वाजपेयी, नंददुलारे का जन्म उन्नाव जिले के मगरायल नामक ग्राम में सन् १९०६ ई. में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हजारीबाग में संपन् हुई। उन्होंने विश्वविद्यालय परीक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की। वाजपेयी जी पत्रकार, संपादक, समीक्षक और अंत में प्रशासक भी रहे। वे कुछ समय तक 'भारत', के संपादक रहे उन्होंने काशी नागरीप्रचारिणी सभा में 'सूरसागर' का तथा बाद में गीता प्रेस, गोरखपुर में राचरितमानस का संपादन किया। वाजपेयी जी कुछ समय तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदीविभाग में अध्यापक तथा कई वर्षों तक सागर विश्वविद्यालय के हिंदीविभाग के अध्यक्ष रहे। मृत्यु के समय वे विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के उपकुलपति थे। २१ अगस्त, १९६७ को उज्जैन में हिंदी के वरिष्ठ आलोचक आचार्य वाजपेयी जी का अचानक निधन हो गया जिससे हिंदी संसार की दुर्भाग्यपूर्ण क्षति हुई है।

शुक्लोत्तर समीक्षा को नया संबल देनेवाले स्वच्छंदतावादी समीक्षक आचार्य वाजपेयी का आगमन छायावाद के उन्नायक के रूप में हुआ था। उन्होंने छायावाद द्वारा हिंदीकाव्य में आए नवोन्मेष का, नवीन सौंदर्य का स्वागत एवं सहृदय मूल्याकंन किया। अपने गुरु आचार्य शुक्ल से बहुत दूर तक प्रभावित होते हुए भी उन्होंने भारतीय काव्यशास्त्र की आधारभूत मान्यताओं के माध्यम से युग की संवेदनाओं को ग्रहण करते हुए, कवियों, लेखकों या कृतियों की वस्तुपरक आलोचनाएँ प्रस्तुत कीं। वे भाषा को साध्य न मानकर साधन मानते थे। वाजपेयी जी ने अनेक आलोचनात्मक ग्रंथों की रचना की है जिनमें प्रमुख हैं - जयशंकर प्रसाद, आधुनिक साहित्य, हिंदी साहित्य : बीसवीं शताब्दी, नया साहित्य : नए प्रश्न, साहित्य : एक अनुशीलन, प्रेमचंद : एक साहित्यिक विवेचन, प्रकीर्णिका, महाकवि सूरदास, महाकवि निराला। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन किया है। इन संपादित ग्रंथों की भूमिका मात्र से उनकी सूक्ष्म एवं तार्किक दृष्टि का सहज ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है। समग्रत: छायावाद युग आचार्य वाजपेयी के समग्र व्यक्तित्व की संश्लिष्टि है, उसमें उनकी क्रांतदर्शी प्रज्ञा तथा अतलभेदिनी अंतर्दृष्टि विद्यमान है। (राजेंद्रकुमार सिंह)