ह्वेनसांग (ह्वान चुआंग, मृत्यु ६६४ ई.) बौद्ध विधि के प्रसिद्ध विद्वान्, अनुवादक, विश्वयात्रा तथा चीन के बौद्ध नेता। बाल्यकाल से ही बौद्ध धर्म के अध्ययन की ओर उसकी रुचि हो गई थी। वयस्क होने के पूर्व ही उसने संघ में प्रवेश किया और फिर होनान, शेंसी होपेह आदि राज्यों के विविध स्थानों की यात्रा की। उस समय के विख्यात बौद्ध विद्वानों के अनेक व्याख्यान उसने सुने और संस्कृत भाषा का भी अध्ययन किया। शीघ्र ही उसने अनुभव किया कि धर्मग्रंथों में वर्णित सिद्धांतों तथा उनके व्याख्याता विद्वानों के विचारों में बड़ा अंतर ओर परस्पर विरोध भी है। इसलिए अपनी शंकाओं के समाधान के लिए उसने भारत की यात्रा करने का निश्चय किया। सन् ६२९ (या ६२७) ई. में मध्य एशिया के स्थलमार्ग से वह कश्मीर पहुँचा। दो वर्ष वहाँ पाँच वर्षों तक उसने आचार्य शोलभद्र तथा अन्य विद्वानों के पास बैठकर शिक्षा पाई। फिर उसने पूरब, पश्चिम तथा दक्षिण भारत के भी अनेक बौद्ध केंद्रों का पर्यटन किया और बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन किया।

पर्यटन के बाद वह पुन: नालंदा लौट आया, और बौद्ध धर्म पर संस्कृत में दो ग्रंथों की रचना की। उसकी ख्याति सुनकर कामरूप के राजा ने ओर कन्नौज के हर्षवर्धन ने भी उसे आमंत्रित किया। उसने एक बड़े शास्त्रार्थ सम्मेलन का आयोजन किया। महायान संप्रदायवालों ने उसे महायानदेव की उपाधि से तथा हीनयानियों ने मोक्षदेव की उपाधि से विभूषित किया। ६४५ ई. में वह स्वेदश लौट गया और अपने साथ बुद्ध की सात मूर्तियाँ तथा ६५७ ग्रंथ भारत से लेता गया।

चीन के सम्राट् तथा जनता ने उसकी विद्वत्ता तथा सेवाओं का सम्मान किया। उसने चीन के विभिन्न भागों से विविध विषयों के अनेक विद्वानों को इकट्ठा किया, जिन्होंने अनुवाद कार्य में उसकी सहायता की। सन् ६४५ से ६३४ ई. की उन्नीस वर्षों में ७५ ग्रंथों का अनुवाद चीनी भाषा में किया गया, जिनमें 'महायज्ञ परिमिता सूत्र' तथा 'योगाचार भूमिशास्त्र' मुख्य थे। चीनी त्रिपिटक में उसके अनुवादों का बड़ा महत्व है। पश्चिमी देशों के बौद्ध तीर्थों की यात्रा का उसका विवरण एशिया के इतिहास की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। (जन यून-हुआ)