों का सर्जन हुआ, पर वे प्राय: एकांगी थीं और उनका क्षेत्र सीमित था। उनमें त्रुटियों एवं विसंगतियों का बाहुल्य रहता था। इस युग को सर्वश्रेष्ठ कृति व्यूविअस के विसेंट का ग्रंथ 'बिब्लियोथेका मंडी' या 'स्पेकुलस मेजस' था। यह तेरहवीं शती के मध्यकालीन ज्ञान का महान् संग्रह था। उसने इस ग्रंथ में मध्ययुग की अनेक कृतियों को सुरक्षित किया। यह कृति अनेक विलुप्त आकर (क्लैसिकल) रचनाओं तथा अन्यान्य ग्रंथों की मूल्यवान पाठ्य्सामग्रियों का सार प्रदान करती है। प्राचीन ग्रीस में स्प्युसिपस तथा अरस्तू ने महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की थी। स्प्युसिपस ने पशुओं तथा वनस्पतियों का विश्वकोशीय वर्गीकरण किया तथा अरस्तू ने अपने शिष्यों के उपयोग के लिए अपनी पीढ़ी के उपलब्ध ज्ञान एवं विचारों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने के लिए अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया। इस युग में प्रणीत विश्वकोशीय ग्रंथों में प्राचीन रोमवासी प्लिनी की कृति 'नैचुरल हिस्ट्री' हमारी विश्वकोश की आधुनिक अवधारणा के अधिक निकट है। यह मध्य युग का उच्च आधिकाधिक ग्रंथ है। यह ३७ खंडों एवं २४९३ अध्यायों में विभक्त है जिसमें ग्रीकों के विश्वकोश के सभी विषयों का सन्निवेश है। प्लिनी के अनुसार इसमें १०० लेखकों के २००० ग्रंथों से संगृहीत २०,००० तथ्यों का समावेश है। सन् १५३६ से पूर्व इसके ४३ संस्करण प्रकाशित हो चुके थे। इस युग की एक प्रसिद्ध कृति फ्रांसीसी भाषा में १९ खंडों में प्रणीत (सन् १३६०) बार्थोलोमिव द ग्लैंविल का ग्रंथ 'डी प्रॉप्रिएटैटिबस रेरम' था। सन् १४९५ में इसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुआ तथा सन् १५०० तक इसके १५ संस्करण निकल चुके थे।
जॉकियस फाटिअस रिंजल बर्जियस (१५४१) एवं हंगरी के काउंट पॉल्स स्कैलिसस द लिका (१५९९) की कृतियाँ सर्वप्रथम विश्वकोश (इंसाइक्लोपीडिया) के नाम से अभिहित हुई। जोहान हेनरिच आस्टेड ने अना विश्वकोश इंसाइक्लोपीडिया सेप्टेम टॉमिस डिस्टिक्टा' सन् १६३० में प्रकाशित किया जो इस नाम को संपूर्णत: चरितार्थ करता था। इसमें प्रमुख विद्वानों एवं विभिन्न कलाओं से संबंधित अन्यान्य विषयों का समावेश है। फ्रांस के शाही इतिहासकार जीन डी मैग्नन का विश्वकोश 'लर्रे साइंस युनिवर्स' के नाम से १० खंडों में प्रकाशित हुआ था। यह ईश्वर की प्रकृति से प्रारंभ होकर मनुष्य के पतन के इतिहास तक समाप्त होता है। लुइस मोरेरी ने १६७४ में एक विश्वकोश की रचना की जिसमें इतिहास, वंशानुसंक्रमण तथा जीवनचरित् संबंधी निबंधों का समावेश था। सन् १७५९ तक इसके २० संस्करण प्रकाशित हो चुके थे। इटीन चाविन की सन् १७११३ में प्रकाशित महान् कृति 'कार्टेजिनयन' दर्शन का शब्दकोश है। फ्रेंच एकेडेमी द्वारा फ्रेंच भाषा का महान् शब्दकोश सन् १६९४ में प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात् कला और विज्ञान के शब्दकोशों की एक शृंखला बन गई। विसेंजो मेरिया कोरोनेली ने सन् १७०१ में इटैलियन भाषा में एक वर्णानुक्रमिक विश्वकोश 'बिब्लियोटेका युनिवर्सेल सैक्रोप्रोफाना' का प्रकाशन प्रारंभ किया। ४५ खंडों में प्रकाश्य इस विश्वकोश के ७ ही खंड प्रकाशित हो सके।
