हैज़लिट, विलियम (१७७८-१८३०) का परिवार हालैंड से आकर आयरलैंड में बस गया था। बाल्यावस्था में ही हैज़लिट अपने पिता के साथ कुछ दिनों के लिए अमरीका गए और वहाँ से लौटने पर उनका परिवार सन् १७८७ में वेमू नामक स्थान पर निवास करने लगा। हैज़लिट के बाल्यकाल और युवावस्था के वर्ष यहीं बीते। १५ साल की आयु में वे धार्मिक शिक्षा के हाकनी की एक पाठशाला में भेजे गए किंतु वहाँ उनका मन न लगा और शीघ्र ही वे अपने बड़े भाई के साथ चित्रकारी सीखने लगे। चित्रकारी में उनकी अभिरुचि आजीवन बनी रही और उनके अंकित किए हुए कई चित्रों ने यथेष्ट ख्याति प्राप्त की। सन् १७९६ में वे बर्क के लेखों से प्रभावित हुए तथा सन् १७९८ में कोलरिज से साक्षात्कार के उपरांत उनकी अभिरुचि परिष्कृत हुई किंतु तब भी अनेक वर्षों तक वे स्फुट विषयों, जैसे दर्शन, अर्थशास्त्र इत्यादि पर पुस्तिकाएँ और निबंध लिखते रहे। सन् १८१५ और १८२२ के बीच के सात वर्षों में हैज़लिट की सर्वाधिक सफल साहित्यरचना हुई। निबंध और वक्तृताओं के क्षेत्र में में उनकी कृतियों ने विशेष यश प्राप्त किया। 'राउंड, टेबुल' और 'टेबुल टाक' में संगृहीत उनके लेख तथा प्राचीन कवियों और नाटककारों पर उनके प्रसिद्ध भाषण इसी कालावधि में रचे गए। सरा बाकर नामक निम्न श्रेणी की स्त्री के प्रति आकर्षित हो जाने के कारण उनकी दूसरी पत्नी ने उनका परित्याग कर दिया। सन् १८२२ के आस पास कुछ समय तक इन उलझनों के कारण उनका मन विक्षुब्ध था और लाइबर एमारिस के प्रकाशन से उसकी अत्यधिक बदनामी हुई। धीरे धीरे चित शांत होने पर हैज़लिट ने कई और ग्रंथ लिखे- करेक्टरिस्टिक्स, दी जर्नी थ्रू फ्रांस ऐंड इटली, स्केचेज ऑव दि प्रिंसिपल पिक्चर गैलरीज़ इन इंग्लैंड, दि प्लेन स्पीकर, दि स्पिरिट ऑव दी एज इत्यादि। अपने जीवन के अंतिम दो वर्ष लेखक ने नेपोलियन का जीवनचरित् लिखने में व्यतीत किए।

हैज़लिट स्वभाव से असहिष्णु और अवसन्न मन के व्यक्ति थे और उनका जीवन द्वंद्व तथा क्षोभ में बीता। उनके असफल पारिवारिक जीवन ने उनके स्वभाव को और भी तीक्ष्ण बना दिया था। उनकी राजनीतिक चेतना अत्यंत तीव्र एवं उदार थी। फ्रांस की राज्यक्रांति से जिस स्वांतत््रय प्रेम की सृष्टि हुई उसका प्रभाव हैज़लिट के मन पर निरंतर बना रहा।

हैज़लिट मुख्यत: पत्रकार थे अतएव उनकी रचनाओं में प्रचुर वैविध्य है। लैंब की भाँति उनकी रचनाओं का क्षेत्र सीमित नहीं है वरन् उसमें प्रकृति, मानव, दर्शन, अर्थशास्त्र सभी का समावेश हुआ है। उनकी साहित्यिक समीक्षा उच्च कोटि की है। कोलरिज की भाँति उन्होंने नवीन सिद्धांतों की स्थापना नहीं की और न प्राचीन शास्त्रीय समीक्षकों की भाँति स्वीकृत प्रतिमानों द्वारा साहित्यिक मूल्यों के आँकने का प्रयास ही किया। उन्होंने अपने संवेदनशील मन पर पड़नेवाले प्रभाव को आधार बनाकर साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन किया है अत: उनकी आलोचनाओं को हम 'परख' की संज्ञा दे सकते हैं। हैज़लिट की गद्य शैली की अपेक्षा अधिक नवीन और सुस्पष्ट है। अपनी तीव्र अनुभूति, परिष्कृत अभिरुचि, उदार मनोवृत्ति तथा विशद ज्ञान के कारण आज भी उनकी गणना अंग्रेजी के मूर्घन्य निबंधलेखकों और समीक्षकों में होती है। (रा. प्र. द्वि.)