वर्मा, रामचंद्र (१८९०-१९६९ ई.) इनका जन्म काशी के एक सम्मानित खत्री परिवार में हुआ। वर्मा जी की पाठशालीय शिक्षा साधारण ही थी किंतु अपने विद्याप्रेम के कारण इन्होंने विद्वानों के संसर्ग तथा स्वाध्याय द्वारा हिंदी के अतिरिक्त उर्दू, फारसी, मराठी, बंगला, गुजराती, अंग्रेजी आदि कई भाषाओं का अच्छा अध्ययन कर लिया था। इनकी शिक्षु वृत्ति जीवन के अंतिम काल तक पूर्णतया जागरूक रही। विभिन्न भाषाओं के ग्रंथों के आदर्श अनुवाद इन्होंने प्रस्तुत किए हैं। अंग्रेजी के 'हिंदू पालिटी' ग्रंथ अनुवाद इन्होंने हिंदू राजतंत्र' नाम से किया है। मराठी भाषा की ज्ञानेश्वरी, छत्रसाल आदि पुस्तकों के सफल अनुवाद द्रष्टव्य हैं।

वर्मा जी की स्थायी देन भाषा के क्षेत्र में है। अपने जीवन का अधिकांश इन्होंने शब्दार्थनिर्णय और भाषापरिष्कार में बिताया। इनका आरंभिक जीवन पत्रकारिता का रहा। सन् १९०७ ई. में ये 'हिंदी केसरी' के संपादक हुए। यह पत्र नागपुर से प्रकाशित होता था। तदनंतर बॉकीपुर से निकलनेवाले 'बिहार बंधु' का इन्होंने योग्यतापूर्वक संपादन किया। बाद में नागरीप्रचारिणीपत्रिका के संपादकमंडल में रहे। नागरीप्रचारिणी सभा, काशी से संपादित होनेवाले 'हिंदी शब्दसागर' में ये सहायक संपादक नियुक्त हुए। सन् १९१० ई. से १९२९ ई. तक इन्होंने उसमें कार्य किया। बाद में इन्हें 'संक्षिप्त हिंदी शब्दसागर' के संपादन का भार दिया गया। इसके अनंतर ये स्वतंत्र रूप में भाषा और कोश के क्षेत्र में कार्यरत रहे। इन्होंने गहरी सूझबूझ का परिचय दिया है। इस कार्य के लिए ये बराबर चिंतन और मनन किया करते थे। इनकी अनूठी हिंदीसेवा के कारण भारत सरकार ने इन्हें 'पद्यश्री' की सम्मानित उपाधि से अलंकृत किया था। इसमें किंचिन्मात्र संदेह नहीं कि ये आजीवन हिंदीसेवा में जिए। शब्दार्थनिर्णय के प्रति गहरी रुचि रखने के कारण इन्होंने अपने भवन का नाम ही 'शब्दलोक' रख लिया था। अंतिम काल में इन्होंने हिंदी का एक बृहत् कोश 'मानक हिंदी कोश' के नाम से तैयार किया जो पाँच खंडों में हिंदी साहित्य सम्मेलन से प्रकाशित हुआ है।

इनके कतिपय प्रसिद्ध ग्रंथों के नाम हैं, अच्छी हिंदी, उर्दू-हिंदीकोश, हिंदी प्रयोग, प्रामाणिक हिंदी कोश, शिक्षा और देशी भाषाएँ, हिंदी कोश रचना, आदि।

सन् १९६९ में इनका काशीवास हो गया। इनकी सादगी और स्वभाव की सरलता प्रत्येक मिलनेवाले साहित्यिक पर अपना प्रभाव डाले बिना न रहती थी। वर्मा जी हिंदी में जिए और हिंदी के लिए जिए। (लालधर त्रिपाठी)