अंग्रेजी भाषा में प्रथम विश्वकोश 'ऐन युनिवर्सल इंग्लिश डिक्शनरी अॅव आर्ट्स ऐंड साइंस' की रचना जॉन हैरिस ने सन् १७०४ में की। सन् १७१० में इसका द्वितीय खंड प्रकाशित हुआ। इसका प्रमुख भाग गणित एवं ज्योतिष से संबंधित था। हैंबर्ग में जोहानम के रेक्टर जोहान हुब्नर के नाम पर दो शब्दकोश क्रमश: सन् १७०४ और १७१० में प्रकाशित हुए। बाद में इनके अनेक संस्कण निकले। इफेम चैंबर्स ने सन् १७२८ में अपनी साइक्लोपीडिया दो खंडों में प्रकाशित की। उसने प्रत्येक विषय से संबंधित विकीर्ण तथ्यों को समायोजित करने का प्रयास किया। हर निबंध में चैंबर्स ने संबंधित विषय का संदर्भ दिया है। सन् १७४८-४९ में इसका इटैलियन अनुवाद प्रकाशित हुआ। चैंबर्स द्वारा संकलित एवं व्यवस्थित ७ नए खंडों की सामग्री का संपादन कर डॉ. जॉनहिल ने पूरक ग्रंथ सन् १७५३ में प्रकाशित किया। इसका संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण (१७७८-८८) अब्राहम रीज़ द्वारा प्रकाशित हुआ। लाइपजिग के एक पुस्तकविक्रेता जोहान हेनरिच जेड्लर ने एक बृहद् एवं सर्वाधिक व्यापक विश्वकोश 'जेड्लर्स युनिवर्सल लेक्सिकन' प्रकाशित किया। इसमें सात सुयोग्य संपादकों की सेवाएँ प्राप्त की गई थीं और एक विषय के सभी निबंध एक ही व्यक्ति द्वारा संपादित किए गए थे। सन् १७५० तक इसके ६४ खंड प्रकाशित हुआ तथा सन् १७५१ से ५४ के मध्य ४ पूरक खंड निकले।
'फ्रेंच इंसाइक्लोपीडिया' अठारहवीं शती की महत्तम साहित्यिक उपलब्धि है। इसकी रचना 'चैंबर्स साइक्लोपीडिया के फ्रेंच अनुवाद के रूप में अंग्रेज विद्वान् जॉन मिल्स द्वारा उसके फ्रांस आवासकाल में प्रारंभ हुई, जिसे उसने मॉटफ़ी सेल्स की सहायता से सन् १७४५ में समाप्त किया। पर वह इसे प्रकाशित न कर सका और इंग्लैंड वापस चला गया। इसके संपादन हेतु एक-एक कर कई विद्वानों की सेवाएँ प्राप्त की गईं और अनेक संघर्षों के पश्चात् यह विश्वकोश प्रकाशित हो सका। यह मात्र संदर्भ ग्रंथ नहीं था; यह निर्देश भी प्रदान करता था। यह आस्था और अनास्था का विचित्र संगम था। इसने उस युग के सर्वाधिक शक्तिसंपन्न चर्च और शासन पर प्रहार किया। संभवत: अन्य कोई ऐसा विश्वकोश नहीं है, जिसे इतना राजनीतिक महत्व प्राप्त हो और जिसने किसी देश के इतिहास और साहित्य पर क्रांतिकारी प्रभाव डाला हो। पर इन विशिष्टताओं के होते हुए भी यह विश्वकोश उच्च कोटि की कृति नहीं है। इसमें स्थल-स्थल पर त्रुटियाँ एवं विसंगतियाँ थीं। यह लगभग समान अनुपात में उच्च और निम्न कोटि के निबंधों का मिश्रण था। इस विश्वकोश की कटु आलोचनाएँ हुई।
इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका स्कॉटलैंड की एक संस्था द्वारा एडिनवर्ग से सन् १७७१ में तीन खंडों में प्रकाशित हुईं। तब से इसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। प्रत्येक नवीन संस्करण में विशद संशोधन परिवर्धन किए गए। इसका चतुर्दश संस्करण सन् १९२९ में २३ खंडों में प्रकाशित हुअ। सन् १९३३ में प्रकाशकों ने वार्षिक प्रकाशन और निरंतर परिवर्धन की नीति निर्धारित की और घोषणा की कि भविष्य के प्रकाशनों को नवीन संस्करण की संज्ञा नहीं दी जाएगी। इसकी गणना विश्व के महान् विश्व के महान् विश्वकोशों में है तथा इसका संदर्भ ग्रंथ के रूप में अन्यान्य देशों में उपयोग किया जाता है।
