हेवलॉक, सर हेनरी यह एक अंग्रेज सैनिक था। इसका जन्म ५ अप्रैल, सन् १७९५ को हुआ था और मृत्यु २४ नंवबर, सन् १८५७ को हुई। अपने चार भाइयों में यह दूसरा था। यह धनाढ्य पोत निर्माणकर्ता का पुत्र था। 'चार्टेर हाउस स्कूल' में शिक्षा प्राप्त करके यह सन् १८१३ में 'मिडिल टेंपल' में प्रविष्ट हुआ। वकालत में उसकी कोई विशेष रुचि नहीं हुई इसलिए उसने सेना में पदार्पण किया। सन् १८२३ में वह भारत आ गया। लगभग छह वर्ष बाद उसने जोशुआ मार्शमन की पुत्री से विवाह कर लिया। सन् १८३८ में वह सेना में कप्तान बन गया। प्रथम अफ़गान युद्ध में ग़्ज़ानी तथा काबुल पर आक्रमण करके उन्हें अपने अधिकार में करते समय वह सर विलोबी कॉटन का अंगरक्षक था। इसने सिख तथा मराठा युद्धों में अपनी वीरता दिखाई और अंत में भारतस्थित सेनाओं का 'एडजूटेंट जेनरल' बन गया। फारस के युद्ध में सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व करने के लिए सर आउटरम ने हेनरी को सन् १८५७ में आमंत्रित किया। हैवलॉक वहाँ से लौटा ही था कि भारत में विद्रोह छिड़ गया। १८५७ के इस विद्रोह में सर हेनरी ने धड़ी वीरता दिखाई और यह उसके नायकों में से एक बन गया। उसने विभिन्न स्थानों पर विद्रोही दलों को हराया। इलाहाबाद, लखनऊ तथा कानपुर में विद्रोहियों को दबाने के संबंध में सहायता देने के लिए सर हैवलाक ने सराहनीय कार्य किया। इन कार्यों के लिए उसे अनेक सम्मान प्राप्त हुए। उसे के. सी. बी.' की उपाधि दी गई तथा वह सैना में मेजर जेनरल बना दिया गया। उसे 'बैरोनट' भी बनाया गया, परंतु उस समय तक पेचिश की बीमारी से उसकी मृत्यु हो चुकी थी। (मिथिलेश पांडा)