रसेल, बर्ट्रेंड, लार्ड अंग्रेज दार्शनिक, गणितज्ञ और समाजशास्त्री थे। इनका जन्म ट्रेलेक, वेल्स के प्राचीनतम एवं प्रतिष्ठित रसेलघराने में १८ मई, सन् १८७२ में हुआ था। तीन वर्ष की अबोधावस्था में ही ये अनाथ हो गए। इनके सर से माता-पिता का साया उठ गया। इनके पितामह ने इनका लालन-पालन किया। इनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। इनके अग्रज की मृत्यु के पश्चात् ३५ वर्ष की वय में इन्हें लार्ड की उपाधि प्राप्त हुई। इनका चार बार विवाह हुआ। प्रथम विवाह २२ वर्ष की वय में और अंतिम ८० वर्ष की वय में। प्रारंभ से ही इनकी रुचि गणित और दर्शन की ओर थी, बाद में समाजशास्त्र इनका तीसरा विषय हो गया। इन्होंने ११ वर्ष की अल्प वय में गणित के एक सिद्धांत का अनुसंधान किया था जो इनके जीवन की एक महान् घटना थी। गणित के क्षेत्र में इनकी देन शास्त्रीय थी, जिससे वह बहुत लोकप्रिय नहीं हो सके, लेकिन महानता निर्विवाद है। ए. एन. ह्वाइकहैड के सहयोग से रचित 'प्रिसिपिया मैथेमेटिका' अपने ढंग का अपूर्व ग्रंथ है। इन्होंने 'नाभिकी भौतिकी' और 'सापेक्षता' पर भी लिखा है।

बर्ट्रेंड रसेल 'रायल ह्यूमन सोसाइटी' के सदस्य रहे। प्रथम विश्वयुद्ध के समय अपनी शांतिवादी नीतियों के कारण इन्हें जेलयात्रा करनी पड़ी। महायुद्ध की समाप्ति के पश्चात् 'बोल्शेविज्म' पर एक ग्रंथ की रचना की। ये पेकिंग, शिकागो, हॉरवर्ड और न्यूयार्क के विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक रहे। ये ब्रिटेन की 'इंडिया लीग' के अध्यक्ष चुने गए थे। अत: भारत के स्वतंत्रतासंग्राम से भी इनका निकट का संबंध था। अपनी इच्छा के विपरीत ये सदैव किसी न किसी विवाद या आंदोलन से संबंधित रहे। वृद्धावस्था में भी ये परमाणु-परीक्षणविरोधी आंदोलनों के सूत्रधार थे। 'विवाह और नैतिकता' नाम की इनकी पुस्तक लंबी अवधि तक विवाद का विषय बनी रही। द्वितीय महायुद्ध की विभीषिका के फलस्वरूप गणित और दर्शन के अतिरिक्त समाजशास्त्र, राजनीति, शिक्षा एवं नैतिकता संबंधी समस्याओं ने भी इनकी चिंतनधारा को प्रभावित किया। ये विश्वसंघीय सरकार के कट्टर समर्थक थे। इन्होंने पाप की परंपरावादी गलत धारा का खंडन कर आधुनिक युग में पाप के प्रति यथार्थवादी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया।

बर्ट्रेंड रसेल बीसवीं शती के प्रख्यात दार्शनिक, महान् गणितज्ञ और शांति के अग्रदूत थे। विश्व की चिंतनधारा को इतना अधिक प्रभावित करनेवाले ऐसे महापुरुष कभी कदाचित् ही उत्पन्न होते हैं। इन्हें मानवता से प्रेम था; ये जीवनपर्यंत इस युग के पाखंडों और बुराइयों के विरुद्ध संघर्षरत रहे। युद्ध, परमाणविक परीक्षण एवं वर्णभेद का विरोध इनका लक्ष्य था। दक्षिण वियतनाम में अमरीका के सैनिकों की बर्बरता और नरसंहार की जाँच के लिए संयुक्तराष्ट्रसंघ से अंतर्राष्ट्रीय युद्धापराध आयोग के गठन की सबल शब्दों में माँग कर इस महामानव ने विश्वमानवता का सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया।

सन् १९५० में इन्हें साहित्य का 'नोबेल' पुरस्कार प्रदान किया गया। इन्होंने ४० ग्रंथों का प्रणयन किया था। 'इंट्रोडक्शन टु मैथेमेटिकल फिलॉसॉफी', आउटलाइन ऑव फिलॉसॉफी' तथा मैरेज ऐंड मोरैलिटी' इसकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं।

३ फरवरी, १९७० को ९६ वर्ष की वय में इनका देहांत हो गया। (लालबहादुर पांडेय)