अमरीका में अनेक विश्वकोश प्रकाशित हुए, पर वहाँ भी प्रमुख ख्याति इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका को ही प्राप्त है। जॉर्ज रिप्ले एवं चार्ल्स एडर्सन डाना ने 'न्यू अमरीकन साक्लोपीडिया' (१८५८-६३) १६ खंडों में प्रकाशित की। इसका दूसरा संस्करण १८७३ से १८७६ के मध्य निकला। एल्विन जे. जोंसन का विश्वकोश जोंसंस न्यू यूनिवर्सल साइक्लोपीडिया (१८७५-७७) ४ खंडों में प्रकाशित हुआ, जिसका नया संस्करण ८ खंडों में १८९३-९५ में प्रकाशित हुआ। फ्रांसिस लीबर ने 'इंसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना' का प्रकाशन १८२९ में प्रारंभ किया। प्रथम संस्करण के १३ खंड सन् १८३३ तक प्रकाशित हुए। सन् १८३५ में १४ खंड प्रकाशित किए गए। सन् १८५८ में यह पुन: प्रकाशित की गई। सन् १९०३-०४ में एक नवीन कृति 'इंसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना' के नाम से १६ खंडों में प्रकाशित हुई। इसके पश्चात् इस विश्वकोश के अनेक संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण निकले। सन् १९१८ में यह ३० खंडों में प्रकाशित हुआ और तब से इसमें निरंतर संशोधन परिवर्धन होता आ रहा है। प्रत्येक शताब्दी के इतिहास का पृथक् वर्णन तथा साहित्य और संगीत की प्रमुख कृतियों पर पृथक् निबंध इस विश्वकोश की विशिष्टताएँ हैं।
ऐसे विश्वकोशों के भी प्रणयन की प्रवृत्ति बढ़ रही है जो किसी विषय विशेष से संबद्ध होते हैं। इनमें एक ही विषय से संबंधित तथ्यों पर स्वतंत्र निबंध होते हैं। यह संकलन संबद्ध विषय का सम्यक् ज्ञान कराने में सक्षम होता है। इंसाइक्लोपीडिया ऑव सोशल साइंसेज़ इसी प्रकार का अत्यंत महत्वपूर्ण विश्वकोश है।
भारतीय वाङ्मय में संदर्भ ग्रंथों का कभी अभाव नहीं रहा, पर नगेंद्रनाथ वसु द्वारा संपादित बँगला विश्वकोश ही भारतीय भाषाओं से प्रणीत प्रथम आधुनिक विश्वकोश है। यह सन् १९११ में २२ खंडों में प्रकाशित हुआ। नगेंद्रनाथ वसु ने ही अनेक हिंदी विद्वानों के सहयोग से हिंदी विश्वकोश की रचना की जो सन् १९१६ से १९३२ के मध्य २५ खंडों में प्रकाशित हुआ। श्रीधर व्यंकटेश केतकर ने मराठी विश्वकोश की रचना की जो महाराष्ट्रीय ज्ञानकोशमंडल द्वारा २३ खंडों में प्रकाशित हुआ। डॉ. केतकर के निर्देशन में ही इसका गुजराती रूपांतर प्रकाशित हुआ।
स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्चात् कला एवं विज्ञान की वर्धनशील ज्ञानराशि से भारतीय जनता को लाभान्वित करने के लिए आधुनिक विश्वकोशों के प्रणयन की योजनाएँ बनाई गईं। सन् १९४७ में ही एक हजार पृष्ठों के १२ खंडों में प्रकाश्य तेलुगु भाषा के विश्वकोश की योजना निर्मित हुई। तमिल में भी एक विश्वकोश के प्रणयन का कार्य प्रारंभ हुआ।
हिंदी विश्वकोश - राष्ट्रभाषा हिंदी में एक मौलिक एवं प्रामाणिक विश्वकोश के प्रणयन की योजना हिंदी साहित्य के सर्जन में संलग्न नागरीप्राचारिणी सभा, काशी ने तत्कालीन सभापति महामान्य पं. गोविंद वल्लभ पंत की प्रेरणा से निर्मित की जो आर्थिक सहायता हेतु भारत सरकार के विचारार्थ सन् १९५४ में प्रस्तुत की गई। पूर्व निर्धारित योजनानुसार विश्वकोश २२ लाख रुपए के व्यय से लगभग दस वर्ष की अवधि में एक हजार पृष्ठों के ३० खंडों में प्रकाश्य था। किंतु भारत सरकार ने ऐतदर्थ नियुक्त विशेषज्ञ समिति के सुझाव के अनुसार ५०० पृष्ठों के १० खंडों में ही विश्वकोश को प्रकाशित करने की स्वीकृति दी तथा इस कार्य के संपादन हेतु सहायतार्थ ६।। लाख रुपए प्रदान करना स्वीकार किया। सभा को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के इस निर्णय को स्वीकार करना पड़ा कि विश्वकोश भारत सरकार का प्रकाशन होगा।
योजना की स्वीकृति के पश्चात् नागरीप्रचारिणी सभा ने जनवरी, १९५७ में विश्वकोश के निर्माण का कार्यारंभ किया। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के निर्देशानुसार 'विशेषज्ञ समिति' की संस्तुति के अनुसार देश के विश्रुत विद्वानों, विख्यात विचारकों तथा शिक्षा क्षेत्र के अनुभवी प्रशांसकों का एक पचीस सदस्यीय परामर्शमंडल गठित किया गया। सन् १९५८ में समस्त उपलब्ध विश्वकोशों एवं संदर्भग्रंथों की सहायता से ७०,००० शब्दों की सूची तैयार की गई। इन शब्दों की सम्यक् परीक्षा कर उनमें से विचारार्थ ३०,००० शब्दों का चयन किया गया। मार्च, सन् १९५९ में प्रयोग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग भूतपूर्व प्रोफेसर डॉ. धीरेंद्र वर्मा प्रधान संपादक नियुक्त हुए। विश्वकोश का प्रथम खंड लगभग डेढ़ वर्षों की अल्पावधि में ही सन् १९६० में प्रकाशित हुआ। इस खंड के प्रकाशन के समय तक विश्वकोश विभाग का पूर्णरूपेण संगठन कर लिया गया। विश्वकोश के प्रधान संपादक डॉ. धीरेंद्र वर्मा ने
१. पं. गोविंदवल्लभ पंत डॉ. राजबली पांडेय डॉ. धीरेंद्रवर्मा डॉ. गोरखप्रसाद डॉ. भगवतशरण उपाध्याय १९६० ५०४ ३९ १०१४श्श् १९८
२.श्श् डॉ. संपूर्णानंदश्श् डॉ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा '' डॉ. फूलदेवसहाय वर्मा '' १९६२ ५०८ ६९ ८३३ २४६
३.श्श् '' '' डॉ. रामप्रसाद त्रिपाठी '' '' १९६३श् ५०४श् ६३श्श् ८२८ १९१
४.श्श् '' पं. शिवप्रसाद मिश्र 'रुद्र' '' '' मुकुंदीलाल श्रीवास्तव १९६४ ५०४ ३९ ७४६ २१८
५.श्श् '' '' '' '' '' १९६५ ५०४ २६ ७६७ २०१
६.श्श् '' '' '' '' '' १९६६ ५०८ ५२ ६११ २०८
७.श्श् '' '' '' '' '' १९६६ ५०४ ३५ ५९३ २०५
८.श्श् '' '' '' '' '' १९६७ ५०४ ४० ६५७ २३०
९.श्श् '' पं. सुधाकर पांडेय '' '' '' १९६७श् ५०८श् ३२श्श् ६५१ २५१
१०.श् '' '' '' '' '' १९६८ ४९६ ४१ ६१२ २१६
११.श् पं. कमलापति त्रिपाठी '' '' '' '' १९६९श् ५०६श् ३६श्श् ५१६ २३८
नवंबर, सन् १९६१ के आरंभ में त्यागपत्र दे दिया। कुछ समय पश्चात् डॉ. रामप्रसाद त्रिपाठी ने प्रधान संपादक का पद ग्रहण किया और खंड १० के प्रकाशन तक कार्यभार सँभाला। विश्वकोश के प्रकाशनकाल में इसे तीन मंत्री एवं संयोजक बदले। खंड १ के प्रकाशन के समय डॉ. राजबली पांडेय संयोजक एवं मंत्री थे। खंड २ और ३ डॉ. जगन्नाथप्रसाद शर्म के संयोजकत्व में तथा खंड ८ तक पं. शिवप्रसाद मिश्र 'रुद्र' के संयोजकत्व में प्रकाशित हुए। अंतिम ३ खंडों के संयोजक एवं मंत्री श्री सुधाकर पांडेय थे। विश्वकोश के प्रणयन में प्रारंभ से अंत तक उनका प्रमुख योगदान रहा और डा. रामप्रसाद त्रिपाठी के अंतिम दो वर्षों के विदेश प्रवासकाल में उन्होंने प्रधान संपादक का भी संपूर्ण उत्तरदायित्व वहन किया।
प्रारंभ में परामर्शमंडल के अध्यक्ष पं. गोविंदवल्लभ पंत थे। उनके पश्चात् खंड १० तक का प्रकाशन महामाहिम डॉ. संपूर्णानंद जी की अध्यक्षता में तथा अंतिम दो का प्रकाशन पं. कमलापति त्रिपाठी की अध्यक्षता में हुआ।
विश्वकोश का द्वादश खंड हमारे सम्मुख है। अन्य ११ खंडों से संबंधित प्रमुख तथ्य निम्नलिखित ज्ञप्ति में स्पष्ट हैं। इस तालिका से प्रकट है कि विश्वकोश का प्रथम संस्करण १२ वर्षों की अल्पावधि में १२ खंडों तथा ६००९ पृष्ठों में प्रकाशित हुआ। इसमें ५०७ रंगीन तथा सादे चित्रफलक दिए गए हैं। सभी खंडों को विविध चित्रों, मानचित्रों और कलाकृतियों से सुसज्जित करने और उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है। इसमें देश विदेश के ख्यातिप्राप्त सहस्राधिक विशिष्ट विद्वानों की रचनाओं का संकलन किया गया है। नौ खंडों के प्रकाशन के पश्चात् भी प्रमुख विषयों से संबंधित लगभग २००० निबंध 'योहान' के बाद वर्णक्रम से प्रकाशनार्थ शेष रह गए थे। अत: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा नियुक्त 'पुनरीक्षण समिति' की संस्तुति पर दो अतिरिक्त खंडों के प्रकाशन की स्वीकृति प्राप्त हुई। बारहो खंडों के प्रकाशन का संपूर्ण व्ययभार केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने वहन किया। प्रथम संस्करण पर व्यय कुल धनराशि १५,६५,४८१ रुपए थी। बारहवें खंड के अंत में परिशिष्ट में ५६ निबंध दिए गए हैं जो किन्हीं कारणों से निर्धारित स्थान पर नहीं दिए जा सके थे। परिशिष्ट के पश्चात् बारहो खंडों के निबंधों की सूची दी गई है।
विश्वकोश का संग्रथन हिंदी वर्णमाला के अक्षरक्रम से हुआ है। विदेशी व्यक्तियों एवं कृतियों के नाम यथासंभव उनकी भाषा के उच्चारण के अनुरूप लिखे गए हैं तथा जहाँ कहीं भ्रम की आशंका रही है वहाँ उन्हें कोष्ठक में रोमन में भी दे दिया गया है। उच्चारण के लिए बेवस्टर शब्दकोश को प्रमाण माना गया है। इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका इस विश्वकोश के सम्मुख आदर्श रही है। उसके विषय संचय की प्रक्रिया, वर्णक्रमीय संगठन एवं व्यवस्था की विधि को अपनाया गया है पर सामग्री का संकलन स्वतंत्र रूप से किया गया है। इसमें इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका द्वारा प्राच्य देशों के कतिपय उपेक्षित आवश्यक विषयों को स्थान दिया दिया है तथा उसकी त्रुटियों और भ्रांतियों का यथासंभव निराकरण करने का प्रयास किया गया है।
बारह खंडों की परिमिति के कारण कतिपय विषयों का समावेश नहीं हो पाया है। विश्वकोश का प्रकाशन आश्चर्यजनक त्वरित गति से हुआ। अत: कतिपय त्रुटियों का रह जाना स्वाभाविक था। राष्ट्रभाषा हिहंदी के इस शालीन प्रयास का सर्वत्र स्वागत हुआ एवं इसकी प्रशंसा की गई। यही बीसवीं शती की भारत की महान् साहित्यिक उपलब्धि से भारतीय भाषाओं का भंडार भरने के लिए प्रचुर सामग्री उपलब्ध होगी तथा यह भारत की अन्य भाषाओं में विश्वकोश निर्माण का आधार प्रस्तुत करेगा। (लालबहादुर पांडेय)